डीजीपी की नियुक्ति का अधिकार सरकार ने अपने हाथ में लिया, यूपीएससी की भूमिका होगी खत्म
इस फैसले के बाद राज्य सरकार ने इसे अंगीकृत भी किया
अगर गृह मंत्रालय भारत सरकार सूची तैयार करने से पहले या पैनलीकरण समिति की बैठक के दौराना राज्य सरकार को लिखि रूप से सूचित करता की झारखंड के महानिदेशक एवं पुलिस महानिरीक्षक के पद पर नियुक्ति के लिए केंद्रीय प्रतिनियुक्ति तैनात अधिकारियों को कार्यमुक्त करना संभव नहीं है
रांची: झारखंड मंत्रिपरिषद ने पुलिस महानिदेशक एवं पुलिस महानिरीक्षक, झारखंड पुलिस बल प्रमुख के चयन एवं नियुक्ति नियमावली 2024 के गठन की मंजूरी दी है। सेवानिवृत जज की अध्यक्षता में गठित समिति की अनुशंसा के आलोक में अब डीजीपी की नियुक्ति होगी. यूपीएससी में नामों का पैनल नहीं भेजा जायेगा.
इस नियमावली के गठन से राज्य सरकार के समक्ष डीजीपी की नियुक्ति व उन्हें पद से हटाने की पूरी शक्ति प्राप्त हो जायेगी। दरअसल, सुप्रीम कोर्ट ने 2019 में एक आदेश पारित किया था और यह कहा था की महानिदेशक एवं पुलिस महानिरीक्षक के चयन के लिए मेरिट के आधार पर ऐसे पदाधकारियों का इम्पैनल्ड किया जाना चाहिए जिनकी के सेवानिवृति के पूर्व न्यूनतम छह माह की सेवा शेष है। इस फैसले के बाद राज्य सरकार ने इसे अंगीकृत भी किया।
लेकिन, राज्य सरकार के समक्ष् कभी कभी उत्पन्न प्रतिकुल परिस्थिति के कारण बेहतर विधि-व्यवसथा संधारण, नागरिकों के जान-माल की सुरक्षा, आंतकवाद एवं नक्सलियों द्वारा किए जाने वाली हिंसा पर नियंत्रण के लिए राज्यहित में महानिदेशक एवं पुलिस महानिरीक्षक को उनके न्यूनतम कार्यकाल दो वर्षो से पूर्व ही हटाये जाने अथवा किसी अन्य योग्य पदाधिकारी को महानिदेशक का प्रभार दिए जाने की बाध्यता हो जाती है। ऐसी स्थिति में सुप्रीम कोर्ट के दिशा-निर्देश के पूर्ण अनुपालन में दिक्कत होती है।
राज्य सरकार का मानना है की विशेष परिस्थिति में डीजीपी को न्यूनतम कार्यकाल के पहले हटाये जाने की शक्ति होना आवश्यक है। ऐसे में सरकार ने समस्त विधमान नियमों के तहत एक पुलिस बल के प्रमुख की नियुक्ति के लिए एक स्वतंत्र तंत्र स्थापित करने का फैसला लिया है। वेतन मैट्रिक्स लेबल 16 के राज्य संवर्ग में पुलिस महानिदाक का पद धारण करने वाले डीजीपी बनेंगे।
डीजीपी के पद रिक्त होने के तीन माह पहले ही कमेटी अनुशंसा करेगी नाम की। केंद्रीय प्रतिनियुक्ति में तैनात अधिकारियों के मामले मे भी नियम बनाये गये हैं जिसमें अगर गृह मंत्रालय भारत सरकार सूची तैयार करने से पहले या पैनलीकरण समिति की बैठक के दौराना राज्य सरकार को लिखि रूप से सूचित करता की झारखंड के महानिदेशक एवं पुलिस महानिरीक्षक के पद पर नियुक्ति के लिए केंद्रीय प्रतिनियुक्ति तैनात अधिकारियों को कार्यमुक्त करना संभव नहीं है तो ऐसे अधिकारियों पर समिति विचार नहीं करेगी। नामनिर्देशन समिति की सिफारिश पर डीजीपी न्यूनतम दो वर्षो तक नियुक्त रह सकेंगे, इसके बावजूदक इस अवधि के अंतर्गत इनकी सेवानिवृति हो।
इस आधार पर हट सकते हैं डीजीपी
डीजीपी पर कोई विभागीय कार्यवाही प्रारंभ न की गयी हो, किसी आपराधिक मामले में न्यायालय द्वारा दोषसिद्ध या भ्रष्टाचार से जुड़ी किसी मामले में कोर्ट द्वारा आरोप तय कर दिए गये हों, शारीरिक या मानसिक बीमारी की वजह से अक्षमता, दो वर्षो के कार्यकाल में यह राज्य सरकार को समाधान हो जाये की डीजीपी अपने कर्तव्यों के निर्वहन में असमर्थ हो गये हैं। कर्तव्य मुक्त् किए गये डीजीपी के स्थान पर नये डीजीपी पद के लिए वरीय अधिकारी को अतिरिक्त प्रभार तब तक के लिए दिया जायेगा जब तक किसी नये नाम पर सहमति न बन जाये।
यह समिति करेगी नाम की अनुशंसा
उच्च न्यायालय से कोई सेवानिवृत जज- अध्यक्ष
मुख्य सचिव
यूपीएससी का प्रतिनिधि-सदस्य
जेपीएससी के अध्यक्ष् या नामित प्रतिनिधि
गृह सचिव
सेवानिवृत डीजीपी।
वर्तमान में नियुक्ति के लिए भेजा जाता है पैनल
वर्तमान में डीजीपी के चयन के लिए राज्य सरकार वरीय आइपीएस अधिकारी के नामों का पैनल यूपीएससी को भेजती है वहां से एक नाम पर सहमति मिलने के बाद ही डीजपी की नियुक्ति हो पाती है।