क्रांति के पहले 'बगावत'! जयराम को जय राम! बिखरने लगा टाइगर का कुनबा

कोडरमा से चुनाव लड़ने का मिला था ऑफर

क्रांति के पहले 'बगावत'! जयराम को जय राम!  बिखरने लगा टाइगर का कुनबा
संजय मेहता फाइल फोटो

हुत आश्चर्य नहीं हो कि देवेन्द्रनाथ महतो भी संजय मेहता का राह चलता नजर आयें. संजय मेहता के सामने अब मांडू, बड़कागांव और हजारीबाग सदर का विकल्प खुला है, अब  यह उनका फैसला होगा. हालांकि इस फैसले का चुनावी अखाड़े में क्या हश्र होगा, यह भी देखने वाली बात होगी.  जमीनी ताकत की अंतिम परीक्षा तो जंगे-ए -मैदान में ही होती है.

रांची: झारखंड की सियासत में एक भूचाल के रुप में सामने आया टाइगर जयराम का कुनबा अब बिखराव की ओर है. जिस युवा तुर्क से सहारे झारखंड की सियासत में जनपक्षधरता की राजनीति करने का सपना पाला गया था, अब उस सपने पर ग्रहण की शुरुआत हो चुकी है. लोकसभा चुनाव से विधानसभा चुनाव की ओर बढ़ते ही युवा तुर्कों की सियासी हसरतों में बगावट की पटकथा लिख दी गयी. जिन चेहरों के बूते झारखंड की सरजमीन पर क्रांति का सपना पाला गया था, आज वह सपना बगावत के आगोश में सिमटता नजर आ रहा है.

टाइगर जयराम का आंख, कान और नाक माने जाने वाले संजय मेहता ने छोड़ा साथ

 

दरअसल हम बात कर रहे हैं, लोकसभा चुनाव में हजारीबाग के जंगे मैदान में टाइगर जयराम के चेहरे के रुप में अखाड़े में उतरे वाले संजय मेहता की, यह वही संजय मेहता हैं, जिसे कभी टाइगर जयराम का आंख, कान और नाक कहा जाता था और इसका फायदा भी संजय महतो को चुनावी अखाड़े में देखने को मिला. आम आदमी के चुनाव चिह्न पर महज 781 वोट पर सिमटने वाले संजय मेहता को जैसे ही टाईगर जयराम के चेहरे का साथ मिला, आंकड़ा 157977 तक पहुंच गया, हालांकि 654613 वोटों के साथ मनीष जायसवाल यह बाजी अपने नाम कर गयें और कुर्मी चेहरा माने जाने वाले जेपी पटेल को 377927 के साथ दूसरे स्थान पर सिमटना पड़ा, लेकिन निर्दलीय प्रत्याशी के रुप में 157977 वोट हासिल करना, संजय मेहता के लिए एक बड़ी उपलब्धि थी. दावा तो यह भी किया जाता है कि यदि संजय मेहता अखाड़े में नहीं उतरे होते तो आज जीत की बाजी जेपी पेटल के हाथ में होती. कुर्मी-कोयरी मतदाताओं को जो हिस्सा संजय मेहता के साथ गया, यदि वह जेपी भाई पटेल के साथ लामबंद होता तो तस्वीर दूसरी होती.

जयराम को जय राम

 

क्रांति के पहले 'बगावत'! जयराम को जय राम!  बिखरने लगा टाइगर का कुनबा
टाइगर जयराम महतो ( फाइल फोटो)

 

लेकिन जब लोकसभा चुनाव में मिले जनआशीर्वाद के बाद झारखंड लोकतांत्रिक क्रांतिकारी मोर्चा एक पार्टी के रुप में मैदान में कूदने जा रही है. ठीक उसके पहले ही संजय मेहता ने जिस चेहरे के बूते 157977 का मुकाम हासिल किया,  उस चेहरे को ही बॉय-बॉय करने का फैसला कर लिया. अपने इस्तीफे में  संजय मेहता ने लिखा है कि भगवान बिरसा, बाबा साहेब भीमराव अम्बेडकर, सिद्धो-कान्हू और चांद भैरव के सपने का झारखंड बनाना चाहता हूं, इसके लिए चिंतन- मनन की आवश्यक्ता है. साफ है कि संजय मेहता ने पार्टी के उपर कोई आरोप लगाने के बजाय खुद को किनारे करने का फैसला किया है, लेकिन क्या इतना सरल और सहज है, या इस इस्तीफे की पीछे कोई दूसरी कहानी भी है.

इस्तीफे की पीछे कोई कहानी

क्रांति के पहले 'बगावत'! जयराम को जय राम!  बिखरने लगा टाइगर का कुनबा
पार्टी की ओर से जारी कारण बताओ नोटिस


आपको बता दें कि पिछले कुछ महीनों से संजय मेहता की भाषा बदली नजर आ रही थी, वह इशारों-इशारों में ही सही जयराम महतो की कार्यप्रणाली पर सवाल खड़ा कर रहे थें. पार्टी में आंतरिक लोकतंत्र का अभाव होने की बात कर रहे थें और इसके साथ ही विधानसभा चुनाव के लिए  जिस तरीके से संभावित प्रत्याशियों से 5100/ रुपये  की सहयोग राशि लिया जा रहा था, उस पर भी सवाल खड़ा कर रहे थें. हालांकि टाइगर जयराम की ओर सफाई देते हुए दावा किया गया था कि यह पार्टी की गतिविधियों को संचालित करने के लिए एक सहयोग राशि है, कोई आवश्यक शर्त नहीं. कुछ इसी तरह 17 बिन्दूओं का एक पत्र सोशल मीडिया में पोस्ट किया था. जिसके बाद पार्टी की ओर से सफाई की मांग की गयी थी, लगातार तीन बार कारण बताओ नोटिस जारी होने के बावजूद सफाई तो नहीं  आया,  लेकिन इस्तीफा जरुर थमा दिया गया.

भगवान बिरसा और बाबा साहेब के सपनों का झारखंड 

क्रांति के पहले 'बगावत'! जयराम को जय राम!  बिखरने लगा टाइगर का कुनबा
संजय मेहता का दर्द


इस प्रकार साफ है कि पिछले कुछ दिनों से पार्टी के अंदर सब कुछ साफ नहीं था, हालांकि आज भी अपने इस्तीफे में किसी प्रकार की नाराजगी का इजहार के बजाय बिरसा, बाबा साहेब भीमराव अम्बेडकर, सिद्धो-कान्हू के सपनों का झारखंड बनाने के लिए नये सिरे से चिंतन मनन की बात की है. लेकिन अंदर से जो खबर आ रही है. उसके अनुसार लोकसभा चुनाव में 157977 का आंकड़ा छूने के बाद सियासी महत्वाकांक्षा हिलोरे मार रहा था, इस बात का विश्वास होने लगा था कि 781 से 157977 तक का यह सफर टाइगर जयराम के बजाय खुद के चेहरा का करिश्मा है और इसी आत्मविश्वास में मांडू या बड़कागांव या सदर हजारीबाग की सीट पर दावा ठोका जा रहा था.

कोडरमा से चुनाव लड़ने का मिला था ऑफर

लेकिन जयराम की ओर से इन तीनों को विकल्पों को खारिज करते हुए कोडरमा की सीट आॉफर किया जा रहा था, हालांकि अभी भी पार्टी के अंदर कोई अंतिम फैसला नहीं हुआ है, अभी भी विकल्प खुला था, यह ठीक उसी प्रकार की स्थिति है, जो देवेन्द्रनाथ महतो के साथ सिल्ली के अखाड़े में देखने को मिल रही है. देवेन्द्रनाथ महतो किसी भी कीमत पर सिल्ली से ताल ठोंकना चाहते हैं, और जयराम महतो इचागढ़ या कांके का विकल्प देते हैं. लेकिन इस उलझन के बावजूद  देवेन्द्रनाथ महतो अभी भी पार्टी के साथ खड़े हैं. हालांकि यह साथ भी कितनों दिनों का रहेगा, यह भी एक बड़ा सवाल है, बहुत आश्चर्य नहीं हो कि देवेन्द्रनाथ महतो भी संजय मेहता का राह चलता नजर आयें. इस हालत में  संजय मेहता के सामने अब मांडू, बड़कागांव और हजारीबाग सदर का विकल्प खुला है, अब यह उनका फैसला होगा. हालांकि इस फैसले का चुनावी अखाड़े में क्या हश्र होगा, यह भी देखने वाली बात होगी. क्योंकि जमीनी ताकत की अंतिम परीक्षा तो जंगे-ए-मैदान में ही होती है.

Edited By: Devendra Kumar

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