दशरथ गागराई और संजीव सरदार का डोलता मन! झामुमो के लिए कितना बड़ा झटका!
पालाबदल का खेल कितना मुश्किल, कितना आसान

खरसांवा का जो किला अर्जुन मुंडा के बगावत के बाद झामुमो के हाथ से निकल चुका था, दशरथ गागराई ने अपने चेहरे के बूते उस पर एक बार फिर से झामुमो का झंडा बुलंद कर दिया और सबसे बड़ी बात यह रही है कि तीन-तीन बार के सीएम रहें अर्जुन मुंडा जैसे कद्दावर चेहरे को 12 हजार के एक बड़े अंतर से पराजित करने में सफलता हासिल की, दरशथ गागराई को 'हो' जनजाति का एक बड़ा चेहरा माना जाता है.
रांची: पूर्व सीएम चंपाई सोरेन के बगावत के बाद सराइकेला में झामुमो कार्यकर्ताओं की बैठक से खरसांवा विधायक दशरथ गागराई और पोटका विधायक संजीव सरदार की गैरमौजूदगी को लेकर सियासी गलियारों में चर्चाओं का बाजार गर्म है. इसे पीएम मोदी की जमशेदपुर रैली के पहले कोल्हान की सियासत में एक और भूचाल की आहट मानी जा रही है. दावा किया जा रहा है कि चाचा चंपाई के बाद यदि दशरथ गागराई और संजीव सरदार की निष्ठा भी बदलती है, एक और पालाबदल का खेल सामने आता है, तो इसके साथ ही भाजपा कोल्हान के किले में आधी जंग जीत जायेगी. फिलहाल सिर्फ दो विधायकों की निष्ठा पर ही सवाल खड़ा किया जा रहा है, लेकिन इसके साथ ही दूसरे कई विधायकों का पालाबदलने की चर्चा भी अंदरखाने जारी है.
कोल्हान की सियासत में पचती खिचड़ी

पालाबदल का खेल कितना आसान, कितनी मुश्किल
इसके लिए बेहद जरुर है कि विधानसभा के सियासी समीकरण को समझा जाय और उस विधानसभा के अंदर उनका चेहरा कितना मजबूत है, इसको परखा जाय, इनके पालाबदल से झामुमो को कितना नुकसान होगा, इसका आकलन किया जाय और सबसे बड़ी बात क्या वाकई इन विधायकों के लिए पाला बदल का खेल करना इतना आसान रहने वाला है. जिन दो विधायकों का पालाबदल की चर्चा फिलहाल सुर्खियों में हैं, उसमें एक नाम दशरथ गागराई है. आज इस खबर को लिखने के पहले जब दशरथ गागराई से पालाबादल की खबर पर प्रतिक्रिया मांगी गई, तो दशरथ गागराई ने साफ किया कि तबीयत ठीक नहीं है, स्वर भी काफी मंद था, बीच-बीच में वह खांसते भी दिख रहे थें, हालांकि सिर्फ इस आधार पर पालाबदल की खबरों को खारिज नहीं किया जा सकता. अक्सर पाला बदल के पहले इस तरह का खेल किया जाता है. जिस खरसांवा विधानसभा का वह प्रतिनिधित्व करते हैं. 1995 में तक यह झामुमो का मजबूत किला हुआ करता था. अर्जुन मुंडा इसी सीट से झामुमो का विधायक हुआ करते थें, लेकिन वर्ष 2000 में अर्जुन मुंडा ने झामुमो को अलविदा कहते हुए भाजपा का दामन थाम लिया. वर्ष 2000, 2005 में अर्जुन मुंडा को भजापा के टिकट पर ही जीत मिली, लेकिन वर्ष 2009 में भाजपा ने मंगल सिंह सोय को मैदान में उतारा, इस बार भी मंगल सिंह भाजपा का कमल खिलाने में कामयाब रहें, 2010 में एक बार फिर से अर्जुन मुंडा की वापसी हुई, लेकिन वर्ष 2014 में दशरथ गागराई के हाथों अर्जुन मुंडा का हार का सामना करना पड़ा, इस प्रकार वर्ष 1995 के बाद एक बार फिर से झामुमो ने खरसांवा में अपना झंडा बुलंद कर दिया, वर्ष 2019 में एक बार फिर से दशरथ गागराई ने झामुमो का झंडा बुलंद करने में कामयाबी पाई. वर्ष 2014 में अर्जुन मुंडा को 12 हजार मतों से पराजित किया तो वर्ष 2019 में जवाहर लाल बरना को 23 हजार से पराजित किया.
अर्जुन मुंडा के पालाबदल के बाद फहराया झामुमो का झंडा
इस प्रकार देखा जाय तो खरसांवा का जो किला अर्जुन मुंडा के बगावत के बाद झामुमो के हाथ से निकल चुका था, दशरथ गागराई ने अपने चेहरे के बूते उस पर एक बार फिर से झामुमो का झंडा बुलंद कर दिया और सबसे बड़ी बात यह रही है कि तीन-तीन बार के सीएम रहें अर्जुन मुंडा जैसे कद्दावर चेहरे को 12 हजार के एक बड़े अंतर से पराजित करने में सफलता हासिल की, दरशथ गागराई को 'हो' जनजाति का एक बड़ा चेहरा माना जाता है. कोल्हान में अनुसूचित जनजाति की पूरी आबादी में ‘हो’ जनजाति की हिस्सेदारी करीबन 54 फीसदी की है, बावजूद इसके हो समाज को हेमंत पार्ट वन में मंत्रिमंडल में कोई स्थान नहीं मिला, चंपाई सोरेन और जोबा मांझी दोनों संताल चेहरे पर ही दांव लगाया गया. बाद में चंपाई सोरेन के मंत्रिमंडल में दीपक बिरुआ को जो हो जनजाति के एक दूसरा मजबूत चेहरा है, को मंत्रिमंडल में शामिल जरुर किया गया, चंपाई सोरेन के बगावत के बाद बहुत संभव है कि दशरथ गागराई के मन में भी मंत्री पद की लालसा जागी होगी, लेकिन चंपाई सोरेन के बगावत के बाद एक दूसरा संताल चेहरा रामदास सोरेन पर दांव लगा दिया गया. बहुत संभव है कि दशरथ गागराई के मन में इसकी पीड़ा रही हो. हालांकि वह इस तरह की तमाम खबरों को खारिज कर रहे हैं. वैसे खबर यह भी है कि लोकसभा चुनाव के वक्त दशरथ गागराई को चुनाव लड़ने का ऑफर दिया गया, लेकिन तब दशरथ गागराई ने खुद ही इंकार कर दिया था.
संजीव के सामने मेनका की चुनौती
जहां तक पोटका विधानसभा की बात है, जिसका प्रतिनिधित्व संजीव सरदार करते हैं. वर्ष 1977 के बाद हुए अब तक के 11 विधानसभा चुनाव में 5 बार भाजपा, चार बार झामुमो और एक एक बार जनता दल और कांग्रेस को सफलता मिली है. वर्ष 2000 के बाद मेनका सरदार अब तक तीन बार कमल खिला चुकी है, जबकि वर्ष 2005 के बाद संजीव सरदार ने 2019 में झामुमो का झंडा गाड़ा है, लेकिन उनका सियासी प्रतिद्वंधी मेनका सरदार आज भी पोटका में मजबूती के साथ खड़ी हैं, इस हालत में यदि संजीव सरदार के लिए पालाबदल का खेल करना बेहद मुश्किल नजर आता है, संजीव सरदार के पाला बदलते ही भाजपा के लिए मेनका सरदार को साथ बनाये रखने की चुनौती होगी, जहां तक झामुमो की बात है तो संजीव सरदार का जाना उसके लिए कोई बड़ा सियासी झटका तो कतई साबित नहीं होगा.