हरियाणा फिसलते ही झारखंड में बांह मरोड़ने की कवायद! कांग्रेस की सीटों पर कल्पना-हेमंत की नजर

झारखंड में कल्पना और हेमंत के सहारे ही पार होगी कांग्रेस की नैया

हरियाणा फिसलते ही झारखंड में बांह मरोड़ने की कवायद! कांग्रेस की सीटों पर कल्पना-हेमंत की नजर
राहुल गांधी और मल्लिकार्जून खड़गे के साथ सीएम हेमंत की मुलाकात

झामुमो की कोशिश जल्द से जल्द सीट शेयरिंग के इस पेच को सुलझाने की है. ताकि घटक दलों की ओर से अपने अपने उम्मीदवारों का एलान किया जाय और उम्मीदवारों के पास अपने प्रचार-प्रसार के पर्याप्त समय हो. लोकसभा चुनाव के वक्त कांग्रेस की ओर से प्रत्याशियों की घोषणा में देरी का लाभ भी भाजपा को मिला था, वह अंतिम समय तक उधेड़बून की स्थिति में फंसी रही

रांची: राजनीति में कुछ भी स्थायी नहीं होता, दोस्ती दुश्मनी के साथ ही रिश्तों की गर्माहट भी सियासी-सामाजिक पकड़ पर निर्भर करता है, एक चूक हुई नहीं कि दोस्ती -दुश्मनी की परिभाषा भी बदलने लगती है. झारखंड की सियासत में भी इन दिनों कुछ ऐसा ही होता नजर आ रहा है. हरियाणा में कांग्रेस को झटका क्या लगा कि अब झारखंड में बांह मरोड़ने की कवायद शुरु होती नजर आ रही है. दरअसल जैसे ही हरियाणा से कांग्रेस के लिए  बूरी खबर आयी, 60 पार का दावा करते-करते 40 पार करने में हांफती नजर आयी. सीएम हेमंत कल्पना संग दिल्ली के लिए रवाना हो गयें. जिसके बाद सियासी गलियारों में यह चर्चा तेज हो गयी कि इस यात्रा का मकसद इंडिया गठबंधन के अंदर सीट शेयरिंग का पेच सुलझाने के मकसद से की गयी है. जिस तरीके से झारखंड कांग्रेस की ओर से 32 सीटों का दावा किया जा रहा है, आलाकमान को झारखंड में कांग्रेस की सियासी और सामाजिक पकड़ को समझाने की है.

इंडिया गठबंधन के अंदर माले के लिए एडजस्टमेंट

दरअसल इस बार इंडिया गठबंधन के अंदर माले की भी एंट्री हो चुकी है, मासस का विलय होने के कारण लाल झंडे की ताकत में इजाफा हुआ है, जिसका लाभ इंडिया गठबंधन को कई सीटों पर मिल सकता है, दूसरी ओर कांग्रेस के पास ना तो कोई मजबूत सियासी जमीन है और ना ही सामाजिक आधार, जिस तरीके से लोकसभा चुनाव में कांग्रेस आठ सीटों पर चुनाव लड़ कर दो पर सिमट गयी और पांच पर चुनाव लड़ कर झामुमो तीन सीट निकालने में कामयाब रहा, और खास कर सभी गैर आदिवासी सीटों से कांग्रेस का सफाया हुआ, उसके बाद झामुमो कांग्रेस की सीटों में कटौती कर माले के हिस्से में डालना चाहता है, इसके साथ ही वह खुद भी पलामू प्रमंडल में अपने सीटों की संख्या में बढ़ोतरी चाहता है. खबर है कि झामुमो इस बार कांग्रेस के हिस्से 25 से अधिक सीट देने को तैयार नहीं है. उसका मानना है कि कई ऐसी सीटें हैं, जिस पर कांग्रेस दावा तो ठोक रही है, लेकिन सामाजिक समीकरण को साधने के लिए उसके पास कोई मजबूत चेहरा नहीं है, इस हालत में यदि यह सीटें कांग्रेस की हिस्से में जाती है, तो इंडिया गठबंधन को इसका नुकसान उठाना पड़ सकता है.

झारखंड में कल्पना और हेमंत के सहारे ही पार होगी कांग्रेस की नैया

सियासी जानकारो का भी आकलन है कि जिस तरीके हेमंत सोरेन की गिरफ्तारी के बाद आदिवासी समाज के एक बड़े हिस्से में भाजपा के प्रति नाराजगी उभरी है, अपनी जेल यात्रा के बाद हेमंत सोरेन  आदिवासी समाज का एक नायक के रुप में सामने आये हैं, और इस बीच जिस तेजी से कल्पना सोरेन का कद बढ़ा है, कल्पना सोरेन की रैलियों में जो जनसैलाब उमड़ रहा है, उस हालत में यदि कांग्रेस के हिस्से की कमजोर सीटों को झामुमो के खाते में डाल दिया जाय तो इंडिया गठबंधन सियासी रुप से लाभ की स्थिति में होगा. बताया जा रहा है कि दिल्ली में राहुल गांधी, कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे, सोनिया गांधी से मुलाकत कर हेमंत सोरेन ने झारखंड कांग्रेस की कमजोर कड़ियों को सामने रख दिया है, इसके साथ ही सीट शेयरिंग का पूरा खांचा भी पेश कर दिया है. जल्द कांग्रेस आलाकमान झारखंड के नेताओं से फीडबैक लेकर उसकी पुष्टि करेगा और सीट शेयरिंग की पूरी तस्वीर साफ हो जायेगी.  

कांग्रेस के पास ना तो चेहरा और ना ही सामाजिक आधार

झामुमो की कोशिश जल्द से जल्द सीट शेयरिंग के इस पेच को सुलझाने की है. ताकि घटक दलों की ओर से अपने अपने उम्मीदवारों का एलान किया जाय और उम्मीदवारों के पास अपने प्रचार-प्रसार के पर्याप्त समय हो. लोकसभा चुनाव के वक्त कांग्रेस की ओर से प्रत्याशियों की घोषणा में देरी का लाभ भी भाजपा को मिला था, वह अंतिम समय तक उधेड़बून की स्थिति में फंसी रही. रांची संसदीय सीट पर पहले रामटहल चौधऱी को साधने की कोशिश हुई लेकिन अंतिम समय में सुबोधकांत की बेटी यश्वनी सहाय पर दांव लगाया गया, हजारीबाग में अंतिम समय में भाजपा से जेपी भाई पटेल को लाकर दांव खेला गया, तो गोड्डा में पहले दीपिका को मैदान में उतारा गया, और जब नाराजगी सामने आयी तो प्रदीप यादव को मैदान में उतारा गया, यानि किसी भी सीट के लिए कांग्रेस के पास कोई स्पष्ट रणनीति नहीं थी, उसकी पूरी कोशिश महज कल्पना सोरेन का चेहरा और झामुमो के जनाधार के सहारे अपना बेड़ा पार करने की थी, लेकिन इस बार झामुमो का सबसे बड़ा रणनीतिकार हेमंत सोरेन खुद मैदान में है,पूरी कमान उनके हाथ में है, हर सीट, चाहे वह झामुमो के हिस्से की सीट हो या फिर सहयोगी दलों की, एक-एक सीट पर उनकी पैनी नजर जमी हुई है  और वह किसी भी सूरत में कांग्रेस को उसकी पुरानी गलती दुहाराने देना नहीं चाहते. हेमंत सोरेन की दिल्ली यात्रा का असली मकसद यही है.  

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Edited By: Devendra Kumar

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