झारखंड की सियासत में कल्पना की सुनामी! मंईयां सम्मान योजना बना झामुमो का मास्टर स्ट्रोक
कांग्रेस राजद पर भी मंडराया खतरा
भाजपा अंतिम जोर लगाने की तैयारी में है. सीता और गीता का हथियार भले ही नाकाम हो गया हो गया हो, लेकिन अभी पूरा चुनाव बाकी है, और चुनावी समर में कब कौन सा हवा निकल पड़े कुछ कहा नहीं जा सकता. इसी बीच भाजपा में मीरा मुंडा की एंट्री की भी चर्चा तेज हो चुकी है
रांची: झारखंड की सियासत में इन दिनों एक नाम जो सबसे ज्यादा चर्चा में हैं, वह नाम है कल्पना सोरेन का. कई सियासी जानकारों के द्वारा इसे झारखंड में कल्पना सोरेन की सुनामी बतायी जा रही है. उनका दावा है कि इस सुनामी में ना तो सीता सोरेन का पैर जमीन पर टिक रहा है और ना ही गीता कोड़ा इस बबंडर तो थाम पा रही हैं और तो और जिस चाचा चंपाई को ढोल बाजे के साथ भगवा पट्टा पहनाते हुए कोल्हान फतह का सपना पाला गया था. उसी कोल्हान में कल्पना सोरेन की सभाओं में उमड़ी भीड़ से भाजपा के रणनीतिकारों के होश फाब्ता है. इस सुनामी के सामने भाजपा के सारे ब्रह्माशास्त्र और दिव्याशास्त्र फुस्स साबित हो रहे है. कल्पना की सुनामी का असर यह है कि बंगलादेश घुसपैठिया का मुद्दा जो अब तक भाजपा का सबसे बड़ा हथियार था. एकबारगी उसके पंच प्रण से बाहर हो गया, जिस तरीके से कल्पना सोरेन मंईयां सम्मान योजना का पोस्टर बॉयज बन का सामने आई है और सभाओं में भीड़ उमड़ रही है, भाजपा को बांग्लादेशी घुसपैठिया का मुद्दा पीछे छोड़ कर चुनावी लॉलीपॉप की ओर लौटना पड़ा. मंईयां सम्मान योजना की काट में गोगो दीदी योजना की चुनावी बिसात बिछानी पड़ी, पांच रुपए में सिलेंडर और हर साल दो मुफ्त सिलेंडर का रास्ता अपनाना पड़ा. चाहे पलामू प्रमंडल हो या संथाल या फिर कोल्हान हर तरफ सिर्फ कल्पना सोरेन का चेहरा देखने को मिल रहा है. जिस अंदाज में कल्पना सोरेन हिंदी, संथाली, उड़िया अंग्रेजी और मुंडारी में एक साथ धारा प्रवाह बोल रही है, आधी आबादी को अपने साथ आत्मसात कर रही है. महिलाओं को कल्पना सोरेन के चेहरे में दीदी-बेटी नजर आती है तो युवाओं में भाभी का चेहरा और यही भाजपा के लिए एक बड़े खतरे की घंटी है.
कांग्रेस राजद पर भी मंडराया खतरा
इस सुनामी में सिर्फ भाजपा के पाये ही नहीं डोल रहे हैं, इण्डिया गठबंधन के घटक दल कांग्रेस और राजद भी झटका खाता दिख रहा है. सियासी गलियारों में इसकी चर्चा तेज है कि इस बार जेएमएम कांग्रेस और राजद की सीटों में कटौती होना तय है. पिछली बार रघुवर सरकार के प्रति नाराजगी और उस नाराजगी से हेमंत सोरेन के प्रति आदिवासी मूलवासी मतदाताओं का जो गोलबंदी हुई, उसके कारण कांग्रेस 31 सीटों पर चुनाव लड़ कर 16 सीट पर जीत दर्ज करने में सफल रही, जबकि सात सीटों पर लालटेन उतार कर एक सीट टिमटिमाने वाली राजद को तीन से चार सीटों पर समेटनी की तैयारी है.
कांग्रेस राजद ने भी डाल दिये हैं हथियार
कल्पना की इस सुनामी में कांग्रेस राजद ने भी लगभग हथियार डाल दिए है, उसे कांग्रेस और राजद दोनों को पता है कि यदि गठबंधन से बाहर होने का रास्ता अपनाया तो झामुमो सभी 81 सीटों पर अपना प्रत्याशी उतारने का फैसला कर सकती है. इस हालत में वर्तमान संख्या बल को बनाये रखना भी चुनौती होगी,जबकि कल्पना की इस सुनामी में कम सीटों पर चुनाव लड़ कर भी वर्तमान सीटों की संख्या में बढ़ोतरी की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता.
अंतिम जोर लगाने की तैयारी में भाजपा
लेकिन, भाजपा अंतिम जोर लगाने की तैयारी में है. सीता और गीता का हथियार भले ही नाकाम हो गया हो गया हो, लेकिन अभी पूरा चुनाव बाकी है, और चुनावी समर में कब कौन सा हवा निकल पड़े कुछ कहा नहीं जा सकता. इसी बीच भाजपा में मीरा मुंडा की एंट्री की भी चर्चा तेज हो चुकी है. दावा किया जा रहा हैं कि जिस खरसांवा विधान सभा से अर्जुन मुंडा जेएमएम और भाजपा के चुनाव चिन्ह पर चार-चार बार विधानसभा पहुंच चुके हैं, लेकिन 2014 में दसरथ गहराई के हाथों मिली हार के बाद वह इस बार दसरथ गहराई का मुकाबला करने से बचने की कोशिश में हैं. पहले खरसांवा में हार और फिर खूंटी में मिली पराजय के बाद कोई रिस्क नहीं लेना चाहते. दावा किया जा रहा है कि अर्जुन मुंडा इस बार खरसांवा सीट से अपनी पत्नी मीरा मुंडा को मैदान में उतारने की तैयारी में है.
मीरा पर दांव
रणनीति यह है कि एक तरफ अर्जुन मुंडा खरसांवा में मीरा मुंडा के प्रचार का कमान संभालेंगे तो मीरा मुंडा खरसांवा से बाहर कल्पना के खिलाफ चुनावी रैलियों में ताल ठोकेगी. ताकि कल्पना की इस सुनामी पर ब्रेक लगाया जा सके,अब देखना होगा की कल्पना की इस सुनामी से मीरा भाजपा को निजात दिलाती है या खुद भी इस सुनामी को शिकार होकर एक बार फिर से दशरथ गगराई को जीत का हैट्रिक लगाने का अवसर देती है.