खिजरी विधानसभा चुनाव 2024: बदलेगा रिवाज या खिलेगा कमल
खिजरी में कभी भी रिपीट नहीं होता चेहरा
यदि हम खिजरी के रिवाज पर विश्वास करें तो इस बार भाजपा की पारी नजर आती है, राजकुमार पाहन एक बार भी से अखाड़े में उतरने की चाहत रखते हैं, लेकिन सियासी गलियारों में इस बात की चर्चा तेज है कि इस बार भाजपा यहां से आरती कुजूर को मैदान में उतारने का इरादा रखती है. हालिया दिनों में आरती कुजूर का कद भाजपा के अंदर काफी बढ़ा है, लेकिन मुश्किल यह है कि उस हालत में राजकुमार पाहन की भूमिका क्या होगी. और यदि राजकुमार पाहन ने बगावती तेवर अपना लिया तो क्या रिवाज बदलेगा या फिर कमल की वापसी होगी?
रांची: झारखंड में आहिस्ता-आहिस्ता गुलाबी ठंड का एहसास होने लगा है. लेकिन इस सुकून देती ठंड के बीच सियासत अपने पूरे उबाल पर है. हर गुजरते दिन के साथ सियासी पारा एक नया कीर्तिमान स्थापित करता दिख रहा है. सियासी दलों के बीच चुनावी लॉलीपॉप बांटने की होड़ मची हुई है. एक तरफ मंईयां सम्मान योजना की घूम है तो दूसरी ओर कल्पना सोरेन की रैलियों में उमड़ती भीड़ से सहमी भाजपा गो-गो दीदी योजना के सहारे अपने आप को रिंग में बनाये रखने का जुगाड़ खोज रही है. लेकिन भाजपा की इस जुगाड़ तकनीक की काट में झामुमो अब ‘झामुमो सम्मान योजना’ को लाने की तैयारी में है. झामुमो सम्मान योजना की अनुमति प्रदान करने की मांग कर गेंद को चुनाव आयोग के पाले में डाल दिया गया है. कुल मिलाकर विधानसभा चुनाव का यह सियासी संग्राम एक मेला के रुप में तब्दील होता नजर आ रहा है. लेकिन इस मेले की खासियत यह है कि यहां सब कुछ मुफ्त है. काश, यह मेला सालों भर चलता, इसकी मियाद महज चंद महीनों की नहीं होती. चुनावी तोहफों की इस बारिश में ना तो कोई झामुमो से यह सवाल दाग रहा है कि हुजूर आते-आते इतनी देर क्यों कर दी? अब जब चुनावी रणभेरी बजने वाली है, तब बहनों की याद क्यों आ रही है? ना ही भाजपा यह जबाब देने की स्थिति में है, मंईयां सम्मान योजना की खिल्ली उड़ाते-उड़ाते वह गो-गो दीदी योजना का फार्म लेकर क्यों आयी, और क्या चुनावी अखाड़े में हार के बावजूद इसे केन्द्र सरकार की योजना बनाकर पूरे देश में चलाया जायेगा? भाजपा को सिर्फ झारखंड की बहनों की ही याद क्यों आ रही है. केन्द्र में उसकी सरकार है, क्यों नहीं वह इसे पूरे देश में लागू करती है. आखिर जिन राज्यों में चुनाव नहीं हो रहा है, उन राज्यों की बहनों का इसमें क्या कुसूर है?
खिजरी विधानसभा का सियासी संग्राम
खैर, आज हम यहां बात करे हैं खिजरी विधानसभा के सियासी संग्राम की. यदि आप खिजरी विधानसभा का भूगोल को समझने की कोशिश करें तो यह तीन हिस्सों में विभाजित नजर आता है. इसका एक सिरा नामकुम, एचईसी जैसे शहरी इलाकों को छूता है तो दूसरा सिरा ओरमांझी जैसे अर्ध शहरी इलाकों से मिलता है, लेकिन एक सिरा तमाड़ और बुंडू जैसे विशुद्ध ग्रामीण इलाके को भी छूता है. यही कारण है कि खिजरी के मतदाताओं का मन-मिजाज और सियासी पसंद भी तीन हिस्सों में विभाजित नजर आता है. नामकुम और एचईसी के मतदाताओं की प्राथमिकता ओरमांझी जैसे अर्द्ध शहरी मतदाताओं से मेल नहीं खाती, और इस सबसे अलग बुंडू तमाड़ से सटा जो इलाका है, वहां के मतदाताओं की चुनौतियां और सियासी पसंद बिल्कुल अलग है.
बुंडू-तमाड़ से सटे इलाकों में आज भी मूलभूत सुविधाओं का अभाव
बुंडू-तमाड़ से सटे इलाकों में आज भी मूलभूत सुविधाओं को पाने की बेचैनी है. सड़क, साफ पानी, स्कूल, अस्तपताल आज भी एक बड़ी चुनौती है, झारखंड के गठन के 24 वर्ष गुजरने के बावजूद आज तक उनके पास बुनियादी सुविधा नहीं है, दूसरी ओर एचईसी और नामकुम के मतदाताओं की चिंता रोजगार के साधनों को लेकर है, एचईसी जो कभी हजारों लोगों को रोजगार देता था, आज बीमार पड़ा है. इस हालत में यदि कोई उम्मीदवार एक साथ शहरी मतदाताओं के साथ ही ग्रामीण मतदाताओं को साध लेता है, तो उसकी जीत का डंका बजना तय है.
खिजरी में कभी भी रिपीट नहीं होता चेहरा
खिजरी विधानसभा की एक खासियत है कि यहां के मतदाताओं ने कभी भी ना तो किसी चेहरे को लगातार रीपिट किया और ना ही किसी सियासी दल को, हर चुनाव में यहां चेहरा और पार्टी बदलता रहा. वर्ष 2000 में सावना लकड़ा ने खिजरी में कांग्रेस का झंडा बुलंद किया था,लेकिन वर्ष 2005 में मतदाताओं को भाजपा के कड़िया मुंडा में उम्मीद नजर आयी सावना लकड़ा को हार का सामना करना पड़ा. इसक बाद 2009 में एक बार फिर से खिजरी के मतदाताओं को सावना लकड़ा में उम्मीद की किरण नजर आयी, भाजपा के राजकुमार पाहन को हार का सामना करना पड़ा. लेकिन वर्ष 2014 में एक बार फिर से इन्ही मतदाताओं को राजकुमार पाहन में उम्मीद की किरण दिखी, और कांग्रेस की सुंदरी देवी को करीबन 64 हजार के हार का सामना करना पड़ा. इस बार राजकुमार पाहन ने 94 हजार का रिकार्ड मत पाया था, और 64 हजार के रिकार्ड मत से सुंदरी देवी को हराया था, राजकुमार पाहन की यह उपलब्धि आज भी खिजरी की सियासत में एक रिकार्ड है, लेकिन वर्ष 2019 में खिजरी के मतदाताओं ने एक बार फिर से कांग्रेस के राजेश कछ्चप पर विश्वास जताया, राजकुमार पाहन को करीबन 5 हजार मतों से हार का सामना करना पड़ा.
रिवाज के अनुसार इस बार भाजपा की पारी
यदि हम खिजरी के रिवाज पर विश्वास करें तो इस बार भाजपा की पारी नजर आती है, राजकुमार पाहन एक बार भी से अखाड़े में उतरने की चाहत रखते हैं, लेकिन सियासी गलियारों में इस बात की चर्चा तेज है कि इस बार भाजपा यहां से आरती कुजूर को मैदान में उतारने का इरादा रखती है. हालिया दिनों में आरती कुजूर का कद भाजपा के अंदर काफी बढ़ा है, लेकिन मुश्किल यह है कि उस हालत में राजकुमार पाहन की भूमिका क्या होगी. और यदि राजकुमार पाहन ने बगावती तेवर अपना लिया तो क्या रिवाज बदलेगा या फिर कमल की वापसी होगी? वैसे कांग्रेस के राजेश कछ्चप भी इस रिवाज को बदलने के दावे कर रहे हैं, लेकिन फिलहाल हमें सांस रोक कर इन तमाम दावों पर नजर रखनी होगी.