बड़ी कठिन है डगर पनघट की, पूर्वी जमशेदपुर में सरयू राय के खिलाफ भाजपा की घेराबंदी!
.jpg)
इस बार पूर्वी जमशेदपुर से कांग्रेस पूर्व सांसद अजय कुमार को मैदान में उतराने पर विचार कर रही है. यानि रघुवर दास के इंट्री के साथ ही मुकाबला त्रिकोणीय शक्ल अख्तियार कर सकता है. उस हालत में कांग्रेस को अल्पसंख्यक वोटरों के साथ ही पिछड़ी जातियों और साधने की चुनौती होगी, वैश्य जाति जिसे पहले भाजपा का कोर वोटर माना जाता है, बदले हालात में रघुवर दास के खड़ा नजर आयेगा, लेकिन हार-जीत का दामोदार दूसरी पिछड़ी जातियों के चुनावी रुख पर निर्भर होगा. पूर्वी जमशेदपुर में कुर्मी जाति के साथ ही दलित और आदिवासी मतदाताओं की भी एक ठीक-ठाक आबादी है, और यदि यह आबादी कांग्रेस के साथ खड़ी हो गयी, तो फिर सरयू राय की हालत क्या होगी, इसकी कल्पना की जा सकती है
रांची: सियासत की राह इतनी आसान नहीं होती, यहां मंजिल तक पहुंचने के लिए कई घुमावदार पगडंडियों से गुजरना पड़ता है, जहां हर पल फिसलन का खतरा मौजूद रहता है, थोड़ी सी चुक हुई कि नहीं, मनसूबों को फुस्स होने में देर नहीं लगती. कुछ ऐसी ही स्थिति पूर्वी जमशेदपुर में बनती दिख रही है. जिस पूर्वी जमशेदपुर की सीट से वर्ष 2014 में सरयू राय ने तात्कालीन सीएम रघुवर दास को पराजित कर इतिहास रचा था, इस बार पूर्वी जमशेदपुर को साधने में हर दांव फंसता दिखलायी पड़ रहा है. जिस रणनीति और सियासी विवशता में जदयू का दामन थामा था, वह मंसूबा पूरा होता दिखलायी नहीं पड़ता. तमाम मान मनौव्वल के बावजूद भी रघुवर दास मैदान छोड़ने को तैयार नहीं दिख रहे हैं. उपर से वैश्य जातियों की ओर से भी मजबूत घेराबंदी होती दिखलाई पड़ रही है. और कहीं ना कहीं इस पहल को भाजपा का भी मौन समर्थन भी मिलता दिखलाई पड़ रहा है.
पूर्वी जमशेदपुर में ढुल्लू महतो ने डाला डेरा

ढुल्लू महतो को भाजपा का मौन समर्थन!
य़हां ध्यान रहे कि ढुल्लू महतो भाजपा के सांसद हैं और भाजपा जदयू के साथ केन्द्र और बिहार की सत्ता में हिस्सेदार है, इसके साथ ही सरयू राय को पूर्वी जमशेदपुर से जदयू का उम्मीदवार बताया जा रहा है. क्या किसी घटक के दल के बीच इस तरह की स्थिति कायम हो सकती है कि वह अपने ही घटक दल के उम्मीदवार के खिलाफ इस तरह की मोर्चाबंदी करे. क्या यह सिर्फ ढुल्लू महतो का बयान है, या फिर इसके पीछे भाजपा की मौन सहमति भी है, यदि इसके पीछे भाजपा की भी मौन सहमति है तो फिर क्या जदयू की सवारी कर भी सरयू राय सुरक्षित हैं. क्या जिस पूर्वी जमशेदपुर में उन्होंने रघुवर दास जैसे कद्दावर चेहरे को पराजित कर इतिहास रचा था, इस बार सीट निकालना भी संभव है? यह भी एक बड़ा सवाल है, सवाल यह है कि क्या सरयू राय की यह घेराबंदी बिहार के बदलते सियासी समीकरण को देखते हुए किया जा रहा है? क्या भाजपा आलाकमान भी यह मानकर चल रहा है कि नीतीश कुमार किसी बड़े खेल की तैयारी में हैं? जिसके कारण वह झारखंड में कोई रिस्क नहीं लेना चाहती? फिलहाल इसका कोई जवाब नहीं है. लेकिन जिस तरीके से सरयू राय के खिलाफ ढुल्लू महतो ने मोर्चा संभाला है, उसके गहरे सियासी निहितार्थ जरुर हैं.
पूर्वी जमशेदपुर से पूर्व सीएम रघुवर दास का चुनाव लड़ने की चर्चा तेज?
आपको बता दें कि भाजपा जदयू के बीच सीट शेयरिंग की तमाम दावों के बीच, एक खबर यह भी है कि पूर्व सीएम रघुवर दास पूर्वी जमशेदपुर के अपने गढ़ को किसी भी कीमत पर हाथ से निकलने देने को तैयार नहीं है. रघुवर दास को पता है कि इस चुनाव के बाद अगले पांच साल तक ना तो विधानसभा और ना ही लोकसभा का चुनाव होना है. मौजूदा समय में वह 69 बसंत पार कर चुके हैं. यदि पांच साल और इंतजार किया तो उनकी उम्र 74 के पार हो जायेगी. जिसके बाद भाजपा के अंदर सभी दरवाजे बंद हो जाते हैं. कड़िया मुंडा का मामला इसका उदाहरण है. यदि इस बार अखाड़े से बाहर होते हैं, तो अगले पांच साल तक कोई सियासी विकल्प नहीं होगा, रही राज्यपाल की कुर्सी, तो विधानसभा चुनाव के बाद भाजपा आलाकमान की क्या रणनीति होगी, कौन का दांव सामने आयेगा, उसको लेकर साफ तौर पर कुछ नहीं कहा जा सकता. राज्यपाल की कुर्सी भी हाथ से निकल सकती है, जिसके बाद रघुवर दास के सामने सिर्फ सियासी सन्नाटा होगा और यही वह परिस्थितियां हैं जो रघुवर दास को सियासी तौर पर परेशान किये हुए है. हालांकि अभी तक रघुवर दास की ओर से कोई बयान नहीं सामने आया है, लेकिन सियासी गलियारों में यह चर्चा तेज है कि दुर्गा पूजा की समाप्ति के बाद रघुवर दास राज्यपाल के रुप में अपनी भूमिका का त्याग कर निर्दलीय प्रत्याक्षी के बतौर चुनावी अखाड़े में उतरने का एलान कर सकते हैं. इसका संकेत ढुल्लू महतो की घेराबंदी से भी मिलता है और यदि ऐसा होता है तो 2019 के समान एक बार फिर से पूर्वी जमशेदपुर की सीट झारखंड की सियासत में हॉट सीट के रुप में सामने आयेगा. इतिहास एक बार फिर से अपने आप को दुहरायेगा. 2019 में सरयू राय ने निर्दलीय ताल ठोकने का एलान किया था, तो इस बार रघुवर दास सरयू राय के नक्शेकदम पर चलते नजर आयेंगे.
झारखंड की सियासत में रघुवर दास वैश्य जाति का एक बड़ा चेहरा
सीएम की कुर्सी तक पहुंचने के पहले तक भले ही रघुवर दास की पहचान जमशेदपुर तक सिमटी हो, लेकिन सीएम की कुर्सी पर बैठते ही सामाजिक दायरे में विस्तार हुआ है. आज रघुवर दास झारखंड की सियासत में पिछड़ी जातियों के साथ ही वैश्य जाति का एक बड़ा चेहरा हैं, हर विधानसभा में समर्थकों की लम्बी जमात है. रही बात वर्ष 2019 में सीएम की कुर्सी पर रहते हुए सरयू राय के हाथों मिली हार की, तो यहां यह भी याद रखना चाहिए कि उस वक्त सरयू राय निर्दलीय मैदान में थें, तब सरयू राय को हेमंत सोरेन का साथ भी मिला था, यह ठीक है कि कांग्रेस की ओर से उम्मीदवार खड़ा किया गया था, लेकिन झामुमो की पूरी शक्ति अप्रत्यक्ष रुप से सरयू राय के साथ ही खड़ी थी. जिसके कारण भी सरयू राय को अल्पसंख्यक समाज का भी साथ मिला था, लेकिन इस बार परिस्थितियां बदली होगी. यदि रघुवर दास निर्दलीय ताल ठोंकने का एलान करते हैं, तो वैश्य जाति जिसकी जमशेदपुर में एक बड़ी आबादी में हैं, रघुवर दास के साथ खड़ा हो सकता है, यानि भाजपा का वैश्य और अगड़ी जातियों का जो सामाजिक समीकरण है, वह भी एक बारगी विखर सकता है.
पूर्वी जमशेदपुर में त्रिकोणीय मुकाबला
यहां यह भी ध्यान रहे कि इस बार पूर्वी जमशेदपुर से कांग्रेस पूर्व सांसद अजय कुमार को मैदान में उतराने पर विचार कर रही है. यानि रघुवर दास के इंट्री के साथ ही मुकाबला त्रिकोणीय शक्ल अख्तियार कर सकता है. उस हालत में कांग्रेस को अल्पसंख्यक वोटरों के साथ ही पिछड़ी जातियों और साधने की चुनौती होगी, वैश्य जाति जिसे पहले भाजपा का कोर वोटर माना जाता है, बदले हालात में रघुवर दास के खड़ा नजर आयेगा, लेकिन हार-जीत का दामोदार दूसरी पिछड़ी जातियों के चुनावी रुख पर निर्भर होगा. पूर्वी जमशेदपुर में कुर्मी जाति के साथ ही दलित और आदिवासी मतदाताओं की भी एक ठीक-ठाक आबादी है, और यदि यह आबादी कांग्रेस के साथ खड़ी हो गयी, तो फिर सरयू राय की हालत क्या होगी, इसकी कल्पना की जा सकती है.