विधानसभा चुनाव 2024: रांची में भाजपा का हिलता किला! जीत के करीब आकर चुक गयी थी महुआ माजी
जीत के बाद मंत्री पद की मजबूत दावेदार
झामुमो की ओर से अभी तक प्रत्याशियों का एलान नहीं हुआ है, लेकिन सूत्रों का दावा है कि इस बार भी झामुमो महुआ माजी पर ही दांव लगाने की तैयारी में है. यदि महुआ माजी को इस मुकाबले में जीत मिलती है और महागठबंधन की सरकार एकबार फिर से सत्ता में वापसी करती है तो महुआ माजी को मंत्री पद का एक मजबूत दावेदार भी माना जा रहा है. मंत्री बनने की यह संभावना भी रांची के मतदाताओं पर असर डाल सकता है.
रांची: वर्ष 1996 से रांची विधान सभा सीट पर खिलता कमल, इस बार मुश्किलों के दौर में है. 1996 से लगातार सात बार भाजपा को विजय दिलाने वाले सीपी सिंह उम्र के 69 वर्ष से गुजर रहे हैं. इस बीच ना जाने कितनी पीढ़ियां बदल गयी, लेकिन नहीं बदला तो रांची में सीपी सिंह का चेहरा. लेकिन अब भाजपा के अंदर उसी चेहरे पर सवाल खड़ा होने लगा है, बदलते वक्त के अनुरुप नये चेहरे की चर्चा तेज हो चुकी है, सीपी सिंह के विकल्प के रुप में भाजपा के अंदर रमेश सिंह, डॉ रामाधीन के साथ ही कई दूसरे चेहरों पर चर्चा जारी है. हालांकि अभी भी सीपी सिंह अपने आप को रेस में बनाये हुए हैं. अपने उम्र को लेकर उठते सवाल को वह भाजपा के उन कार्यकर्ताओं की साजिश बताते हैं, जिनकी चाहत किसी भी प्रकार उन्हे अखाड़े से हटाने की है. भाजपा के अंदर के बदलाव की चर्चा करते हुए सीपी सिंह कहते हैं वह भाजपा दूसरी थी, जिस भाजपा में उनकी शुरुआत हुई थी, आज तो हर पार्टी में आया राम गया की चलती है, पार्टी के प्रति निष्ठा और अटूट आस्था अब गुजरे जमाने की बात हो गयी है. जिस प्रकार सीपी सिंह आया राम गया राम की बात कर रहे हैं, उससे साफ है कि अपनी बढ़ती उम्र पर सवाल खड़ा करना उन्हे रास नहीं आ रहा.
घटता जा रहा है हार जीत का फासला
सीपी सिंह की शिकायत और चाहत को अलग रख दें तो भाजपा रणनीतिकारों की चिंता कुछ दूसरी है. दरअसल जो रांची कभी भाजपा का किला हुआ करता था, आज वह किला हिलता हुआ नजर आने लगा है, पिछले दो विधानसभा चुनाव से झामुमो लगातार अपनी किलेबंदी को मजबूत कर रहा है, हालांकि जीत उसके हिस्से नहीं आ रही, लेकिन जीत हार का अंतर सिमट चुका है. वर्ष 2014 में सीपी सिंह ने झामुमो की महुआ माजी से करीबन 58 हजार का लिड लेने में सफलता प्राप्त की थी, लेकिन वर्ष 2019 में महुआ माजी महज पांच हजार से चूक गयी. इस मुकाबले में सीपी सिंह के वोट फीसदी में करीबन 17.59 फीसदी गिरावट देखने को मिली थी, जबकि महुआ माजी के वोट फीसदी में 18.51 की बढ़ोतरी दर्ज हुई थी. साफ है कि यदि चार से पांच फीसदी वोटों में भी अंतर आया तो इस बार सीपी सिंह का 1996 से शुरु हुआ काफिला पर विराम लग सकता है. इस बीच मंईयां सम्मान योजना कारण महिलाओं के बीच झामुमो की पैठ भी कुछ ज्यादा ही मजबूत होती दिखलायी पड़ रही है. और यही वह खतरा है, जो भाजपा के रणनीतिकारों को परेशान किये हुए है.
जीत के बाद महुआ माजी मंत्री पद की मजबूत दावेदार
हालांकि झामुमो की ओर से अभी तक प्रत्याशियों का एलान नहीं हुआ है, लेकिन सूत्रों का दावा है कि इस बार भी झामुमो महुआ माजी पर ही दांव लगाने की तैयारी में है. यदि महुआ माजी को इस मुकाबले में जीत मिलती है और महागठबंधन की सरकार एकबार फिर से सत्ता में वापसी करती है तो महुआ माजी को मंत्री पद का एक मजबूत दावेदार भी माना जा रहा है. मंत्री बनने की यह संभावना भी रांची के मतदाताओं पर असर डाल सकता है. क्योंकि फिलवक्त रांची से हेमंत सरकार में कोई चेहरा नहीं है.
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