लोबिन के खिलाफ ताल ठोकेंगे सीएम हेमंत तो चाचा चंपाई को घर में घेरने की तैयारी में कल्पना
लोबिन हेम्ब्रम के साथ ही चंपाई सोरेन के लिए एक बड़ा सियासी झटका
जिस तरीके से भाजपा बाबूलाल मरांडी, लुईस मरांडी और दूसरे आदिवासी चेहरों को संताल और कोल्हान से मैदान में उतराने की रणनीति पर काम करी है. झामुमो के अंदर इसकी भी रणनीति तैयार हो रही है. भाजपा के एक-एक संभावित चाल पर उसकी नजर बनी हुई है. झामुमो की रणनीति इन सभी चेहरों के सामने कांग्रेस के बजाय अपना चेहरा उतारने की है. जिसके कारण कांग्रेस और झामुमो के अंदर सीटों की अदला-बदली पर भी गहनता के साथ विचार किया जा रहा है
रांची: राजनीति में कोई भी दांव अंतिम नहीं होता, हर दांव की एक काट होती है, जिस दांव को सियासत का मास्टर स्ट्रोक माना जाता है, बदले हालात में उस मास्टर स्ट्रोक फुस्स साबित होने में भी देरी नहीं लगती. कुछ इस तरह की पटकथा इन दिनों झारखंड की सियासत में लिखी जा रही है. दिशोम गुरु के सबसे भरोसेमंद शिष्यों में गिनती होते रहे बोरियो विधायक लोबिन हेम्ब्रम और पूर्व सीएम सीएम चंपाई सोरेन को अपने पाले में खड़ा कर भाजपा इस दांव को अपना मास्टर स्ट्रोक बता रही थी, अब भाजपा के इन दोनों ही मोहरों को उनके ही घर में घेरने की तैयारी शुरु हो चुकी है. अब तक चाचा चंपाई पर सीधा हमला करने के बचते रहे सीएम हेमंत अंदरखाने एक बड़ी किलेबंदी की तैयारी में है. सूत्रों का दावा है कि विधानसभा में लोबिन की एंट्री रोकने के लिए हेमंत सोरेन खुद बरहेट छोड़ बोरियो से मैदान में कूदने की तैयारी में हैं, दूसरी ओर झारखंड की सियासत में धूमकेतू बन कर सामने आयी कल्पना सोरेन चाचा चंपाई के खिलाफ सराईकेला के ताल ठोकने की तैयारी में है. हालांकि कल्पना सोरेन के सामने आदिवासी सुरक्षित सीट से चुनाव लड़ने को लेकर कई कानूनी पेचीदगियां भी हैं, लेकिन कल्पना सोरेन की तरह ही सीता सोरेन भी ओड़िसा से आकर आदिवासी आरक्षित जामा विधानसभा से चुनाव लड़ती रही है, इस बार भी भाजपा सीता सोरेन को किसी आदिवासी आरक्षित सीट से ही अखाड़े में उतराने की तैयारी में है. इस हालत में कल्पना सोरेन भी सराईकेला से चाचा चंपाई के खिलाफ ताल ठोक सकती है.
लोबिन हेम्ब्रम के साथ ही चंपाई सोरेन के लिए एक बड़ा सियासी झटका
और यदि ऐसा होता है तो यह लोबिन हेम्ब्रम के साथ ही चंपाई सोरेन के लिए एक बड़ा सियासी झटका होगा. दरअसल झामुमो की रणनीति कल्पना सोरेन को मैदान में उतार कोल्हान में एक मजबूत संदेश देने की है. जिस चंपाई सोरेन को कभी कोल्हान में झामुमो का सबसे बड़ा चेहरा बताया जाता था, हालांकि इसके कारण झामुमो के अंदर कई दूसरे नेताओं की नाराजगी भी पसरती रही. दीपक बरुआ हो या रामदास सोरेन दिल में कसक बनी रही, कल्पना सोरेन अब कोल्हान की कमान अपने हाथ में लेकर चाचा चंपाई की उस कमी को पूरा करना चाहती है. जिस तरीके से आदिवासी बहुल इलाकों के साथ ही गैर आदिवासी इलाके में कल्पना सोरेन को सुनने के लिए भीड़ उमड़ रही है. लोगों का काफिला निकल रहा है. चंपाई सोरेन के लिए इसकी काट खोजना बेहद मुश्किल होगा, इसके बाद शायद उनके लिए सराईकेला से बाहर निकल भाजपा के लिए प्रचार प्रसार भी करना मुश्किल साबित होगा और यही कारण है कि कल्पना सोरेन के साथ ही सीएम हेमंत बार-बार सराईकेला का दौरा अपनी जमीन को तैयार कर रहे हैं, कार्यकर्ताओं का नब्ज टटोल रहे हैं.
हेमलाल मुर्मू के बजाय खुद मोर्चा संभालने की तैयारी में हेमंत
ठीक उसी प्रकार हेमंत सोरेन बरहेट से विधानसभा से बाहर निकल उसकी निकटवर्ती सीट बोरियो से मैदान में उतरना चाहते हैं. दरअसल लोबिन हेम्ब्रम का वर्ष 1990 से बोरियो विधानसभा पर मजबूत पकड़ रही है, माना जाता है कि इस विधानसभा के अंदर झामुमो से इतर लोबिन का अपना भी एक समर्थक वर्ग है, और इसी बूते 1995 में वह झामुमो से बेटिकट किये जाने के बाद निर्दलीय जीत दर्ज करने में सफल रहे थें. झामुमो भी लोबिन हेम्ब्रम की इस ताकत को समझती है. जिसके कारण वह हेमलाल मुर्मू या किसी दूसरे चेहरे पर दांव लगाने के बजाय हेमंत सोरेन को मैदान में उतराना चाहती है, हेमलाल मुर्मू को बेहद सुरक्षित सीट बरहेट से मैदान में उतारा जा सकता है.
भाजपा के हर चाल पर झामुमो की नजर
दूसरी ओर जिस तरीके से भाजपा बाबूलाल मरांडी, लुईस मरांडी और दूसरे आदिवासी चेहरों को संताल और कोल्हान से मैदान में उतराने की रणनीति पर काम करी है. झामुमो के अंदर इसकी भी रणनीति तैयार हो रही है. भाजपा के एक-एक संभावित चाल पर उसकी नजर बनी हुई है. झामुमो की रणनीति इन सभी चेहरों के सामने कांग्रेस के बजाय अपना चेहरा उतारने की है. जिसके कारण कांग्रेस और झामुमो के अंदर सीटों की अदला-बदली पर भी गहनता के साथ विचार किया जा रहा है. दरअसल झामुमो इस बार कोई भी रिस्क नहीं लेना चाहती, एक तरफ वह कोयलांचल में माले मासस के साथ समझौता कर अपनी ताकत में इजाफा चाहती है तो दूसरी ओर कांग्रेस राजद के हिस्से अनावश्यक सीटें देकर जोखिम भी लेना नहीं चाहती.