झामुमो को चाहिए बाबूलाल! भाजपा में फूट डालने की रणनीति या आसान चारे की खोज
43 फीसदी लोगों की पसंद बाबूलाल मरांडी
जहां तक सर्वे का सवाल तो, वह भी संदेहास्पद है, क्योंकि इस सर्वे में इस बात की जानकारी नहीं दी गयी है कि उसका सैंपल साइज क्या है? कितने लोगों से राय ली गयी है, और जिन लोगों से राय ली गयी है, उनका सामाजिक आधार क्या है? वह आदिवासी-मूलवासी समाज से हैं या शहरी मतदाता, सर्वे में कुछ भी साफ नहीं है. लेकिन मूल सवाल यह है कि क्या बाबूलाल मरांडी को इतनी आसानी से खारिज किया जा सकता है
रांची: सियासत भी अजीब खेल है, यहां कब कौन दुश्मन से दोस्त हो जाय और कौन दोस्त से दुश्मन में बदल जाय, कुछ भी कहना मुश्किल है. कहा जाता है कि राजनीति में ना तो कोई स्थायी दोस्त होता है और ना की जन्म-जन्म की दुश्मनी होती है. कुछ यही कहानी इन दिनों झारखंड की सियासत में देखने को मिल रही है. कल तक कुतुबमीनार की याद दिलाने वाले झामुमो नेताओं का बाबूलाल मरांडी को लेकर प्यार उमड़ रहा है. बेचैनी इतनी तेज है कि एक चैनल के एक सर्वे को आघार बना कर यह सवाल दागा जा रहा है कि जिस बाबूलाल को झारखंड की 42 फीसदी जनता अगला सीएम के रुप में देखना चाहती है. उस बाबूलाल को चंपाई सोरेन, मुध कोड़ा, अर्जुन मुंडा और रघुवर दास के साथ भीड़ का हिस्सा क्यों बनाया जा रहा है. इतनी अपार लोकप्रियता के बावजूद वह बाबूलाल को अपना चेहरा क्यों नहीं बना रही? उबाल लेती लोकप्रियता के बावजूद बगैर किसी चेहरे के ही मैदान में क्यों उतरना चाहती है? आखिर इसकी वजह क्या है? बाबूलाल ने ऐसा क्या गुनाह किया है कि इस कद्दवार चेहरे को पीछे रखा जा रहा है?
झारखंड 43 फीसदी जनता की पसंद बाबूलाल मरांडी
दरअसल एक चैलन के सर्वे में इस बात का दावा किया गया है कि झारखंड की 43 फीसदी जनता बाबूलाल मरांडी को राज्य को अगला सीएम के रुप में देखना चाहती है, जबकि 32 फीसदी लोगों की पसंद सीएम हेमंत को बताया गया है, अर्जुन मुंडा को 9 फीसदी और 5 फीसदी लोगों की पसंद बतायी गयी है और अब इसी को लेकर पूरा बवाल खड़ा होता नजर आ रहा है. झामुमो नेताओं की माने तो इस सर्वे प्रायोजित है. इसका जमीनी सच्चाई से दूर-दूर तक कोई रिश्ता नहीं है. यही कारण है कि वह भाजपा को बाबूलाल को सामने रख कर अखाड़े में उतरने की चुनौती पेश करी है. वही कुछ जानकारों का यह भी दावा है कि झामुमो बाबूलाल के नाम को उछाल कर भाजपा के अंदर ही गृह युद्ध करवाना चाहती है. ताकि अर्जुन मुंडा, चंपाई सोरेन के साथ ही सीता सोरेन का सपना टूटता नजर आये. दावा किया जाता है कि सीता सोरेन को भी सीएम कुर्सी का सपना दिखलाकर ही भाजपा में शामिल करवाया गया था. साफ है कि बाबूलाल को सीएम फेस बनाने की इस बेचैनी के पीछे असली मकसद चुनावी दगंल में उतरने के पहले भाजपा में फूट डलवाने की मंशा है.
सर्वे के सैंपल पर सवाल
जहां तक सर्वे का सवाल तो, वह भी संदेहास्पद है, क्योंकि इस सर्वे में इस बात की जानकारी नहीं दी गयी है कि सर्वे का सैंपल साइज क्या है? कितने लोगों से राय ली गयी है, और जिन लोगों से राय ली गयी है, उनका सामाजिक आधार क्या है? वह आदिवासी-मूलवासी समाज से हैं या शहरी मतदाता, सर्वे में कुछ भी साफ नहीं है. लेकिन मूल सवाल यह है कि बाबूलाल मरांडी को झारखंड की सियासत में इतनी आसानी से खारिज किया जा सकता है? जिस तरह झामुमो की ओर से बाबूलाल को चेहरा बनाने की चुनौती दी जा रही है, यदि भाजपा ने यह स्वीकार कर लिया तो तब की परिस्थितियां क्या होगी? बाबूलाल सूबे झारखंड के प्रथम मुख्यमंत्री रहे हैं. झारखंड की सियासत में उनका एक कद है. यदि यह दांव उलटा पड़ गया तो झामुमो की मुश्किलें बढ़ भी सकती है, हालांकि बाबूलाल के चेहरे बावजूद लोकसभा चुनाव में आदिवासी बहुल सभी सीटों से भाजपा को हार का सामना करना पड़ा था, बाबूलाल के प्रति झामुमो का जो प्रेम उमड़ रहा है, उसकी वजह भी यही है, लेकिन यह सियासत है, यहां हर दांव सही जगह ही लगे, यह दावे के साथ नहीं कहा जा सकता, कई बार निशाना चुकता भी है, और यदि निशाना चुका तो झामुमो का पूरा खेल भी बिगड़ सकता है.