ओपिनियन: हुंडई की हरकत- न आए आंच भारत- दक्षिण कोरिया रिश्तों पर

ओपिनियन: हुंडई की हरकत- न आए आंच भारत- दक्षिण कोरिया रिश्तों पर

निसंस्देह हाल के दौर में दक्षिण कोरिया ने जिस तरह से भारत में लगातार अपने निवेश को बढ़ाया है, उस आलोक में वहां की हुंडई नामक कार बनाने वाली कंपनी की पाकिस्तान यूनिट की तरफ से तथाकथित ‘कश्मीर एकजुटता दिवस’ पर सोशल मीडिया पर एक पोस्ट साझा करने को एक हद से अधिक तूल देना सही नहीं होगा। भारत ने दक्षिण कोरिया के राजदूत को तलब करके कायदे से समझा दिया कि इस तरह की पोस्ट भारतीय गणतंत्र के द्वारा पूरी तरह अस्वीकार्य है और कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है और रहेगा । इस बिन्दु पर समझौता नहीं किया जा सकता। अब हमें इसको दक्षिण कोरिया की सरकार के ऊपर यह छोड़ देना चाहिए कि वह हुंडई की मैनेजमेंट से कैसे निपटे।

अच्छी बात यह है कि दक्षिण कोरिया ने इस मामले में खेद भी जताया है। हुंडई मोटर्स इंडिया लिमिटेड का भारत में भी अच्छा खासा कारोबार है और उसकी यहां भी इकाईयां है। उसे भी समझ में आ गया होगा कि उसने एक तरह से अक्षम्य भूल की है। क्या कोई भारतीय कंपनी दक्षिण कोरिया में काम करते हुए दक्षिण कोरिया- उत्तर कोरिया के बीच विवाद पर उत्तर कोरिया का पक्ष ले सकती है? नहीं न? यहां पर तो मामला ही अलग है। कश्मीर भारत का अटूट हिस्सा है और उस पर हुंडई  का ट्वीट करने का मतलब ही भारत-पाक के कश्मीर विवाद में नाक घुसेड़ने जैसा है । चूंकि दक्षिण कोरिया सरकार ने भी हुंडई  की तरफ से माफी मांग ली है, तो अब इस विवाद को भूलकर आगे बढ़ने का समय है। इस मसले को और खींचने का कोई लाभ नहीं होगा।

फिर, यह भी तो देखना होगा कि दक्षिण कोरिया का भारत को लेकर रवैया सदैव ही आदर और मैत्रीपूर्ण रहा है। दक्षिण कोरिया भारत को भगवान बुद्ध का देश होने के चलते एक तरह से पवित्र देश के रूप में ही देखता है। हर साल वहां से असंख्य तीर्थ यात्री यहां भगवान बुद्ध से जुड़े तीर्थ स्थलों पर पूजा अर्चना के लिए आते भी हैं। इस तथ्य को कम ही लोग जानते हैं कि दक्षिण कोरिया में गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर बेहद लोकप्रिय कवि हैं। उन्होंने 1929 में कोरिया के गौरवशाली इतिहास पर एक कविता भी लिखी थी। टैगोर कोरिया में इतने प्रतिष्ठित कैसे हो गए?

दरअसल कोरिया गुरुदेव रविन्द्र नाथ टैगोर से 1913 में पहली बार परिचित हुआ था जब उन्हें ‘गीतांजलि’ के लिए नोबल पुरस्कार मिला था। टैगोर के साहित्य का कोरियाई भाषा में अनुवाद शुरू हुआ और इस तरह वहां के लोगों ने भारत के इस महान लेखक-विचारक के काम को जाना-समझा। 1920 में ‘गीतांजलि’ का अनुवाद भी यहां प्रकाशित हो गया था। इसमें कोई दो राय नहीं कि टैगोर का साहित्य वहां सराहा जा रहा था। दक्षिण कोरिया इसलिए भी भारत के प्रति कृतज्ञता का भाव रखता है क्योंकि कोरियाई युद्ध में उसे भारत का कहीं न कहीं किसी न किसी प्रकार से समर्थन मिला था।

कोरिया युद्ध (1950-53) 25 जून, 1950 को  उत्तरी कोरिया से दक्षिणी कोरिया पर आक्रमण के साथ शुरू हुआ था। यह शीत युद्ध काल में लड़ा गया सबसे पहला और सबसे बड़ा भयानक संघर्ष था। एक तरफ उत्तर कोरिया था जिसका समर्थन कम्युनिस्ट सोवियत संघ तथा साम्यवादी चीन कर रहे थे, दूसरी तरफ दक्षिणी कोरिया था जिसकी रक्षा अमेरिका कर रहा था। उस जंग में भारत के समर्थन को लेकर एहसानमंद दक्षिण कोरिया ने राजधानी दिल्ली में एक युद्ध स्मारक भी बनाया  है। इसका नाम कोरियन वार मेमोरियल है। इसका उदघाटन जल्दी ही होगा।

यह कोरोना के कारण टल रहा है। कोरियन वार मेमोरियल दिल्ली कैंट में थिमय्या पार्क में विकसित किया गया है। दक्षिण और उत्तर कोरिया के बीच हुए युद्ध में भारत समेत 22 देशों ने दक्षिण कोरिया का साथ दिया था। इस तरह का कोरियन वार मेमोरियल अबतक सिर्फ भारत में ही नहीं था। इसमें गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर की एक धड़प्रतिमा भी स्थापित की गई है। भारत-दक्षिण कोरिया संबंधों के इतिहास को जानने वाले जानते हैं कि जनरल कोडन्डेरा सुबय्या थिमय्या ने कोरिया युद्ध के दौरान दक्षिण कोरिया को लगातार इनपुट्स दिए थे, इसलिए भी कोरिया भारत को उस अहसान को याद रखता है। वे समर नीति के विशेष एक्सपर्ट थे। उन्हें प्यार से जेनरल ‘टिमी’ कहकर पुकारा जाता था। वे 8 मई 1957 से 7 मई 1961 तक भारत के थल सेनाध्यक्ष थे।

अगर बात भारत में दक्षिण कोरियाई कंपनियों के निवेश की करें तो पिछले चार सालों में दक्षिण कोरिया का भारत में निवेश 2017 में 1.39 अरब रुपए की तुलना में साल 2021 में 2.69 अरब रुपए तक पहुंच गया  है। दिल्ली, गुरुग्राम, नोएडा मुंबई वगैरह दक्षिण कोरिया के नागरिकों और कंपनियों की पसंदीदा जगहों के रूप में स्थापित हो रहे हैं। यहां हजारों कोरियाई नागरिक रहते हैं। सैमसंग इलेक्ट्रॉनिक्स, हुंडई, एलजी इलेक्ट्रॉनिक्स, डूसन हेवी इंडस्ट्रीज  जैसी दक्षिण कोरिया की दर्जनों बड़ी कंपनियां भारत में काम कर रही हैं। ग्रेटर नोएडा में दक्षिण कोरिया की एलजी इलेक्ट्रानिक्स, मोजर बेयर,यमाहा जैसी कंपनियों की बड़ी-बड़ी फैक्ट्रियां हैं। कोविड काल में भी करीब पांच दर्जन दक्षिण कोरियाई कंपनियों ने भारत में अपना निवेश किया।

हां, हुंडई मैनेजमेंट को और अधिक जिम्मेवार तथा संवेदनशील होना होगा। उसे विदेश नीति जैसे मसलों पर टीका- टिप्पणी करने से बचन होगा। उसे पता होगा कि उसके लिए भारत का बाजार कितना खास है। हुंडई मोटर्स इंडिया लिमिटेड देश की दूसरी सबसे ज्यादा कार निर्माता कंपनी है। उसने 1996 में भारत में कदम रखा था और हुंडई सैंट्रो के रूप में अपना पहला प्रोडक्ट्स भारत में लॉन्च किया था। हुंडई सैंट्रो को सितंबर 1998 में भारत में लॉन्च किया गया था। हुंडई भारत में सफलतापूर्वक कारोबार कर रही है। यह अफ्रीका, मिडिल ईस्ट, लैटिन अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और एशिया पैसिफिक में भी भारत में बनी कार एक्सपोर्ट करती है। हुंडई भारत में कुल 17 मॉडल लॉन्च कर चुकी है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दो साल पहले दक्षिण कोरिया दौरे पर गए थे। उस दौरे के दौरान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को सियोल शांति सम्मान दिया गया था। प्रधानमंत्री मोदी की दक्षिण कोरिया के राष्ट्रपति मून जे इन से सामरिक मुद्दों समेत द्विपक्षीय संबंधों पर चर्चा हुई थी। बेशक, मोदी जी की यात्रा से दक्षिण कोरिया के साथ भारत की विशेष सामरिक साझेदारी मजूबत हुई और ‘लुक ईस्ट नीति’ में नया आयाम जुड़ा। कहना न होगा कि इन सब पक्षों को गौर से देखने के बाद हमें हुंडई पाकिस्तान के ट्वीट को नजर अंदाज करते हुए यह देखना होगा कि कुल मिलाकर दक्षिण कोरिया भारत का हितैषी और मित्र है। वह भारत को विभिन्न कारणो के चलते अपना मानता है। हमें इस रिश्ते को और मजबूत करके रखने में ही लाभ है।

(लेखक वरिष्ठ संपादक, स्तभकार और पूर्व सांसद हैं)

Edited By: Samridh Jharkhand

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