इन 12 सीटों पर नीतीश की नजर! बिहार में सियासी पलटी से झारखंड में भी बिगड़ सकता है खेल

 हुसैनाबाद सौंप कर जदयू के भार से मुक्त हो सकती है भाजपा

इन 12 सीटों पर नीतीश की नजर! बिहार में सियासी पलटी से झारखंड में भी बिगड़ सकता है खेल
नीतीश कुमार ( फाइल फोटो)

सबसे हॉट केक पूर्वी जमशेदपुर की सीट से रघुवर दास मोर्चा खोलते नजर आ रहे हैं,  रघुवर दास के सियासी पैतरे में यह सीट भी फंसती नजर आ रही है, इस हालत में किसी भी सूरत में जदयू के हिस्से दो या तीन सीट से ज्यादा जाता हुआ दिखलायी नहीं पड़ता

रांची: झारखंड में अपनी चुनावी संभावना तलाश रही जदयू को सीट शेयरिंग को लेकर 9 से 10 सितम्बर को दिल्ली में आयोजित बैठक के लिए अब तक आमंत्रण नहीं मिला है. अब तक की जानकारी के अनुसार इस बेहद महत्वपूर्ण बैठक में केन्द्रीय मंत्री अमित शाह, प्रदेश प्रभारी लक्ष्मीकांत वाजपेयी, चुनाव प्रभारी शिवराज सिंह चौहान और सह-प्रभारी हिमंता विश्वा सरमा के साथ ही सुदेश महतो शामिल होने वाले हैं. इस बीच भाजपा प्रदेश अध्यक्ष बाबूलाल मरांडी ने दावा किया है कि फिलहाल झारखंड एनडीए में भाजपा आजसू की ही जोड़ी है, जदयू को लेकर कोई भी फैसला केन्द्रीय नेतृत्व को ही करना है.

बिहार में नयी सियासी खिचड़ी की चर्चा तेज

इन 12 सीटों पर नीतीश की नजर! बिहार में सियासी पलटी से झारखंड में भी बिगड़ सकता है खेल
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इधर झारखंड में चुनाव सरगर्मी तेज हो रही है, तो उधर बिहार में एक नये सियासी खेल की चर्चा तेज है. हालांकि कोई पुख्ता प्रमाण नहीं है, लेकिन दावा किया जा रहा है कि राजद और जदयू के बीच एक बार फिर से सियासी खिचड़ी पक रही है और पितृपक्ष गुजरते ही इस सियासी खिचड़ी का सार्वजनिक वितरण किया जायेगा. फिलहाल नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव दोनों ही वेट एंड वाच मुद्रा में नजर आ रहे हैं. दावा यह है कि इस बार नीतीश कुमार ने लालू यादव के बात करने के लिए किसी बड़े चेहरे के बजाय, दो लो-प्रोफाइल नेताओं को लगाया है, जबकि राजद की ओर से एक बड़े चेहरा मैदान में हैं. भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा का पटना पहुंचते ही सीधे सीएम आवास में जाने को भी इसी सियासी खिचड़ी से जोड़ कर देखा जा रहा है, बताया जा रहा है कि बेहद गुप्त ऑपेरशन के बावजूद भी भाजपा को इसकी भनक लग चुकी है, और जेपी नड्डा का दौरा इसी संभावित ऑपेरशन पर रोक लगाने के मकसद हुई थी. हालांकि इस मिशन में जेपी नड्डा के हाथ निराशा हाथ आयी या ऑपरेशन कामयाब रहा, इसका फैसला तो आने वाले दिनों में होगा.

बिहार में पकती सियासी खिचड़ी से झारखंड एनडीए में उहापोह 

लेकिन बिहार की सियासत में पकती इस सियासी खिचड़ी से झारखंड एनडीए में भी उहापोह की स्थिति बनी हुई है, यदि यह मान भी लिया जाय कि नीतीश कुमार फिलहाल राजद के साथ नहीं जाने वाले है, लेकिन चुनाव के बाद रुख क्या होगा, इसकी क्या गारंटी है? वैसे भी नीतीश कुमार हर पालाबदल के पहले इस तरह की खबरों को एकबारगी खारिज करते हैं, और फिर  अचानक से उनका कदम राजभवन की ओर बढ़ता नजर आता है. नीतीश कुमार की राजनीति का जो पुराना ट्रैक रिकार्ड रहा है, उसके कारण भी झारखंड में भाजपा एलर्ट मोड में है. वह किसी भी सूरत में जदयू की ताकत में विस्तार होते नहीं देखना चाहता, लेकिन मुश्किल यह है कि केन्द्र सरकार की चाभी नीतीश कुमार के पास है. यही वह मजबूरी है, जिसके कारण भाजपा साफ साफ सीट देने से इंकार भी नहीं कर रही, उसकी चाहत फिलहाल मामले को उलझाये रखने की लगती है.

 झारखंड की इन 12 सीटों पर है जदयू की नजर 

दरअसल झारखंड में जदयू की नजर डाल्टनगंज, विश्रामपुर, मांडू, बाधमारा,छतरपुर, चतरा, पांकी, तमार, हुसैनाबाद, गोड्डा, देवघर डुमरी पर विधानसभा की सीटों पर है. डाल्टनगंज से वर्ष 2000 और 2005 में इंदरसिंह नामधारी ने जनता दल के टिकट पर चुनाव जीता था. फिलहाल इस सीट से भाजपा के आलोक कुमार चौरसिया विधायक है. भाजपा अपनी जीती हुई सीट तो जदयू नहीं सौंप सकती, तो डाल्टनगंज की सीट तो भाजपा के हाथ जाती हुई नहीं दिखलायी पड़ती. विश्रामपुर से पिछले विधानसभा चुनाव में जदयू के टिकट पर ब्रह्मदेव प्रसाद ने 7,928 वोट पाया था, यह भी भाजपा की जीती हुई सीट है और इस बार भी रामचन्द्रवंशी या तो खुद चुनाव लडेंगे या अपने बेटे का सियासी लांचिंग करेंगे.

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वर्ष 2005 में मांडू से खीरु महतो ने दर्ज किया था जीत

इन 12 सीटों पर नीतीश की नजर! बिहार में सियासी पलटी से झारखंड में भी बिगड़ सकता है खेल
नीतीश कुमार के साथ झारखंड प्रभारी खीरु महतो (फाइल फोटो)

 

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मांडू से वर्ष 2005 में खीरु महतो ने जनता दल के टिकट पर जीत दर्ज किया था, लेकिन 2019 में जेपी भाई पटेल ने इस सीट को भाजपा के नाम कर दिया, हालांकि अब वह खुद भाजपा छोड़ कांग्रेस की सवारी कर बैठे हैं. इस हालत में यह सीट भाजपा जदयू को दे सकती है. बशर्ते आजसू अपनी दावेदारी छोड़ने को तैयार हो. बाधमारा में जदयू ने कई प्रयोग किये हैं, लेकिन कभी भी जीत की वरमाला नहीं मिली. इधर भाजपा विधाय़क ढुल्लू महतो धनबाद से चुनाव जीत कर संसद पहुंच चुके है. दावा किया जाता है कि इस बार ढुल्लू महतो के ही किसी नजदीकी को मैदान में उतारा जायेगा. इस हालत में यह सीट भी जदयू के हिस्से जाती नहीं दिखती. छतरपुर विधानसभा पर भी जदयू की नजर है. वर्ष 2005 में सुधा चौधरी और 2009 राधा कृष्ण किशोर ने इस सीट से जदयू के टिकट पर जीत दर्ज किया था, लेकिन फिलहाल इस सीट पर भाजपा का कब्जा है. पुष्पा देवी जीती हुई विधायक है.

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किस सीट की कुर्बानी देने को तैयार होगी भाजपा 

इस हालत में क्या भाजपा अपनी जीती हुई सीट का कुर्बानी देने को तैयार होगी? यह देखने वाली बात होगी. चतरा सीट जदयू के हिस्से जाती नहीं दिखती. वर्ष 2019 में इस सीट से जदयू के केदार भुइंया को महज सात हजार वोट मिला था. जबकि सत्यानंद भोक्ता के हाथों मात खाने के बावजूद जनार्दन पासवान ने 77,655 प्राप्त किया था. इसलिए चतरा भी जदयू के खाते में जाती हुई नहीं दिखती. पांकी में कभी समता पार्टी की मजबूत स्थिति होती थी, लेकिन वक्त के साथ उसकी यह पकड़ कमजोर होती गयी. 2009 में जेडीयू दूसरे नंबर पर थी. लेकिन 2014 और 2019 में वह चुनावी अखाड़े से भी दूर हो गयी.  फिलहाल पांकी पर भाजपा का कब्जा है और कुशवाहा शशिभूषण मेहता बेहद मजबूत स्थिति माने जाता हैं. इस हालत में  भाजपा इस सीट को अपने हाथ से निकलने देना नहीं देगी. तमाड़ में 2005 और 2009 में राजा पीटर ने जदयू को जीत दिलवायी थी, लेकिन उसके बाद जदयू की हालत कमजोर हो गयी. फिलहाल आजसू के विकास मुंडा विधायक है. तो यह सीट भी जदयू के हिस्से नहीं जाने वाली है. हुसैनाबाद का सामाजिक समीकरण के हिसाब से जदयू अपना दावेदारी तो ठोक सकती है, 2009 में दशरथ सिंह को आगे कर 22 हजार वोट भी पाया था. लेकिन उसके बाद जदयू ने अपना प्रत्याशी भी नहीं उतारा, लेकिन भाजपा भी कोई मजबूत स्थिति में नहीं है, उसके हिस्से हुसैनाबाद से कभी जीत भी नहीं आयी.

हुसैनाबाद सौंप कर जदयू के भार से मुक्त हो सकती है भाजपा

इस हालत में हुसैनाबाद की सीट जदयू को सौंप कर भाजपा संकट मुक्त हो सकती है. गोड्डा में भी जदयू कभी भी मजबूत स्थिति में नहीं रही. वर्ष 2019 में वह तीसरे नम्बर की पार्टी थी. जदयू के टिकट पर मैदान में उतरे रविन्द्र महतो को महज 6417 वोट मिला था, जबकि भाजपा के अमित मंडल ने 87,578 वोट के साथ अपनी जीत दर्ज की थी, इस हालत में यह सीट भी जदयू के खाते में जाता दिखलायी नहीं पड़ता. देवघर में आखिरी बार जदयू के हिस्से जीत वर्ष 2005 में आयी थी, 2019 में वह तीसरे नम्बर थी. वर्ष 2014 और 2019 से इस सीट नारायण दास भाजपा का झंडा बुलंद किये हुए हैं, हालांकि मौजूदा हालत में भाजपा के अंदर नारायण दास की स्थिति कुछ कमजोर होती दिख रही है. तो क्या नारायण दास से मुक्ति के लिए भाजपा यह सीट भी जदयू को भेंट कर सकती है. रही बात डुमरी की, कुर्मी बहुल इस सीट पर जदयू पहले भी चुनाव लड़ती रही है, 2009 में तो वह दूसरे स्थान तक पहुंच थी, लेकिन वर्ष 2019 में महज 5,219 वोट मिले थे, जबकि आजसू की मजबूत स्थिति है, वर्ष 2023 के उपचुनाव में जहां झामुमो के बेबी देवी ने 100,317 के साथ अपनी जीत दर्ज की थी तो आजसू के यशोदा देवी ने 83,164 दूसरा स्थान प्राप्त किया था. इस हालत में यह सीट भी आजसू के हाथ जाती नहीं दिखती और सबसे हॉट केक पूर्वी जमशेदपुर की सीट से रघुवर दास मोर्चा खोलते नजर आ रहे हैं,  रघुवर दास के सियासी पैतरे में यह सीट भी फंसती नजर आ रही है, इस हालत में किसी भी सूरत में जदयू के हिस्से दो या तीन सीट से ज्यादा जाता हुआ दिखलायी नहीं पड़ता

Edited By: Devendra Kumar

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