खूंटी जिले से चाइल्ड ट्रैफिकिंग की शिकार बेटी की शर्मसार करने वाली एक दर्द भरी कहानी

सवाल उठता है कि क्या बेटी होना ही जुर्म है

रांची : हाल ही में 30 जुलाई को वर्ल्ड डे अगेंस्ट चाइल्ड ट्रैफिकिंग इन पर्सन के रूप में मनाया गया. हमने समाज एवं सरकार तमाम वादे एवं उपलब्धियों का बखान भी किया होगा. लेकिन, उस बच्ची को इससे क्या वास्ता, जो 14 वर्ष की उम्र में ही ट्रैफिकिंग का शिकार हो गई हो और तभी से ही न्याय पाने की आस में हो कि उसे अपनी ही एक बेटी कब तक वापस मिल सकेगी.
झारखण्ड के खूंटी जिले की एक नाबालिग बेटी ने शायद सपने में भी नहीं सोचा हो कि एक दिन देखते ही देखते उसका पूरा भविष्य अंधकारमय हो जाएगा. पिता का साया छीन गया. इसके बाद सगे. सम्बंधियों का क्या कहा जाए, उसकी सगी माँ ने उसका सौदा कर उसे बेच दिया. तंगहाली में पढ़ते हुए कक्षा सात में पहुँची ही थी कि उसे 70, 000 रुपए में बेच दिया गया. ऐसा ही कहना है एक बेटी का, जो अब करीब 27 वर्ष की हो चुकी है और मजदूरी कर अपनी बड़ी बेटी को वह सब देने का प्रयास कर रही है, जो उसे अपने बचपन में नहीं मिल पाया था. वह अपनी छोटी बेटी को भी माँ का प्यार देना चाहती है जो उससे छीन लिया गया है.
इस बेटी ने नोबल शांति पुरस्कार से सम्मानित कैलाश सत्यार्थी द्वारा स्थापित संस्था बचपन बचाओ आन्दोलन के कार्यकर्ता ब्रजेश कुमार मिश्र से अपनी पीड़ा साझा की है. जानिये, उस बेटी की दर्द भरी कहानी, उसी की जुबानी.
कैसे बेचा गया मुझे?
वर्ष 2007 के दशहरे का समय होगा. इस दौरान खूंटी से माँ, चाचा और मौसा के दबाव में मुझे यह कह कर रांची मेरी नानी का घर ले जाया गया कि नानी की तबीयत बहुत खराब है. वहां पहुँचने पर पता चला कि नानी तो बिल्कुल स्वस्थ है. फिर, मुझे बताया गया कि तुम्हारी शादी करानी है. तब मेरी उम्र 13-14 साल की थी. मैंने शादी से इनकार कर दिया और भागने की भी कोशिश की. इस पर मुझे एक कोठरी में बंद कर दिया गया. हरियाणा से आये एक अधेड़ उम्र के मर्द के सामने मुझे पेश किया गया. उस मर्द ने मुझे पसंद भी कर लिया. मुझे रांची स्टेशन लाया गया और हरियाणा के लिए रवाना करा दिया गया. मेरे मौसा-मौसी एवं दूर के रिश्ते में एक भाई भी मेरे साथ हो लिए. हरियाणा के रोहतक जिला के एक गाँव में ले जाकर मुझे कैद कर दिया गया. शादी का ढोंग कर मुझे नरक में धकेल दिया गया.
आठ वर्षों तक बनी रही यौन दासी
मुझे वहां वर्ष 2007 से 2014 तक बंधक बनाकर यौन दासी के रूप में कड़े पहरे के बीच रखा गया. मैं शारीरिक और मानसिक प्रताड़ना का लगातार शिकार होती रही. मेरे नकली पति के अलावा, उसके छोटे और बड़े भाई भी मेरे साथ जबरन शारीरिक संबंध बनाया करते थे. विरोध करने पर मुझे शारीरिक यातनाएं दी जाती थीं. समय बीतता गया, मैं दो बेटियों की माँ भी बन चुकी थी जिसके लिए शायद मैं न तो शारीरिक रूप से न ही मानसिक रूप से तैयार थी. मुझे खेतों में ले जाकर काम कराया जाता और मौका देखकर मेरे नकली पति का बड़ा भाई काम के दौरान भी मुझसे जबरन शारीरिक संबंध बनाया करता. मैंने कई बार भागने का प्रयास भी किया, लेकिन मेरे ऊपर कड़ा पहरा जो था. भागने की कोशिश करने पर, पकड़ कर कैद कर लिया जाता और मेरे सामने यातनापूर्ण जीवन जीने की विवशता के अलावा कोई दूसरा विकल्प न था. मेरा नकली पति अव्वल दर्जे का शराबी एवं निकम्मा था, जो कि रात-दिन शराब के नशे में धुत रहता.
पैसे का अभाव होने पर दूसरों से पैसे लेकर उन्हें मेरे साथ शारीरिक संबंध बनाने के लिए भेजता. यानी मुझसे वेश्यावृति कराना चाहता था, मेरे इनकार पर मुझे खूब मारा-पीटा जाता.
जुल्म की इन्तेहा से मुक्ति का सफर
वर्ष 2014 में मई या जून का महीना था. एक दिन, मौका पाकर मैं अपनी छोटी बेटी को वहीं छोड़ निकलने में सफल हो गई. किसी तरह भटकते हुए बस पकड़कर दिल्ली पहुंची. मेरे पास कुछ रुपए थे, जिससे मैंने झारखण्ड आने के लिए ट्रेन का टिकट खरीदा. लेकिन, झारखण्ड जाने के लिए कौन-सी ट्रेन पकड़नी है, पता ही नहीं था. दो-तीन दिनों तक दिल्ली रेलवे स्टेशन के प्लेटफार्म पर ही भटकती रही. एक भले पुलिस वाले ने ट्रेन में बैठने में मेरी मदद की और किसी तरह से मैं रांची पहुँच सकी.
दलदल में फिर से धकेलने की साजिश
अब मैं अपने घर खूंटी पहुंच चुकी थी. मेरे घर वालों ने मुझे रखने से मना कर दिया. लाचारीवश, मुझे मांग-मांग कर खाने को मजबूर होना पड़ा. फिर, मैंने मजदूरी करके अपना पेट भरने और रहने का खुद से इंतजाम किया. अपना अस्तित्व बचाने के लिए मैंने अकेले ही संघर्ष करने का फैसला किया और मैंने खूंटी में सब्जी बेचना भी शुरू किया. मेरे चाचा और मेरी माँ ने मुझे वापस हरियाणा नकली पति के पास जाने के लिए हरसंभव दबाव बनाया. लेकिन, दुबारा उस दल-दल में जाना मुझे कतई मंजूर नहीं था. फिर भी, वे नकली पति को बुलाकर उसके साथ हरियाणा जाने का दबाव बनाने लगे और इनकार करने पर मेरे साथ मार. पीट भी करते थे, क्योंकि वे तो पैसे लेकर मुझे बेच चुके थे. जहाँ भी किराए का घर लेकर रहती, वहां आकर सब मारपीट करने लगते और घर से निकलवा देते.
पुलिस का निराशाजनक रवैया
खूंटी थाना में गई, लेकिन थाना में रिपोर्ट दर्ज नहीं किया गया. खूंटी थाना के मेस में ही मैंने खाना बनाने का काम भी कई महीनों तक किया और अपनी पीड़ा बताते हुए रिपोर्ट दर्ज करने के गुहार लगाती रही, लेकिन थाने वाले उनसे पैसे लेकर मुझे चुप करा देते थे. मैंने वापस हरियाणा जाने से इनकार कर दिया तो मेरे साथ मारपीट की जाने लगी और मेरी बड़ी बेटी को छीना जाने लगा. लेकिन, पुलिस की मदद से मैं अपनी बड़ी बेटी को अपने पास रखने में कामयाब हो सकी. लेकिन, मेरी छोटी बेटी अभी भी उनके कब्जे हरियाणा में ही है.
डालसा का सहयोग
मेरे सगे-सम्बन्धियों और नकली पति ने मुझे इतना परेशान किया कि मेरे लिए खूंटी में रहना मुश्किल हो गया था. इसलिए, मैं अपनी बड़ी बेटी के साथ रांची के तुपुदाना में रहने लगी. मजदूरी कर अपना जीवन यापन कर रही हूँ. जिला विधिक सेवा प्राधिकार खूंटी के सौजन्य से एक सिलाई मशीन और 50000 रुपये मिले थे, लेकिन मैं अभी आर्थिक तंगी से जूझ रही हूँ.
न्याय पाने की राह नहीं है आसान
अपनी छोटी बेटी को वापस पाने के लिए दर-दर भटकती रही. खूंटी महिला थाना में भी मैंने कई बार न्याय की गुहार लगायी, लेकिन, किसी से कोई मदद नहीं मिली न ही मामला दर्ज किया गया. आखिरकार, वर्ष 2017 के दिसम्बर माह में एक वकील भैया की सहायता से माननीय झारखण्ड हाईकोर्ट के आदेश पर ही एएचटीयू खूंटी थाने में कांड दर्ज हो सका. फिर, नकली पति, मेरी माँ और मौसा-मौसी को गिरफ्तार कर जेल तो भेजा गया. वर्तमान में नकली पति को छोड़कर सभी जमानत पर बाहर हैं.
झारखण्ड हाईकोर्ट ने 29 अगस्त 2018 को इस मामले में सुनवाई करते हुए खूंटी न्यायालय को निर्देश दिया था कि पीड़िता को अपनी छोटी बेटी के साथ उपस्थित होने के लिए नोटिस दिया जाये. जबकि, मेरी छोटी बेटी अब तक हरियाणा में मेरे नकली पति के परिवार के चंगुल में ही है तो बगैर पुलिस की सहायता के मैं कैसे वापस ला सकती थी. बताना चाहूंगी कि मैंने 7 दिसम्बर 2018 को खूंटी उपायुक्त को अपनी छोटी बेटी की बरामदी हेतु सहायता के लिए प्रार्थना पत्र दिया था, लेकिन पुलिस द्वारा इस सम्बन्ध में कोई सहायता नहीं मिली.
फिर भी, राज्य महिला आयोग की पहल पर मैं उसे लेने के लिए पिछले फ़रवरी माह में हरियाणा तक भी गई. परन्तु, निराशा ही हाथ लगी. उसे वहां बंधक बनाया गया है. मुझे अंदेशा है कि उसका वहां यौन शोषण भी हो रहा होगा, क्योंकि मैंने उस परिवार का माहौल देखा है. उसे बरामद कर मेडिकल जांच की जायेगी, तो साफ़ हो जाएगा.
कुछ तीखे सवाल
अपने ऊपर हुए जुल्म को बर्दाश्त करने के बाद, अब मैं अपनी दोनों बेटियों के साथ एक इज्जत भरी जिंदगी जीना चाहती हूँ और मेरे पास कुछ सवाल भी हैं:
1. क्या मुझे अपनी छोटी बेटी को भी उन जालिमों के चंगुल से बचा कर न्याय पाने का अधिकार नहीं है, ताकि उसे भी मैं वह सब. कुछ दे पाऊं, जो मुझे मेरे बचपन में नहीं मिल पाया.
2. तीन साल तक दर. दर भटकते रहने और खूंटी पुलिस से कई बार गुहार लगाने के बावजूद भी शिकायत दर्ज नहीं किया जाना भी मेरी समझ के बाहर है.
3. वर्ष 2018 में ही झारखण्ड हाईकोर्ट का आदेश था कि मेरी छोटी बेटी को न्यायालय के सामने प्रस्तुत किया जाय, इसके लिए पुलिस मेरी सहायता क्यों नहीं कर रही. उनसे किसी ने यह सवाल पूछा क्या.