नर्मदा आंदोलन के साथ एनवीडीए आयुक्त ने की बैठक, घाटी के लोगों के पूर्ण पुनर्वास की मांग उठाई गई
सरदार सरोवर का जलस्तर 122 मीटर पर सीमित रखने की मांग पर दिया गया जोर
धार के अलावा बड़वानी, खरगोन में स्वतंत्र बैठक और अलीराजपुर के पहाड़ी आदिवासी गांवों में पूर्व में शुरू होकर खंडित किये गये शिविरों की जरूरत प्रस्तुत की गयी। सभी तहसीलों में पुनर्वास अधिकारी और कर्मचारियों की नियुक्ति के बिना कुछ हजार परिवारों का पुनर्वास पूरा नहीं होगा।
धार/बड़वानी: नर्मदा बचाओ आंदोलन के अनिश्चितकालीन उपवास, धरना व सत्याग्रह के बाद घाटी में नर्मदा घाटी विकास प्राधिकरण के आयुक्त ने सरदार सरोवर परियोजना से प्रभावित चारों जिलों के जिलाधिकारी, अनुविभागीय अधिकारी तथा सभी जिला से संभाग तक के अधिकारियों को बुलाकर कुक्षी तहसील, जिला धार में बैठक आयोजित की।
साथ ही निसरपुर बसाहट में एक बैठक निर्वाचित जनप्रतिनिधियों के साथ करने के बाद आंदोलन के कार्यकर्ता और सैकड़ों विस्थापितों के साथ भी जनसंवाद आयोजित किया गया। यह जन संवाद दो घंटे चला और इसमें नर्मदा बचाओ आंदोलन की नेता मेधा पाटकर भी शामिल हुईं।
इस दौरान एनवीडीए आयुक्त को उर्वरित पुनर्वास कार्याें की सूची उपलब्ध कराई गई और तत्काल निर्णय लेने की मांग की गई। यह बताया गया कि सभी मुद्दों पर पहले से ही आवेदन प्रस्तुत किये गये हैं। कई बार चर्चा हुई है और उन पर तत्काल कार्रवाई की जरूरत है।
टीनशेड में सालों से भयावह स्थिति में रखे गये सैकड़ों परिवारों की हकीकत खेड़ा की सुशीला नाथ ने व चिखल्दा अनिता बहन ने बयां की। ग्राम पिपरी की डूबग्रस्त होने की कहानी श्रीराम भाई ने सुनायी। गाजीपुरा, कटनेरा, धरमपुरी, चंदनखेड़ी, एकलबारा आदि गांवों के लंबित मुद्दों पर जवाब की मांग की तो धार तहसील में अतिक्रमित जमीन देकर या गुजरात में खेती के लिए अनुपयोगी जमीन आवंटित करने से फंसाये गये परिवारों के लिए भी न्यायपूर्ण निर्णय, मध्यप्रदेश में वैकल्पिक भूमी के लिए 60 लाख का अनुदान देने की मांग दोहराई गई।
धार के अलावा बड़वानी, खरगोन में स्वतंत्र बैठक और अलीराजपुर के पहाड़ी आदिवासी गांवों में पूर्व में शुरू होकर खंडित किये गये शिविरों की जरूरत प्रस्तुत की गयी। सभी तहसीलों में पुनर्वास अधिकारी और कर्मचारियों की नियुक्ति के बिना कुछ हजार परिवारों का पुनर्वास पूरा नहीं होगा। यह आंदोलन की ओर से स्पष्ट किया गया। मुकेश भगोरिया और राहुल यादव के साथ प्रतिनिधियों ने गरीब, भूमीहीन, डूबग्रस्तों पर अन्याय को उजागर किया।
मेधा पाटकर ने 2023 के डूब की पोलखोल करते हुए स्पष्ट किया कि पिछले साल की डूब अतिवृष्टि से नहीं, 1ः100 वर्ष की बाढ़ से भी कम जलप्रवाह होते हुए, जलनियमन में असफलता और सरदार सरोवर के गेट न खोलने के कारण यह आपदा आयी। बैक वाटर में किये गये गलत बदलाव का भी उल्लेख किया गया।
पहाड़ से निमाड़ तक 1994 से 2023 तक डूब में आए सभी का संपूर्ण पुनर्वास होने तक किसी की संपत्ति नहीं डूबा सकते यह बात कही गई।
आंदोलन की ओर से समयबद्ध कार्य नियोजन और अमल की मांग की गई और 2024 में जलस्त को 122 मीटर पर सीमित रखने की बात कही गई।