मासस-माले विलय: एक दर्जन सीटों पर लाल झंडा की दावेदारी! जानिये किन-किन सीटों पर फंस सकता है कांटा
एक हाथ से ताली नहीं बजती, इंडिया गठबंधन को निकालना होगा रास्ता
कुल मिलाकर यही तीन से चार सीट है, जो माले के हिस्से आ सकती है, लेकिन इसके साथ ही सीपीआई के रुख का भी ध्यान रखना होगा
रांची: विधानसभा चुनाव के ठीक पहले मासस माले नामक दो लाल झंडाधारी पार्टियों का विलय विपक्ष की राजनीति के हिसाब से एक बड़ी घटना है. विधानसभा चुनाव में इसका लाभ इंडिया गठबंधन को मिल सकता है. खास कर कोयलांचल में इस विलय से एक नयी तस्वीर सामने आ सकती है. लेकिन इसके साथ ही इंडिया गठबंधन की चुनौतियां भी बढ़ती नजर आ रही है. इस विलय के बाद इंडिया गठबंधन के अंदर करीबन दर्जन भर सीटों पर नया समीकरण देखने को मिलेगा. झामुमो के साथ ही कांग्रेस के हिस्से की सीटों में भी कटौती की जा सकती है. इस विलय के पहले माले की ओर से करीबन पांच सीटों पर दावेदारी ठोकी जा रही थी, लेकिन अब मासस के साथ आ जाने के बाद सीटों की संख्या में बढ़ोतरी का दवाब बनाया जाने लगा है.
एक हाथ से ताली नहीं बजती, इंडिया गठबंधन को निकालना होगा रास्ता
इस विलय को झारखंड की सियासत में एक बड़ी घटना बताते हुए पूर्व विधायक और माले नेता राजकुमार यादव ने कहा कि इस विलय के बाद हम करीबन एक दर्जन सीटों पर मजबूत स्थिति में है, यदि इंडिया गठबंधन वाकई भाजपा को रोकने की मंशा रखता है तो जमीनी सच्चाई को स्वीकार करते हुए सीट शेयरिंग पर नये सिरे से विचार करना होगा. आखिरकार हमारी इस बढ़ी हुई ताकत का लाभ इंडिया गठबंधन को ही मिलना है, राजकुमार यादव ने कहा कि ताली एक हाथ से नहीं बजती, यदि हम कुछ सीटों की कुर्बानी देने को तैयार हैं, तो इंडिया गठबंधन के दूसरे सहयोगियों को भी कुर्बानी देनी होगी, किसी भी गठबंधन की यह पहली शर्त है. हालांकि राजकुमार यादव ने यह भी साफ किया कि यह कोई बड़ा मुद्दा नहीं है, इसका समाधान निकाल लिया जायेगा.
इन सीटों पर है माले की दावेदारी
आपको बता दें कि राजकुमार यादव ने निरसा, सिंदरी, धनबाद, चंदनकियारी, मांडू, रामगढ़, पांकी, चतरा, कोडरमा, बरकट्टा, बगोदर, राजधनवार और जमुआ की सीटों पर माले की दावेदारी पेश की है. लेकिन इसमें से कई सीटों पर कांग्रेस और झामुमो की भी मजबूत दावेदारी है. जिसके कारण महागठबंधन के अंदर खींचतान की स्थिति बन सकती है.
निरसा में झामुमो के सामने सियासी उलझन
निरसा विधानसभा से फिलहाल भाजपा के अन्नपूर्णा देवी विधायक है, यह मासस के अरुप चटर्जी का सियासी किला भी रहा है, 2009 और 2014 में वह निरसा से मासस के चुनाव चिह्न पर जीत दर्ज कर चुके हैं, लेकिन यहां झामुमो का भी एक प्रभाव रहा है, झामुमो के अशोक मंडल ने पिछले विधानसभा चुनाव में करीबन 47 हजार वोट हासिल किया था, यदि यह सीट माले के पास जाती है तो फिर अशोक मंडल को लेकर झामुमो की उलक्षण बढ़ सकती है.
सिंदरी में झामुमो का संकट
फिलहाल सिंदरी विधानसभा की सीट भाजपा के इन्द्रदेव महतो के पास है, इन्द्रदेव महतो काफी अर्से से कॉमा की स्थिति में हैं, उनका इलाज चल रहा है, दावा किया जाता है कि इस बार भाजपा उनकी पत्नी को मैदान में उतारे का इरादा रखती है, इस सीट पर भी मासस का मजबूत पकड़ रही है. वर्ष 2019 में मासस के आनन्द महतो ने 72,714 के साथ भाजपा के सामने मजबूत चुनौती पेश की थी, इस बार भी मासस इस सीट पर अपना मजबूत दावा ठोकेगी, लेकिन बड़ा सवाल यह है कि अब इस बदली हुई परिस्थितियों में झामुमो के फूलचंद मंडल की सियासत का क्या होगा, पिछले विधानसभा चुनाव में 33,583 लाकर तीसरा स्थान प्राप्त किया था, वह इस सीट से दो दो बार के विधायक भी रहे है, इस हालत में झामुमो के सामने फूलचंद मंडल को सियासी अखाड़े से दूर रखने की चुनौती होगी.
धनबाद में फंस सकता है कांग्रेस का कांटा
हालांकि वर्ष 2014 और 2019 में लगातार भाजपा धनबाद में झंडा फहराने में सफल रही है, लेकिन यह कांग्रेस का भी गढ़ रहा है. मनन मल्लिक ने 2009 में कांग्रेस का झंडा भी बुलंद किया था, लेकिन अब माले इस सीट पर दावेदारी ठोक रही है, यदि माले की शर्त मानी जाती है, तो फिर कांग्रेस को यह सीट त्यागनी पड़ेगी, देखना होगा कि कांग्रेस इस त्याग के लिए तैयार होती है या फिर माले को अपनी जिद छोड़नी पड़ती है.
चंदनकियारी में झामुमो का पेंच
वर्ष 2000 और 2005 में यह सीट झाममो के पास रही है, हारु राजवार ने ही दोनों बार यह सीट झामुमो की झोली में डाला था, फिलहाल इस सीट से नेता प्रतिपक्ष अमर बाउरी विधायक है, वर्ष 2019 में झामुमो के विनय कुमार राजवार ने करीबन 36 हजार वोट प्राप्त किया था, जबकि मासस के लाल मोहन राजवार के हिस्से महज 1391 वोट आया था, अब झामुमो इस सीट पर इतनी बड़ी कुर्बानी क्यों करेगी, यह एक बड़ा सवाल है.
झामुमो का मजबूत किला मांडू पर माले की नजर
मांडू झामुमो का मजबूत किला रहा है, झामुमो का एक बड़ा कुर्मी चेहरा टेकलाल महतो की यह कर्म भूमि रही है. 2000 और 2009 में टेकलाल महतो इसी सीट से विधायक रहे हैं, उसके पहले भी इस सीट पर झामुमो का झंडा बुलंद होता रहा है. हालांकि वर्ष 2014 और 2019 में टेकलाल महतो के बेटे जयप्रकाश भाई पटेल के चेहरे के सहारे भाजपा को कमल खिलाने में कामयाबी जरुरी हाथ लगी, लेकिन लोकसभा चुनाव के पहले जयप्रकाश भाई पटेल कांग्रेस का साथ चले गयें, इस हालत में झामुमो इस सीट को किसी दूसरे के झोली में डालने की भूल करेगी, इसकी गुंजाईश बनती नहीं दिखती.
रामगढ़ विधानसभा में कांग्रेस की चुनौती
रामगढ़ आजसू का मजबूत किला रहा है, वर्ष 2005,2009 और 2014 में चन्द्रप्रकाश चौधरी आजसू को जीत दिलवाते रहे हैं. लेकिन वर्ष 2019 में कांग्रेस यह सीट आजसू के हाथ से छीनने में सफल रही, तब ममता ने देवी ने चन्द्र प्रकाश चौधरी की पत्नी और आजसू उम्मीवार सुनीता देवी को करीबन 18 हजार वोट से पटकनी दी थी, हालांकि उपचुनाव में एक बार फिर से आजसू यह सीट अपने नाम करने में कामयाब रही और ममता देवी के पति बजरंग महतो को हार का सामना करना पड़ा, इस हालत में क्या कांग्रेस इस सीट को माले के लिए छोड़ पायेगी, यह भी एक बड़ा सवाल है.
चतरा -कोडरमा में राजद के साथ खड़ी हो सकती है मुश्किलें
चतरा में राजद का मजबूत जनाधार माना जाता है, फिलहाल सत्यानंद भोक्ता राजद के विधायक और हेमंत सरकार में मंत्री हैं, यहां मुख्य मुकाबला राजद और भाजपा के बीच होता रहा है, माले कभी भी इस सीट पर मजबूत स्थिति में नहीं रही, राजद के लिए यह सीट छोड़ना नामुमकिन सा दिखता है. दूसरी ओर कोडरमा झारखंड में राजद की सबसे मजबूत सीट रही है, वर्ष 1990,1995 में रामप्रसाद यादव ने इस सीट से जनता दल का झंडा बुलंद किया तो 2000,2005 और 2009 में अन्नपूर्णा देवी ने लालटेन की कमान संभाली, हालांकि 2014 और 2019 में भाजपा अपना कमल खिलाने में कामयाब रही, इस सीट पर भी माले कभी मजबूत स्थिति में नहीं रही. इस प्रकार यह सीट भी माले के हाथ में जाती हुई नहीं दिखती.
लाल झंडे का खाते में जा सकता है बरकट्ठा
बरकट्टा विधानसभा में माले के अपेक्षाकृत सीपीआई की मजबूत स्थिति रही है, भुवनेश्वर प्रसाद मेहता दो बार विधायक रहे हैं. एक बार लम्बोदर पाठक ने कांग्रेस का परचम लहराया है, लेकिन वह 1985 का दौर था, इस हालत में बरकट्ठा को माले के खाते में दिया जा सकता है, हालांकि माले की यहां कोई दमदार उपस्थिति नहीं रही है.
लाल झंडा का गढ़ बागोदर और राजधनवार
बागोदर को लेकर कोई संशय की स्थिति नहीं बनती, यह वह सीट है, जहां से कभी महेन्द्र प्रसाद सिंह विधानसभा पहुंचते थें, उनकी शहादत के बाद इसकी कमान बेटे विनोद सिंह के हाथ में आयी, इस प्रकार बागोदर को लेकर की विवाद नहीं है. इसी तरह राजधनवार भी माले के हिस्से जाना तय माना जा रहा है, 2014 में राजकुमार यादव इस सीट से विधानसभा पहुंच चुके हैं, यदि इस बार बाबूलाल एक बार फिर से राजधनवार से ताल ठोंकते हैं तो एक बार फिर से राजकुमार यादव के साथ मुकाबला होना तय है.
जमुआ में देखने को मिल सकता है लाल झंडा
जमुआ वह सीट है, जहां वर्ष 1952 से अब तक 4 बार कांग्रेस, दो बार सीपीआई, एक बार राजद, दो बार भाजपा और एक बार झारखंड विकास मोर्चा का झंडा फहरा है, इस सीट पर कांग्रेस के साथ ही राजद भी दावा करती रही है, हालांकि को पहली और अंतिम जीत वर्ष 2000 में मिली थी, इस प्रकार जमुआ भी माले के खाते में दिया जा सकता है. कुल मिलाकर यही तीन से चार सीट है, जो माले के हिस्से आ सकती है, लेकिन इसके साथ ही सीपीआई के रुख का भी ध्यान रखना होगा