"बंटोगे तो कटोगे" के बाद अब सरना धर्म कोड का आसरा
क्या सरना धर्म कोड से खंडित नहीं होगी हिन्दू एकता?
क्या वाकई भाजपा आदिवासी समाज के लिए सरना धर्म कोड देने को तैयार है, या फिर यह महज एक चुनावी नारा है. यदि भाजपा वास्तव में आदिवासी समाज को सरना धर्म कोड देने का इरादा रखती है तो फिर इसमें देरी क्यों की जा रही है? झारखंड में हेमंत सरकार और बंगाल में ममता बनर्जी तो पहले ही विधानसभा से इस आशय का प्रस्ताव पारित कर केन्द्र को भेज चुकी है, फिर भाजपा आदिवासी समाज की इस पुरानी मांग पर अपनी मुहर क्यों नहीं लगाती
रांची: झारखंड के चुनावी संग्राम में “बंटोगे तो कटोगे” नारे का अभी ठीक से एंट्री भी नहीं हुई कि अचानक भाजपा बैकफूट पर नजर आने लगी है, अब तक हिन्दूओं को एकजूट करने का स्लोगन देती रही भाजपा का अब इस चुनावी संग्राम में सरना धर्म कोड को लेकर आयी है, उसका दावा है कि वह तो सरना धर्म कोड का पैरोकार है, यह तो कांग्रेस है, जिसने इसको हटाने का काम किया है. इसकी राह में अड़चने डालने की कोशिश की है.
सियासी शिकस्त के बाद योगी आदित्यनाथ ने उछाला था नारा
दरअसल लोकसभा चुनाव में यूपी में मिली करारी शिकस्त के बाद योगी आदित्यनाथ ने बंटोगे तो कटोगे के नारे के साथ एक बार फिर से हिन्दू मतों का धुर्वीकरण करने की कोशिश की है, ताकि उपचुनाव में लोकसभा चुनाव के समान हिन्दू मतों का विभाजन नहीं हो, और कम से कम उपचुनाव में पार्टी सम्मान जनक सीट हासिल करने में कामयाब रहे.
हिन्दू स्वाभिमान यात्रा पर निकल पड़े गिरिराज सिंह
इधर यूपी में योगी आदित्यनाथ ने यह नारा उछाला और उधर गिरिराज सिंह बिहार के मुस्लिम बहुल इलाके में बंटोगे तो कटोगे के साथ हिन्दू स्वाभिमान यात्रा पर निकल पड़े, लेकिन गिरिराज सिंह के इस पैंतरे का नीतीश कुमार की पार्टी जदयू खुलकर विरोध करने लगी, अब तक साफ सुधरी राजनीति करती आयी जदयू और नीतीश कुमार को इस नारे में अपनी सियासी जमीन का बंटाधार होता नजर आने लगा. दरअसल भाजपा के साथ तमाम गलबहियां के बावजूद नीतीश कुमार की रणनीति अपने चेहरे को गैर सम्प्रादायिक बनाये रखने की रही है, और वह एक हद तक इसमें कामयाब भी होते रहे हैं. मुस्लिम समाज का ठीक ठाक वोट जदयू के हिस्से आता रहा है. लेकिन गिरिराज सिंह के हिन्दू स्वाभिमान यात्रा से उसे अपनी जड़े हिलती नजर आयी और हालत यह हो गयी कि संघ और भाजपा परिवार दोनों ने गिरिराज सिंह के इस हिन्दू स्वाभिमान यात्रा से किनारा कर लिया.
काम नहीं आया बंटोगे तो कटोगे का नारा!
लेकिन सबसे उलझन भरी स्थिति सूबे झारखंड में नजर आ रही है, अभी ठीक से बंटोगे तो कटोगे के नारे की एंट्री भी नहीं हुई थी कि भाजपा के रणनीतिकारों ने इसका बंटाधार कर दिया. झारखंड चुनाव सह प्रभारी हिमंता विश्व सरमा ने बांग्लादेशी घुसपैठ और “बंटोगे तो कटोगे” से किनारा करते हुए अब इस चुनावी संग्राम में सरना धर्म कोड की एंट्री करवा दी है. और इसके साथ ही यह सवाल खड़ा होने लगा है कि क्या बांग्लादेशी घुसपैठिया के तीर से साथ ही क्या ‘बंटोगे तो कटोगे’ का ब्रह्माशास्त्र भी फेल हो गया. आखिर क्या कारण है कि अब तक हिन्दूओं को एकजूट रहने का नारा लगाने वाली भाजपा अब सरना धर्म कोड की बात करने लगी है, क्या आदिवासी-मूलवासी बहुल झारखंड की जमीन पर बांग्लादेशी घुसैपैठिया के साथ ही ‘बंटोगे तो कटोगे’ की नारा भी अप्रभावी हो गया. और इस चुनावी बेचैनी में सरना धर्म कोड का कार्ड खेलने की मजबूरी आ पड़ी है,
क्या सरना धर्म से खंडित नहीं होगी हिन्दू एकता?
इसके साथ ही अब यह सवाल भी खड़ा होने लगा है कि आखिर जिस सरना धर्म कोड की बात भाजपा कर रही है, क्या उससे हिन्दूओं की एकता खंडित नहीं होगी, तो क्या हिन्दूओं टूकड़े टुकड़े करने की शर्त पर भी भाजपा सत्ता को अपने पास रखना चाहती है, तो क्या हिन्दू एकजूटता का नारा महज एक छलावा था.
क्या वाकई सरना धर्म कोड देने जा रही है भाजपा?
और सबसे बड़ा सवाल क्या वाकई भाजपा आदिवासी समाज के लिए सरना धर्म कोड देने को तैयार है, या फिर यह महज एक चुनावी नारा है. यदि भाजपा वास्तव में आदिवासी समाज को सरना धर्म कोड देने का इरादा रखती है तो फिर इसमें देरी क्यों की जा रही है? झारखंड में हेमंत सरकार और बंगाल में ममता बनर्जी तो पहले ही विधानसभा से इस आशय का प्रस्ताव पारित कर केन्द्र को भेज चुकी है, फिर भाजपा आदिवासी समाज की इस पुरानी मांग पर अपनी मुहर क्यों नहीं लगाती? हिमंता किस आधार पर यह दावा करते हैं कि यह तो कांग्रेस है जो सरना धर्म कोड की राह में रोड़ा अटका रही है. क्यों नहीं भाजपा लोकसभा में इस आशय का बिल लाती है, साफ हो जायेगा कि कौन सा राजनीतिक दल इसके समर्थन और कौन विरोध में है? हकीकत है कि कांग्रेस पहले ही यह साफ कर चुकी है कि यदि वह सत्ता में आती है तो जातीय जनगणना का फैसला कैबिनेट की पहली बैठक में लिया जायेगा और इसके साथ ही आदिवासी समुदाय की चिर प्रतिक्षित मांग को सरना धर्म कोड पर भी मुहर लगायी जायेगी. जबकि भाजपा सत्ता में है, उसके पास वादे करने का कोई विकल्प नहीं है, भाजपा ने सरना धर्म का वादा 2014 में भी किया था, लेकिन डबल इंजन की सरकार बनने के बावजूद उस वादे को पूरा नहीं किया, फिर आदिवासी समाज भाजपा के इस नये वादे पर विश्वास क्यों करेगी?