अमर बाउरी की राह में उमाकांत रजक का कांटा, रोचक मोड़ पर पहुंचा चंदनकियारी का खेल
झामुमो का दामन थामने की चर्चा तेज
2019 में अमर बाउरी के वोट में भारी गिरावट देखने को मिली थी, और यदि इस बार उमाकांत रजक झामुमो की सवारी कर बैठते हैं तो यह अमर बाउरी के लिए बड़ी मुसीबत साबित हो सकती है, चंदनकियारी में झामुमो की मजबूत पकड़ रही है, झामुमो के टिकट पर ही हारु राजवार ने वर्ष 2000 और 2005 में जीत दर्ज की थी. लेकिन वर्ष 2009 में हारु राजवार जदयू की सवारी कर बैठें और यह सीट झामुमो के हाथ से निकल गयी
रांची: एक तरह आजसू भाजपा की ओर से एनडीए गठबंधन में सब कुछ कुशल क्षेम होने का दावा किया जा रहा है. आजसू के हिस्से में 9 सीटें डाल कर भाजपा आश्वस्त नजर आ रही है, असम सीएम हिमंता भाजपा कार्यकर्ताओं से हेमंत सरकार को उखाड़ फेंकने का आह्वान कर रहे हैं, दूसरी ओर पूर्वी जमशेदपुर से लेकर चंदनकियारी तक का कांटा उलझता नजर आ रहा है. सियासी गलियारों में इस बात की चर्चा तेज है कि ना तो रघुवर दास पूर्वी जमशेदपुर के अपने किले को सरयू राय के लिए कुर्बान करने को तैयार है और ना ही चंदनकियारी सीट से पूर्व विधायक और आजसू नेता उमाकांत रजक अपनी दावेदारी का परित्याग करने वाले हैं.
हालांकि गठबंधन के तहत पूर्वी जमशेदपुर की सीट जदयू के खाते में और चंदनकियारी भाजपा के हिस्से में जाने की बात कही जा रही है. बताया जा रहा है कि कल पीएम मोदी के दौरे के बाद किसी भी वक्त झारखंड में विधानसभा चुनाव की अधिसूचना जारी हो सकती है, पांच सितम्बर के बाद एनडीए की ओर से सीट शेयरिंग के साथ ही उम्मीदवारों की प्रथम सूची का एलान भी किया जा सकता है, इस हालत में उम्मीदवारों का एलान के पहले सीट शेयरिंग को लेकर सहमति बनाना टेढ़ी खीर नजर आने लगा है. यदि समय रहते समाधान नहीं तलाशा गया तो एनडीए को इसका नुकसान भी उठाना पड़ सकता है.
चंदनकियारी को लेकर सियासत गर्म
दरअसल इन दिनों पूर्वी जमशेदपुर के साथ ही चंदनकियारी को लेकर सियासत गर्म है, दावा किया जा रहा कि यदि पूर्वी जमशेदपुर की सीट सरयू राय के कोटे में डालने की हुई तो रघुवर दास निर्दलीय अखाड़े में उतर कर भाजपा का खेल खराब कर सकते हैं, दूसरी ओर पूर्व विधायक उमाकांत रजक इस बार किसी भी कीमत पर नेता प्रतिपक्ष अमर बाउरी को सियासी शिकस्त देना चाहते हैं, कल आजसू कार्यकर्ताओं की बैठक में उमाकांत रजक ने साफ कर दिया कि चंदनकियारी के सर्वागीण विकास के लिए वह किसी भी कीमत पर चुनाव लड़ेंगे, पिछले 10 वर्षो में अमर बाउरी ने चंदनकियारी के लिए कुछ भी नहीं किया. किसान हो या जवान या फिर समाज का दूसरा तबका अमर बाउरी ने समाज के हर तबके को निराश किया. अंचल कार्यालय हो या प्रखंड कार्यालय कहीं कोई काम नहीं हो रहा, अमर बाउरी के क्रियाकलाप को लेकर मतदाताओं में जबरदस्त आक्रोश है. जनता सिर्फ चुनाव की रणभेरी बजने का इंतजार कर रही है, जैसे ही चुनाव की रणभेरी बजती है अमर बाउरी की विदाई तय है.
झामुमो का दामन थामने की चर्चा तेज
सियासी गलियारों में इस बात की चर्चा भी तेज है कि यदि यह सीट आजसू के खाते में नहीं आती है, तो उस हालत में उमाकांत रजक विकल्प की तलाश भी कर सकते हैं. उनकी पहली पसंद झामुमो भी हो सकता है, और यदि ऐसा होता है तो झामुमो को चंदनकियारी में एक मजबूत चेहरा मिल जायेगा. याद रहे कि उमाकांत रजक वर्ष 2009 में इस सीट से जीत दर्ज कर चुके हैं, तब उन्होंने अमर बाउरी को करीबन तीन हजार मतों से पराजित किया था, लेकिन वर्ष 2014 में उमाकांत रजक को हार का सामना करना पड़ा, अमर बाउरी तब 81,925 के साथ अपनी जीत दर्ज की थी, उमाकांत रजक के हिस्से 47,761 हजार वोट आया था. जबकि झामुमो के हारु राजवार ने 9189 वोट लाकर तीसरा स्थान प्राप्त किया था. वर्ष 2019 में एक बार फिर से जीत का सेहरा अमर बाउरी के माथे पर ही बंधा, इस बार अमर बाउरी के हिस्से 67,739 वोट आया, उमकांत रजक 58,528 तक अपना आंकड़ा पहुंचाने सफल रहें, जबकि झामुमो की ओर से बैटिंग करते हुए विनय कुमार राजवार ने 36,400 वोट प्राप्त किया.
आर-पार की लड़ाई के मुड में उमकांत रजक
साफ है कि 2019 में अमर बाउरी के वोट में भारी गिरावट देखने को मिली थी, और यदि इस बार उमाकांत रजक झामुमो की सवारी कर बैठते हैं तो यह उनके लिए मुसीबत साबित हो सकती है, चंदनकियारी में झामुमो की भी मजबूत पकड़ रही है, झामुमो के टिकट पर ही हारु राजवार ने वर्ष 2000 और 2005 में जीत दर्ज की थी. लेकिन वर्ष 2009 में हारु राजवार जदयू की सवारी कर बैठे और यह सीट झामुमो के हाथ से निकल गयी, और उमकांत रजक ने आजसू का झंडा बुलंद कर दिया, वर्ष 2014 में अमर बाउरी ने झाविमो का परचम लहरा दिया, लेकिन वर्ष 2019 में अमर बाउरी ने बाबूलाल को चकमा देते हुए भाजपा की सवारी करने का फैसला कर लिया. इस पलटी के बाद जीत तो मिली, लेकिन जीत हार का फासला सिमट गया. इस हालत में उमाकांत रजक का झामुमो की सवारी करना अमर बाउरी के लिए एक बड़ा सियासी सदमा हो सकता है.