कोर्ट ने केंद्र से पूछा, जायज मनरेगा मजदूरों का मजदूरी क्यों वंचित किया जाना चाहिए?

कोर्ट ने केंद्र से पूछा, जायज मनरेगा मजदूरों का मजदूरी क्यों वंचित किया जाना चाहिए?

कोलकाता : कलकत्ता हाइकोर्ट ने पश्चिम बंगाल के मनरेगा मजदूरों की बकाया मजदूरी पर केंद्र सरकार से सवाल पूछा है कि जो जायज व वैध मनरेगा मजदूर हैं, उन्हें क्यों उनकी मजदूरी से वंचित किया जाना चाहिए। भले ही 10 में एक मजदूर वास्तविक हैं तो उन्हें उनकी मजदूरी का भुगतान क्यों नहीं मिलता है। हर कोई भ्रष्ट आचरण में शामिल नहीं हो सकता है।

कलकत्ता हाइकोर्ट ने नौ अक्टूबर को पश्चिम बंग खेत मजूर समिति की मनरेगा मजदूरों के संबंध में एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए यह टिप्पणी की। मुख्य न्यायाधीश टीएस शिवगणनम ने राज्य सरकार को भी आड़े हाथ लिया और कहा कि राज्य सरकार को मनरेगा मजदूरों को काम उपलब्ध कराने और उनके लंबित वेतन का भुगतान करने की जिम्मेवारी लेनी चाहिए। यदि आवश्यक हो तो आपातकालीन आधार पर बकाया मजदूरी के भुगतान के लिए उचित कार्रवाई की जानी चाहिए।

इस संबंध में पश्चिम बंग खेत मजदूर समिति के महासचिव उत्तम गायन ने कहा है कि राज्य सरकार और केंद्र सरकार के वकीलों ने अपनी जिम्मेवारी से बचने की कोशिश की। अदालत ने शुरुआत में केंद्र सरकार से अपने नौ मार्च 2022 के आदेश के बारे में पूछताछ की, जिसमें उन्होंने स्वयं नौ मार्च 2022 से पहले की मजदूरी के भुगतान की बात कही थी।

हालांकि केंद्र सरकार की ओर से पेश अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ने अदालत को बताया कि नरेगा के कार्यान्वयन में पारदर्शिता और जवाबदेही से संबंधित मुद्दों के कारण केंद्र ऐसा करने में असमर्थ है। जब तक लाभार्थियों की वास्तविकता साबित नहीं हो जाती, तबतक केंद्र कोई भुगतान नहीं कर पाएगा।

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दूसरी ओर, राज्य सरकार के वकील ने तर्क दिया कि नरेगा अधिनियम में कहीं भी राज्य सरकार भुगतान करने के लिए उत्तरदायी नहीं है, हालांकि अधिनियम में कहा गया था कि राज्य सरकार काम की गारंटी दे रही थी, हालांकि केंद्र सरकार भुगतान करेगी।

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अदालत का मानना है कि याचिककर्ता संघ के श्रमिकों द्वारा पेश दावों को सत्यापिक किया जा सकता है और यदि वे सही पाये जाते हैं तो लंबित वेतन का भुगतान किया जा सकता है। ज्ञात हो कि पीबीकेएमएस ने पश्चिम बंगाल के नौ जिलों के 2138 श्रमिकों की ओर से 94 लाख से अधिक राशि का दावा पेश किया है। इन दावों को एक आदेश के आधार पर संबंधित जिलों के जिलाधिकारियों द्वारा पहले ही सत्यापित किया जा चुका है। पीबीकेएमएस ने कहा है कि इसके बावजूद केंद्र के पक्षकार असंतुष्ट दिखे और वे सत्यापन चाहते हैं।

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पीबीकेएमएस ने अपने बयान में कहा है कि नौ तारीख का मामला अनिर्णय पर रहा और 10 तारीख को दूसरी सुनवाई भी समय की कमी के कारण स्थगित कर दी गयी। अब 17 अक्टूबर को अगली सुनवाई होनी है।

Edited By: Samridh Jharkhand

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