हेमंत की बढ़ी दाढ़ी में हाथ से निकल गयी लोकसभा की तीन सीटें, अब बताया पक्का अपराधी
उग्र हिन्दुत्व का चेहरा हिमंता को मात देने की चाल
उग्र हिन्दुत्व के चेहरे के रुप में हिमंता विस्व सरमा हर दिन एक नया मोर्चा खोल रहे हैं. अखबारों की सुर्खियां बन रहे हैं, इधर बाबूलाल पुराने ढर्रे की राजनीति में फंसे थें और यही कारण है कि सीएम चेहरे की रेस में भी पिछड़ते नजर आ रहे थें. हालांकि आज भी भाजपा में जिन चेहरों को सीएम पद का भावी दावेदार माना जा रहा, अर्जुन मुंडा से लेकर चंपाई सोरेन तक में उस आक्रमता का अभाव है, लेकिन चंपाई सोरेन जरुर अपने को बदलते दिख रहे हैं
रांची: झारखंड की सियासत में बाबूलाल की पहचान विन्रम भाषा और संयमित वाणी रही है, यही विन्रमता कई बार उनकी कमजोरी भी मानी जाती है. बाबूलाल पर यह आरोप लगता रहा है कि उनके बयानों में उस तेवर का अभाव है, जिसकी आशा मौजूदा भाजपा में की जाती है. हालांकि यह भी एक सच्चाई है कि बाबूलाल को राज्य की सियासत करनी है, वह झारखंड की जमीनी सच्चाई को कहीं बेहतर ढंग से समझते हैं, उन्हे इस बात का भलि-भांति ज्ञान है कि सियासत में कब और किस सीमा तक हमलावर होना है. लेकिन लगता है कि अब भाजपा के अंदर बाबूलाल की इस विन्रमता कुछ ज्यादा ही मुश्किल खड़ी करने लगी है और बाबूलाल के सामने भी इस बदली हुई भाजपा के साथ अपने आप को बदलने की चुनौती खड़ी हो गयी है. क्योंकि इस विन्रमता की चादर में उनकी सियासी महत्वाकांक्षा डूबती नजर आ रही है.
हेमंत सोरेन के खिलाफ अब तक का सबसे बड़ा हमला
हेमंत सोरेन सरकार के पास पांच साल में बताने को पांच काम नहीं है...
— Babulal Marandi (@yourBabulal) September 12, 2024
झारखंड की जनता पांच साल से उस गिद्ध शासन में कैद है, जहां मुख्यमंत्री आदिवासियों की जमीन पर कब्जा कर रहा है। झारखंड की संपदा लूटने में व्यस्त हेमंत सोरेन का पूरा चरित्र भ्रष्टाचार का लबादा ओढे हुए हैं।
जिन…
दरअसल बाबूलाल ने आज सीएम हेमंत पर अप्रत्याशित रुप से अब तक का सबसे बड़ा हमला बोला है. अपने सोशल मीडिया एकाउंट पर एक्स पर उन्होंने लिखा है कि हेमंत सोरेन किसी जनआन्दोलन में नहीं, बल्कि भ्रष्टाचार के मामले में जेल गये थें. यहां तो ठीक था, भाजपा प्रदेश अध्यक्ष के रुप में इस तरह का हमला करना उनका दायित्व और खुद अपनी सियासी जमीन को बनाये रखने की जरुरत भी है. ताकि कार्यकर्ताओं का मनोबल बना रहे, लेकिन उन्होंने आगे जो लिखा वह बेहद हैरत में डालने वाला था, हैरत में डालने वाले इसलिए था, क्योंकि हेमंत सोरेन के जेल जाने के बाद आदिवासी-मूलवासी समाज के बीच जिस तरह की बेचैनी, गुस्सा और आक्रोश देखने को मिला था, उसका भान बाबूलाल को भी था. और उस आक्रोश में बाबूलाल हेमंत सोरेन के खिलाफ व्यक्तिगत तौर पर हमले से परहेज करते हुए दिखलायी पड़ रहे थें, लेकिन आज उन्होंने यह दावा कर सबको हैरत में डाल दिया कि हेमंत सोरेन जेल से पक्का अपराधी बन कर लौटे हैं.
हेमंत की बढ़ी दाढ़ी में भाजपा के हाथ से निकल गयी लोकसभा की तीन सीटें
यहां याद रहे कि लोकसभा चुनाव के वक्त जब हेमंत सोरेन एक दिन के लिए बाहर आये थें, तब पहली बार उनकी इस दाढ़ी की झलक झारखंडियों को लगी थी, आदिवासी-मूलवासी समाज के बीच इसका व्यापक असर देखा गया था, तब आदिवासी-मूलवासी समाज उनकी इस दाढ़ी में दिशोम गुरु की छवि तलाश रहा था. सोशल मीडिया में भी हेमंत सोरेन का यह दाढ़ी ट्रेंड करने लगा और आखिरकार भाजपा को इसकी कीमत आदिवासी बहुल सभी पांच सीटों से सफाये के रुप में चुकानी पड़ी. लोकसभा चुनाव का परिणाम इस बात का पुख्ता सबूत है कि अपनी गिरप्तारी के बाद आदिवासी-मूलवासी समाज के बीच हेमंत सोरेन की पकड़ मजबूत हुई है और एक तजुर्बे सियासतदान के समान बाबूलाल को भी इसका भान था,यही कारण था कि बाबूलाल हेमंत सोरेन के गिरफ्तारी के मुद्दे पर प्रतिक्रिया देने से बचने की कोशिश करते दिखते थें.
क्या है बाबूलाल की सियासी दुविधा
दरअसल आदिवासी समाज के एक बड़ा हिस्सा यदि हेमंत सोरेन को अपना नेतृत्वकर्ता मानता है तो बाबूलाल को भी आदिवासी समाज का एक कद्दावर चेहरा के रुप में स्वीकार करता है. दूसरी ओर आदिवासी समाज का जो हिस्सा बाबूलाल को पसंद करता है, उसका भी एक बड़ा हिस्सा हेमंत सोरेन को अपना खलनायक नहीं मानता, यही वह विवशता थी कि बाबूलाल अब तक हेमंत सोरेन पर सीधा हमला करने से बचते दिखते थें, लेकिन अब ऐसी क्या मजबूरी आ गयी कि इस प्रकार का बयान देना पड़ा. और क्या इस बाबूलाल को इस बयान की सियासी कीमत भी चुकानी पड़ सकती है. आज यह सवाल बेहद प्रासंगिक है.
विधानसभा चुनाव के पहले बाबूलाल की बड़ी चूक
सियासी जानकारों की माने को विधानसभा चुनाव के सियासी अखाड़े में जाने के पहले बाबूलाल ने एक बड़ी चूक कर दी.खासकर तब जब भाजपा के अंदर इस बार बाबूलाल के लिए किसी आरक्षित आदिवासी सीट की तलाश की जा रही है.इस बयान के बाद बाबूलाल को आदिवासी मतदाताओं की नाराजगी का सामना करना पड़ा सकता है. लेकिन इससे भी बड़ा सवाल यह है कि आखिरकार बाबूलाल को इस तरह का हमलावर रुख अपनाना क्यों पड़ा? अपने सियासी अंदाज में यह बदलाव क्यों करना पड़ा, क्या यह खूद बाबूलाल का फैसला था, या इसके पीछे भाजपा के रणनीतिकारों का दबाव या फिर केन्द्रीय नेतृत्व की चाहत थी.
बाबूलाल के व्यक्तिव में आक्रमता का अभाव
आपको बता दें कि भाजपा के अंदर इस बात की चर्चा तेज है कि बाबूलाल में उस तरह आक्रमकता का अभाव है, जिस आक्रमता की आशा मौजूदा दौर में भाजपा में की जाती है. बाबूलाल मरांडी अमित शाह और पीएम मोदी के दौर के नेता नहीं है, यह उस दौर के नेता हैं, जब भाजपा की कमान अटल बिहारी वाजपेयी और आडवाणी के हाथ में होती थी, तब की भाजपा में संयमित भाषा को पार्टी का वरदान माना जाता था. इसी संयमित भाषा के कारण सुषमा स्वराज लम्बे समय तक प्रवक्ता पद की जिम्मेवारी मिलती रही. जब बाबरी मस्जिद का मामला उछाल पर था, तब भी भाजपा के अंदर इस तरह के आक्रमक भाषा से परहेज किया जाता था.
उग्र हिन्दुत्व का चेहरा हिमंता को मात देने की चाल
उग्र हिन्दुत्व के चेहरे के रुप में हिमंता विस्व सरमा हर दिन एक नया मोर्चा खोल रहे हैं. अखबारों की सुर्खियां बन रहे थें, उधर बाबूलाल पुराने ढर्रे की राजनीति में फंसे थें और यही कारण है कि सीएम चेहरे की रेस में पिछड़ते नजर आ रहे थें. हालांकि आज भी भाजपा में जिन चेहरों को सीएम पद का भावी दावेदार माना जा रहा, वह अर्जुन मुंडा हो या चंपाई सोरेन उनके अंदर भी इस तरह की आक्रमता का अभाव नजर आता है, लेकिन चंपाई सोरेन जरुर अपने को बदलते दिख रहे थें. जिस तरीके से भगवा धारण करते ही बांग्लादेशी घुसपैठ पर मोर्चा खोला, इसके चंपाई सोरेन की बदलती सियासत का संदेश मिलता है. शायद बाबूलाल को चंपाई सोरेन के इस बदलते व्यक्तिव का भी भान होने लगा था, और उसी विवशता में अपने राजनीति अंदाज में बदलाव लाने की कोशिश की है, हालांकि बावजूद इसके उनके हिस्से सीएम पद का चेहरा आता है या फिर इस बदलाव के बावजूद भी निराशा हाथ लगती है, यह भी देखने वाली बात होगी, लेकिन बाबूलाल ने हिमंता के राह के पर चलते हुए बदलाव की कोशिश जरुर की है, अब देखना होगा कि आदिवासी मूलवासी समाज बाबूलाल के अंदर हो रहे इस बदलाव को किस रुप में देखता है.