विधानसभा चुनाव 2024: खरसांवा में दशरथ गगराई की हैट्रिक या खिलेगा कमल
दशरथ गागराई के सामने भाजपा का चेहरा कौन
दशरथ गगराई को आज भी सरसांवा में एक मजबूत चेहरा माना जाता है, बावजूद इसके 500 बेड का अस्पताल, जिसको 2014 में पूर्ण होना था, आज भी अधूरा पड़ा है. दूसरी कई समस्यायें भी मौजूद हैं. लेकिन जिस तरीके सीएम हेमंत और कल्पना सोरेन कोल्हान में अपनी उर्जा लगा रहे हैं, रैलियों में भीड़ उमड़ रही है, और लोकसभा चुनाव का जो परिणाम रहा है, उस हिसाब से भाजपा के लिए अपने इस पुराने गढ़ को वापस पाना आज भी एक चुनौती बनी हुई है.
रांची: खुंटी लोकसभा का हिस्सा आदिवासी आरक्षित खरसांवा को कभी भाजपा का मजबूत किला माना जाता था. जनसंघी नेता देवीलाल माटिसोय ने तीन बार इस सीट पर जीत दर्ज की थी. लेकिन वर्ष 1995 में अर्जुन मुंडा ने झामुमो का झंडा बुलंद कर दिया, हालांकि 1995 में जीत के बाद अर्जुन मुंडा ने वर्ष 2000 में भाजपा का दामन थाम लिया, जिसके बाद वर्ष 2000, 2005 और 2010 में कमल खिलाने में कामयाबी हासिल की, वर्ष 2009 में भाजपा के चुनाव चिह्न पर मंगल सिंह सोय को भी सफलता मिली थी. लेकिन वर्ष 2014 में झामुमो ने दशरथ गागराई पर दांव खेला और दशरथ गगराई ने इस भगवा गढ़ में एक बार फिर से झामुमो का झंडा बुलंद कर दिया. तब सऱसांवा से चौका लगा चुके, अर्जुन मुंडा को 12 हजार के भारी अंतर से हार का सामना करना पड़ा, वर्ष 2019 में दशरथ गागराई ने एक बार फिर से भाजपा के जवाहरलाल बरना को 23 हजार मतों से सियासी शिकस्त दिया. यदि हम कांग्रेस की बात करें तो वर्ष 1990 के बाद इस सीट से कांग्रेस को जीत नहीं मिली है. वर्ष 1990 में विजय सिंह ने अंतिम बार इस सीट पर कांग्रेस को सफलता दिलवायी थी. इस प्रकार इस बार दशरथ गागराई के सामने इस बार हैट्रिक लगाने का अवसर है.
दशरथ गागराई के सामने भाजपा का चेहरा कौन
हालांकि इस बार दशरथ गागराई के सामने भाजपा का चेहरा कौन होगा? सरसांवा की सियासत में एक बड़ा सवाल बन कर सामने आया है. सूत्रों का दावा है कि अर्जुन मुंडा इस बार दशरथ गगराई का सामना करने को तैयार नहीं है. उनकी चाहत अपने लिए किसी सुरक्षित ठिकाने की है, इस हालत में अर्जुन मुंडा की पत्नी मीरा मुंडा को कमान सौंपा जा सकता है. हालांकि दशरथ गगराई को आज भी सरसांवा में एक मजबूत चेहरा माना जाता है, बावजूद इसके 500 बेड का अस्पताल, जिसको 2014 में पूर्ण होना था, आज भी अधूरा पड़ा है. दूसरी कई समस्यायें भी मौजूद हैं. लेकिन जिस तरीके सीएम हेमंत और कल्पना सोरेन कोल्हान में अपनी उर्जा लगा रहे हैं, रैलियों में भीड़ उमड़ रही है, और लोकसभा चुनाव का जो परिणाम रहा है, उस हिसाब से भाजपा के लिए अपने इस पुराने गढ़ को वापस पाना आज भी एक चुनौती बनी हुई है.