हरियाणा की ओर से देशवासियों के लिए जलेबियां, अब झारखंड और महाराष्ट्र की बारी: अमर बाउरी
हरियाणा से नहीं सीखा सबक तो झारखंड में भी खिल सकता है कमल
यदि लोकसभा चुनाव परिणामों से इंडिया गठबंधन ने सबक नहीं सीखा, सामाजिक समीकरणों को साधने की कोशिश नहीं की. कांग्रेस सीटों की संख्या पर अड़ी रही तो झारखंड में भी कमल खिलने की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता.
रांची: हरियाणा में भाजपा की तीसरी बार लगातार जीत पर अपनी प्रतिक्रिया देते हुए नेता प्रतिपक्ष अमर बाउरी ने अपने सोशल मीडिया एकाउंट एक्स पर लिखा है कि हरियाणा की देवतुल्य जनता की ओर से देशवासियों के लिए जलेबियां,जलेबियां खाने की अगली बारी झारखंड और महाराष्ट्र की, इसके साथ ही हरियाणा में मिली इस जीत को लेकर झारखंड भाजपा में जश्न की तैयारी शुरु हो चुकी है, आज शाम पार्टी कार्यालय में इस जीत के उपलक्ष्य में कार्यक्रम का आयोजन किया गया है. झारखंड के चुनावी संग्राम के पहले हरियाणा में मिली इस जीत से भाजपा कार्यकर्ताओं के अंदर एक उत्साह देखा जा रहा है, सोशल मीडिया एक्स पर भाजपा नेताओं और कार्यकर्ताओं की ओर से जश्न मनाने की तस्वीर भी सामने आने लगी है. हालांकि हरियाणा और झारखंड की सियासी परिस्थितियां अलग है, जहां जहां भी भाजपा को क्षेत्रीय पार्टियों के साथ मुकाबले की स्थिति बनती है, उसके सामने चुनौती मुश्किल होने लगती है, वैसे झारखंड में इंडिया गठबंधन के लिए कांग्रेस को एक कमजोर कड़ी मानी जा रही है, जिस तरीके से मंईयां सम्मान योजना को लेकर कल्पना सोरेन राज्य के दौरे पर निकल चुकी है, और उनकी सभाओं में महिलाओं की भीड़ उमड़ रही है, वह निश्चित रुप से भाजपा के लिए मुश्किल खड़ी हो सकती है, लेकिन जिस तरीके से कांग्रेस झारखंड की सियासत में भी कमजोर कड़ी साबित हो रही है, उसके इंडिया गठबंधन की मुश्किले बढ़ सकती हैं.
हरियाणा की देवतुल्य जनता की ओर से देशवासियों के लिए जलेबियां ...
— Amar Kumar Bauri (@amarbauri) October 8, 2024
जलेबियां खाने की अगली बारी झारखंड और महाराष्ट्र की ! https://t.co/jeckGlmzni pic.twitter.com/qxu4EgOvhx
कांग्रेस की सीटों में कटौती कर इंडिया गठबंधन पलट सकता है बाजी
हालांकि, इस बार कांग्रेस की सीटों में कटौती की खबर भी सामने आ रही है. सियासी जानकारों का दावा है कि यदि कांग्रेस की सीटों में कटौती कर माले और मासस को अधिक सीटें दी जाती है, तो इसका लाभ इंडिया गठबंधन को मिल सकता है, इसके साथ ही यदि झामुमो की सीटों में भी बढ़ोतरी होती है, तो भाजपा के सामने एक बड़ी चुनौती खड़ी हो सकती है. उनका दावा है कि कांग्रेस भले ही एक राष्ट्रीय पार्टी है, लेकिन संगठन में कई कमजोरियां है, नेताओं के बीच आपसी खींचतान काफी तेज है, ड्राईंग रुम सियासत करने वालों की एक बड़ी जमात कांग्रेस के साथ है, जिनके पास ना तो कोई जमीनी आधार है, और ना ही सामाजिक समीकरण उनके पक्ष में है. हर चुनाव के पहले कांग्रेस की ओर से सीटों की दावेदारी तो मजबूती के साथ की जाती है, लेकिन उसका परिणाम सामने नहीं आता, लोकसभा चुनाव के वक्त भी कुछ यही परिस्थितियां सामने आयी थी, कांग्रेस झामुमो से अधिक सीटों पर चुनाव लड़ कर भी पिछड़ गई, बड़ी बात यह रही है कि आदिवासी बहुल सीटों से बाहर उसका सफाया हो गया, आदिवासी बहुल सीटों पर कांग्रेस की जीत के पीछे भी झामुमो की जनाधार होने का दावा किया गया था.
खूंटी और लोहरदगा में झामुमो के जनाधार के भरोसे कांग्रेस को मिली थी जीत
दरअसल खूंटी और लोहरदगा दोनों ही आदिवासी बहुल सीट है, झामुमो के पास मजबूत जनाधार है, जिसका लाभ कांग्रेस को मिला, लेकिन जैसे ही वह हजारीबाग और रांची की बात आयी, उसके पास ना तो कोई अपना जनाधार था, और ना ही सामाजिक समीकरणों के हिसाब से कोई मजबूत चेहरा, हालत यह रही कि आनन-फानन में भाजपा से जेपी पटेल को पार्टी में शामिल करवा कर हजारीबाग के अखाड़े में उतार दिया गया, इधर रांची में झारखंड की सियासत में एक बड़ा कुर्मी चेहरा रहे रामटहल चौधरी को टिकट का आश्वासन देकर कांग्रेस का पट्टा तो पहनाया गया, लेकिन एन वक्त पर गैर राजनीतिक चेहरा रहे सुबोधकांत सहाय की बेटी यश्वनी सहाय को अखाड़े में उतार दिया गया, और नतीजा यह रहा कि दोनों ही सीट हाथ से निकल गयी, धनबाद और गोड्डा में कुछ यही स्थिति देखने को मिली, भाजपा ने अप्रत्याशित फैसला लेते हुए बाघमारा विधायक ढुल्लू महतो पर दांव खेल दिया, ढुल्लू महतो पिछड़ी जाति से आते हैं, इधर कांग्रेस की ओर अगड़ा कार्ड खेलने की कोशिश हुई, बेरमो विधायक अनूप सिंह की पत्नी अनुपमा सिंह को अखाड़े में उतारते ही पिछड़ी की मजबूत गोलबंदी ढुल्लू महतो के पक्ष में हो गयी, और यह सीट भी कांग्रेस के हाथ से निकल गयी, गोड्डा में तो और भी रोचक स्थिति रही, पहले महागामा विधायक दीपिका सिंह पांडे को मोर्चे पर तैनात किया गया, लेकिन जैसे ही पिछड़ी जातियों की ओर से इसका विरोध हुआ, तो एक बार फिर से प्रदीप यादव पर दांव खेला गया, लेकिन इस बीच पार्टी की पूरी किरकिरी हो चुकी थी. और यह सीट भी हाथ से निकल गयी. इस बार भी यदि लोकसभा चुनाव परिणामों से इंडिया गठबंधन ने सबक नहीं सीखा, सामाजिक समीकरणों को साधने की कोशिश नहीं की. कांग्रेस सीटों की संख्या पर अड़ी रही तो झारखंड में भी कमल खिलने की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता.