चंदनकियारी में झामुमो ने कर दिया खेला! नेता विपक्ष अमर बाउरी की बढ़ी मुश्किल
केला छोड़ तीर धनुष थामने की तैयारी में उमकांत रजक
आजसू उमाकांत रजक के सवाल पर एनडीए से रिश्ता नहीं तोड़ना चाहती और इधर उमाकांत रजक अब आजसू के साथ खड़ा होकर अपना सियासी करियर दांव पर लगाने नहीं चाहते. और यही वह कारण है, जिसके कारण हेमंत सोरेन के साथ बंद कमरे में उनकी मुलाकात होती है. लेकिन बड़ा सवाल यह है कि यह अमर बाउरी की मुश्किल कितनी बढ़ने वाली है
रांची: इसके पहले की झारखंड के लिए भाजपा की पहली सूची जारी होती, झामुमो ने बड़ा खेला कर दिया, और यह खेला भी किसी ऐरे-गैरे की सीट पर नहीं हुई, खेल तो नेता विपक्ष अमर बाउरी की सीट पर हो गया. सियासी गलियारों में इस बात की चर्चा तेज है कि चंदनकियारी के पूर्व विधायक आजसू नेता उमाकांत रजक ने सीएम हेमंत के साथ मुलाकात की है, हालांकि उमाकांत रजक की ओर से अभी भी इसका खंडन किया जा रहा है. लेकिन सियासी संग्राम में इस तरह का खंडन का आम बात है, जब तक पूरी बात बन नहीं जाती, इस तरह का खंडन-मंडन का दौर चलता ही रहता है. सीएम हेमंत के साथ उमाकांत रजक की मुलाकात हुई या नहीं, इसका फैसला तो झामुमो की सूची सामने आते ही हो जायेगा. लेकिन इस मुलाकात की खबर मात्र से अमर बाउरी के होश उड़े नजर आ रहे हैं. उनके सामने सियासी संकट मंडराने लगा है और इसका कारण भी बेहद साफ है.
उमाकांत रजक के प्लान पर भाजपा की निगाह
उमाकांत रजक चंदनकियारी के सियासी अखाड़े का एक मजबूत खिलाड़ी रहे हैं. वर्ष 2009 में उन्होंने आजसू के चुनाव चिह्न पर जीत भी दर्ज की थी. हालांकि वर्ष 2014 में उमाकांत रजक को झाविमो मोर्चे के बनैर पर सियासी अखाड़े में उतरे अमर बाउरी के हाथों करीबन 34 हजार मतों से शिकस्त मिली, लेकिन वर्ष 2014 में बाबूलाल का झंडा उतार कर अमर बाउरी ने भाजपा का झंडा थाम लिया, बावजूद इसके अमर बाउरी ने इस बार जबरदस्त मुकाबला किया, जहां अमर बाउरी को 67,739 के साथ जीत मिली तो उमकांत रजक ने भी 58,528 वोट प्राप्त कर यह साबित कर दिया कि चंदनकियारी के अखाड़े में वह एक मजबूत पहलवान है, जिस कम आंकना एक भारी भूल है.
उमकांत रजक की मुश्किल
लेकिन उमकांत रजक की मुश्किल यह है कि सारी जोर आजमाईश के बावजूद चंदनकियारी सीट आजसू के खाते में जाती नहीं दिख रही है, भाजपा यहां से अमर बाउरी को वापस लेने को तैयार नहीं है, और सुदेश महतो चंदनकियारी के सवाल के एक बार फिर से 2014 के तरह भाजपा के साथ रिश्ता खराब नहीं करना चाहते. 2014 में इसी भूल के कारण रघुवर दास की सत्ता से विदाई हुई थी. इसके साथ ही आजसू को भी झटका लगा था. भाजपा 25 तो आजसू दो पर सिमट गयी, जबकि वर्ष 2009 में उसके पास पांच विधायक थें.
केला छोड़ तीर धनुष थामने की तैयारी में उमकांत रजक
इस हालत में आजसू उमाकांत रजक के सवाल पर एनडीए से रिश्ता नहीं तोड़ना चाहती और इधर उमाकांत रजक अब आजसू के साथ खड़ा होकर अपना सियासी करियर दांव पर लगाने नहीं चाहते. और यही वह कारण है, जिसके कारण हेमंत सोरेन के साथ बंद कमरे में उनकी मुलाकात होती है.
लेकिन बड़ा सवाल यह है कि यह अमर बाउरी की मुश्किल कितनी बढ़ने वाली है तो, हमें यह समझना होगा कि अमर बाउरी को वर्ष 2014 में 81,925 वोट आया था तो उमकांत रजक को महज 47 हजार (34 हजार मतों), लेकिन वर्ष 2019 में उमकांत रजक 58,528 मिला तो अमर बाउरी को 67,739 के साथ जीत मिली. यानि जीत हार का अंतर महज नौ हजार पर सिमट गया. लेकिन इसके साथ ही झामुमो के विजय कुमार राजवार के हिस्से भी 36,400 वोट आया. अब यदि झामुमो और उमाकांत रजक के वोट को आपस में जोड़ दें तो यह भाजपा को मिले कुल वोट से करीबन 27 हजार जाता होता है, और यही वह खेल है जो अमर बाउरी की रातों की नींद उडाये हुए है.