हेमंत सरकार में बाल अधिकार के मुद्दे पूर्ण रूप से दरकिनार: अजय साह
भाजपा के प्रदेश प्रवक्ता ने प्रेस बयान जारी कर हेमंत सरकार पर लगाये आरोप
अजय साह ने प्रेस नोट में कहा, महिलाओं एवं बच्चों के यौन उत्पीड़न को रोकथाम के लिए हेमंत सरकार ने अब तक कोई भी एसओपी नहीं बनाया है, जिसके कारण राज्य में महिलाओं और बच्चों का शोषण संबंधी अनुपात अन्य राज्यों के अपेक्षा झारखण्ड में काफी अधिक हो गया है.
रांची: भाजपा के प्रदेश प्रवक्ता अजय साह ने कहा कि राज्य में महिलाओं और बच्चों के साथ अमानवीय घटनायें घट रही हैं और राज्य सरकार इस पर मौन है. महिलाओं और बच्चों के साथ यौन उत्पीड़न के मामले पर झारखण्ड उच्च न्यायालय ने गंभीर रूख अपनाया है. माननीय उच्च न्यायालय ने महिला एवं बाल विकास विभाग के सचिव, राँची के उपायुक्त एवं वरीय पुलिस अधीक्षक को कल तलब किया और उनसे इस दिशा में की जा रही कार्रवाई पर जानकारी ली और आवश्यक दिशा-निर्देश भी जारी किये.
किसी भी सभ्य समाज में महिलाओं और बच्चों की देखभाल करना संबंधित राज्य सरकार की प्राथमिकता में सबसे उपर होता है, परन्तु राज्य सरकार ने पिछले पाँच वर्षों में कामकाजी महिलाओं और बच्चों की सुरक्षा के संबंध में एक भी उल्लेखनीय कार्य नहीं किया. महिलाओं एवं बच्चों के यौन उत्पीड़न को रोकथाम के लिए हेमंत सरकार ने अब तक कोई भी एसओपी नहीं बनाया है, जिसके कारण राज्य में महिलाओं और बच्चों का शोषण संबंधी अनुपात अन्य राज्यों के अपेक्षा झारखण्ड में काफी अधिक हो गया है. अब यह विडंबना है कि राज्य के ‘हिम्मती’ मुख्यमंत्री का शासन रहते हुए महिलाओं और बच्चों के साथ हो रहे अपराध पर हाईकोर्ट को हस्तक्षेप करने पर बाध्य होना पड़ रहा है.
अजय साह ने कहा कि हम सभी अखबारों में पढ़ते हैं कि राँची के हटिया रेलवे स्टेशन और राँची रेलवे स्टेशन सहित राज्य के अन्य रेलवे स्टेशनों से रेलवे सुरक्षा बल (आरपीएफ) द्वारा बाल तस्करों के चंगुल से नाबालिग युवक-युवतियों को मुक्त करा कर उन्हें राज्य सरकार को सौंप दिया जाता है. राज्य का खुफिया विभाग और सीआईडी तंत्र पूरी तरह से इन संवेदनशील मामलों फेल है, क्योंकि हेमंत सरकार ने तो उनको भाजपा के वरीय नेताओं की जासूसी में लगा रखा है.
प्रदेश प्रवक्ता अजय साह ने बताया कि राँची के चौक-चौराहें, बस स्टैण्ड और सरकारी कार्यालय परिसर आदि हेमंत सरकार के गुणगान करते हुए संबंधी हजारों होर्डिंग्स, पोस्टर-बैनर से अटे पड़े हैं, लेकिन किसी भी होर्डिंग आदि में महिलाओं एवं बच्चों के यौन-उत्पीड़न, शोषण, बाल श्रम जैसे अपराध पर दंड संबंधी जागरूकता वाले पोस्टर कहीं पर भी आपको देखने को नहीं मिलेगा.
उन्होंने कहा कि राज्य के पुलिस थानों में पॉक्सों और जुवेनाइल जस्टिस (जेजे) एक्ट जैसे कानून की जानकारी रखने वाले पुलिस का अभाव है. राज्य सरकार इस दिशा में कोई जागरूकता कार्यक्रम भी नहीं चला रही है. राज्य के अधिकांश जिलों में बाल कल्याण समिति के अध्यक्ष और सदस्यों के पद रिक्त है, सरकार उनकी नियुक्ति नहीं कर रही है. उसी तरह से राज्य बाल संरक्षण आयोग का अध्यक्ष एवं सदस्य का पद लगभग छह महीने से खाली है. इन नियुक्ति होने से महिलाओं और बच्चों के प्रति अपराध में अवश्य ही कमी आती, लेकिन सरकार इन नियुक्तियों के प्रति पूर्णतः उदासीन बनी हुई है, जो दर्शाता है कि हेंमत सरकार को उनकी कितनी फिक्र है. राज्य के अधिकांश ज़िलों में बच्चों के लिए शेल्टर होम की व्यवस्था तक नहीं है. अगर आकड़ों की बात करे तो पॉक्सो के मामलों में झारखंड में 2019- 2021 में 23 परसेंट का इजाफ़ा हुआ है और सूचना आयोग के निर्जीव होने के कारण आकड़ों को दबाया जा रहा है .
अजय साह ने बताया कि राजधानी में तो स्थिति और भी भयावह है. राजधानी राँची में अनेक माह से बाल कल्याण समिति और बाल सुरक्षा पदाधिकारियों की जिलाधिकारी द्वारा समीक्षा बैठक नहीं हो रही है. राँची में अभी तक दिव्यांग बच्चों के लिए अलग से शेल्टर होम नहीं बनाया गया है . बच्चे किसी भी राज्य का भविष्य होते है और ऐसा लगता है कि हमारे राज्य के साथ साथ बच्चों का भी भविष्य अंधकार में है .