पोटका विधानसभा चुनाव 2024: भूमिज के गढ़ में मुंडा! अर्जुन के बाद अब संकट में मीरा!
क्या कहता है पोटका का सामाजिक समीकरण
अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित इस विधानसभा में आदिवासी समुदाय की आबादी करीबन 52 फीसदी, मुस्लिम-6 फीसदी है. लेकिन बड़ी बात है यह है पोटका को भूमिज जनजाति का गढ़ माना जाता है. इस सीट से आज तक किसी भी गैर भूमिज चेहरे को जीत नहीं मिली. इस सीट पर अब तक झामुमो-4 भाजपा-4 कांग्रेस-1 और जनता दल को एक बार जीत मिली है.
रांची: अपने सामाजिक-राजनीतिक प्रयोगों के लिए खास पहचान रखने वाली भाजपा इस बार भी प्रयोगशाला से बाहर नहीं निकली है. जिस तरीके से प्रत्याशियों का एलान हुआ है, वह एक बार फिर से चौंकने वाला है. 75 पार रिटाइरमेंट का दावा करने वाली भाजपा 80 पार रामचन्द्रवंशी को बेटिकट करने का साहस नहीं जुटा पायी. विपक्ष पर परिवारवाद और वंशवाद का तीर तो खूब चला, लेकिन जब बाद टिकट बंटवारे की आयी तो दोनों हाथों से परिवारों के बीच टिकट भी बंटा. अर्जुन मुंडा की पत्नी मीरा मुंडा को पोटका, चंपाई सोरेन को सराइकेला तो बेटे बाबूलाल सोरेन को घाटशीला, रघुवर दास की पतोह पूर्णिमा ललित दास को पूर्वी जमशेदपुर के अखाड़े से उतारा जा चुका है.
खरसांवा के बदले पोटका पर दांव क्यों?
लेकिन सबसे हैरत में डालने वाली खबर मीरा मुंडा को लेकर है. खरसांवा की परंपरागत सीट छोड़कर अर्जुन मुंडा ने इस बार अपनी पत्नी मीरा मुंडा के लिए पोटका का नया ठिकाना चुना है. अर्जुन मुंडा वर्ष 1995, 2000,2005,2010 में खरसांवा से जीत दर्ज कर चुके हैं. लेकिन वर्ष 2014 में दशरथ गगराई के हाथों हार का सामना करना पड़ा. सियासी गलियारों में इसकी चर्चा तेज है कि इस बार भी अर्जुन मुंडा को खरसांवा का ऑफर मिला था. लेकिन अर्जुन मुंडा ने एक बार फिर से दशरथ गगराई का सामना करने बजाय अपनी पत्नी मीरा मुंडा को पोटका से उतराने का फैसला किया. लेकिन बड़ा सवाल यह है कि क्या मीरा मुंडा के लिए पोटका सुरक्षित सीट ठिकाना साबित होगा. जिस सियासी शिकस्त से बचने के लिए पोटका का विकल्प चुना गया, क्या वह इतना आसान है.
क्या कहता है पोटका का सामाजिक समीकरण
अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित इस विधानसभा में आदिवासी समुदाय की आबादी करीबन 52 फीसदी, मुस्लिम-6 फीसदी है. लेकिन बड़ी बात है यह है पोटका को भूमिज जनजाति का गढ़ माना जाता है. इस सीट से आज तक किसी भी गैर भूमिज चेहरे को जीत नहीं मिली. इस सीट पर अब तक झामुमो-4 भाजपा-4 कांग्रेस-1 और जनता दल को एक बार जीत मिली है. 1977- सनातन सरदार-जनता दल, 1980- सनातन सरदार-भाजपा,1985 सनातन सरदार- कांग्रेस, 1990- हरिराम सरदार-झामुमो, 1995 हरिराम सरदार- झामुमो, 2000- मेनका सरदार- भाजपा, 2005- अमुल्य सरदरा-झामुमो, 2009- मेनका सरदार- भाजपा, 2014- मेनका सरदार- भाजपा, 2019- संजीव सरदार- झामुमो को जीत मिली है. यानि कुल मिलाकर झामुमो-4 भाजपा-4 कांग्रेस-1 और जनता दल के हिस्से एक बार जीत आयी है, लेकिन इसमें से कोई भी गैर भूमिज चेहरा नहीं है. इस हालत में सरसांवा के बाद अर्जुन मुंडा के लिए पोटका भी एक मुश्किल अखाड़ा साबित हो सकता है. जिस चाहत के साथ पोटका का रुख किया है, पोटका का अब तक का इतिहास उस चाहत को पूरा करता नजर नहीं आता, इस बीच भाजपा के लिए एक बूरी खबर यह भी है कि इस टिकट वितरण से नाराज मेनका सरदार ने भाजपा की प्राथमिक सदस्यता से इस्तीफा सौंप दिया है. इस हालत में साफ है कि भाजपा के इस फैसले से पोटका विधानसभा में सब कुछ सामान्य नहीं है. देखना होगा कि भाजपा भूमिज आदिवासियों की इस नाराजगी को दूर कैसे करती है.