निशाने पर बाबूलाल या बाबूलाल का निशाना: झारखंड चुनाव में भाजपा की सत्ता वापसी पर मरांडी होंगे सीएम की कुर्सी के दावेदार

चंपाई सोरेन के भाजपा में शामिल होने से बढ़ी दावेदारी

निशाने पर बाबूलाल या बाबूलाल का निशाना: झारखंड चुनाव में भाजपा की सत्ता वापसी पर मरांडी होंगे सीएम की कुर्सी के दावेदार
रांची में रक्षा प्रदर्शनी में बाबूलाल मरांडी (फाइल फोटो )

अगला विधानसभा चुनाव बाबूलाल मरांडी के नेतृत्व में झारखंड भाजपा का अंतिम चुनाव हो सकता है। यदि आदिवासी बहुल सीटें बीजेपी के हाथ से निकलती और दूसरी तरफ कोल्हान टाइगर का अपने क्षेत्र में प्रदर्शन बेहतर रहा तो किस्सा कुर्सी का बाबूलाल के हाथों से निकल चंपाई दा के हिस्से में जा सकता है

रांची: क्या इस विधानसभा चुनाव में निशाना सटीक बैठेगा और 5 साल बाद सत्ता में वापसी करते हुए 21 साल बाद फिर से सीएम की कुर्सी पर बैठने का मौका मिलेगा. मन में ऐसे ही कई सवालों को रख निशाना साधते यह हैं झारखंड भाजपा के अध्यक्ष और राज्य के प्रथम मुख्यमंत्री रहे बाबूलाल मरांडी. 

दरअसल यह तस्वीर कुछ दिनों पुरानी है जब बाबूलाल मरांडी रांची में आर्मी, एयरफोर्स और नेवी की ओर से संयुक्त रूप से आयोजित सशक्त सेना, समृद्ध भारत प्रदर्शनी को देखने मोराबादी मैदान पहुंचे थे तो वहां प्रदर्शित भारतीय सेना के हथियारों को करीब से देखा था, लेकिन इस तस्वीर को झारखंड की राजनीति से भी जोड़कर देखना चाहिए क्योंकि जल्दी ही झारखंड में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं और भाजपा यहां प्रमुख विपक्षी दल है।

भाजपा की कोशिश 5 साल बाद एक बार फिर से सत्ता की वापसी की है। पार्टी ऐसा कर पाने में यदि सफल रहती है तो क्या बाबूलाल मरांडी सीएम पद के स्वाभाविक दावेदार होंगे या नहीं, यह सवाल बेहद महत्वपूर्ण है क्योंकि बीते दिनों झारखंड के एक और पूर्व सीएम चंपाई सोरेन भाजपा में शामिल हो चुके हैं। इस तरह से पार्टी में अब पांच पूर्व मुख्यमंत्री हो चुके हैं। इनमें बाबूलाल के अलावा अर्जुन मुंडा, चंपाई सोरेन, मधु कोड़ा रघुवर दास का नाम लिया जा सकता है हालांकि तकनीकी रूप से ओड़िशा का राज्यपाल बनाए जाने के बाद उन्होंने भाजपा की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया है लेकिन भाजपा में खासकर कोल्हान में उनकी पकड़ आज भी मजबूत मानी जाती है।    

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प्रदर्शनी में अत्याधुनिक हथियार को थामे प्रदेश भाजपा अध्यक्ष बाबूलाल मरांडी

 

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राजनीति में भी सही समय पर सही निशाना साधना भी बेहद जरूरी है, नहीं तो कभी 5 साल तो कभी 15 साल इंतजार करने पर मजबूर होना पड़ता है. बाबूलाल मरांडी इसे बखूबी समझते हैं. पिछले विधानसभा चुनाव के ठीक पहले उनके बीजेपी में शामिल होने की चर्चा जोरों पर थी. लेकिन ऐसा तब हुआ नहीं और दोनों चुनाव मैदान में अगल-अलग थे। जब चुनाव का परिणाम घोषित हुआ तो उनका व भाजपा का नुकसान हो चुका था और भाजपा सत्ता से पांच साल के लिए बाहर हो चुकी थी, क्योंकि कई सीटों पर बाबूलाल मरांडी की तत्कालीन पार्टी झाविमो के उम्मीदवारों को मिले वोट बीजेपी उम्मीदवारों की हार के अंतर से ज्यादा थे.

बाबूलाल की आखिरी लड़ाई

अगला विधानसभा चुनाव बाबूलाल मरांडी के राजनीतिक अस्तित्व की आखिरी लड़ाई मानी जा रही है। 14 महीने पहले जब उन्हें प्रदेश भाजपा अध्यक्ष की जिम्मेदारी दी गई थी तो उस समय उनके नेतृत्व को न तो कोई चुनौती थी और न ही चेहरा क्योंकि कुछ समय बाद ही रघुवर दास को ओड़िशा का राज्यपाल बना दिया गया था तो अर्जुन मुंडा केंद्रीय मंत्री का दायित्व संभाल रहे थे तो ऐसे में बाबूलाल मरांडी के लिए पहली चुनौती लोकसभा में आदिवासी सीटों पर कमल खिलाने की थी लेकिन वह इसमें पूरी तरह से विफल रहे और भाजपा 2004 के बाद पहली बार एक भी आदिवासी सीटें यानी सभी पांच सीट हार गई तो भाजपा शीर्ष नेतृत्व का मन भी बाबूलाल मरांडी से डोल गया और एक ऐसे आदिवासी चेहरे की तलाश शुरू हुई जो बेदाग होने के साथ-साथ निर्विवाद भी रहे। यह तलाश पूर्व सीएम चंपाई सोरेन के रूप में पूरी हुई।

ऐसे में कहा जा रहा है कि अगला विधानसभा चुनाव बाबूलाल मरांडी के नेतृत्व में झारखंड भाजपा का अंतिम चुनाव हो सकता है। यदि आदिवासी बहुल सीटें बीजेपी के हाथ से निकलती और दूसरी तरफ कोल्हान टाइगर का अपने क्षेत्र में प्रदर्शन बेहतर रहा तो किस्सा कुर्सी का बाबूलाल के हाथों से निकल चंपाई दा के हिस्से में जा सकता है और बाबूलाल एक बार फिर से राजनीति में निशाना चूक सकते हैं। 

Edited By: Shailendra Sinha
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