रघुवर के पेच में सरयू राय! निर्दलीय ठोका ताल तो बिगड़ सकता है पूर्वी जमेशदपुर का खेल
ताश के पतों के समान बिखर सकता है सरयू राय का सपना
इस बार पूर्वी जमशेदपुर से कांग्रेस पूर्व सांसद अजय कुमार को मैदान में उतराने पर विचार कर रही है. यानि रघुवर दास के इंट्री के बाद मुकाबला त्रिकोणीय शक्ल इख्तियार कर सकता है. उस हालत में कांग्रेस को अल्पसंख्यक वोटरों के साथ ही पिछड़ी जातियों और साधने की चुनौती होगी, वैश्य जाति जिसे पहले भाजपा का कोर वोटर माना जाता है, जो बदले हालात में रघुवर दास के खड़ा हो सकती है, लेकिन हार-जीत का दामोदार दूसरी पिछड़ी जातियों के चुनावी रुख पर निर्भर होगा.
रांची: सीट शेयरिंग को लेकर आजसू भाजपा और जदयू के बीच लगभग सहमति बनती दिख रही है. आजसू के हिस्से में करीबन 9 सीट जाने की खबर सामने आ रही है, जबकि दर्जन भर सीटों की आशा कर रही जदयू दो से तीन सीटों पर समझौता करने को तैयार हो चुकी है. पूर्वी जमशेदपुर के साथ ही जदयू के हिस्से में तमाड़ की सीट भी जाना तय माना जा रहा है. राजा पीटर का जदयू में एंट्री को इसी सीट शेयरिंग का नतीजा माना जा रहा है. लेकिन उपर से देखने से यह जितना आसान लग रहा है, अंदरखाने सब कुछ इतना सहज और सरल नहीं है. कई सीटों पर अभी भी पेंच फंसा है, सीट शेयरिंग पर सहमति के साथ ही कई सीटों पर आजसू, तो कई सीटों पर भाजपा के अंदर से नाराजगी की खबर सामने आ रही है. चंदनकियारी की जिस सीट को अमर बाउरी के कारण भाजपा की झोली में डाले जाने की खबर है. बदले हालात में आजसू के पूर्व विधायक उमाकांत रजक का कदम झामुमो की ओर बढ़ता नजर आ रहा है. कुछ यही स्थिति इचागढ़ विधानसभा की भी है. दावा किया जा रहा कि इचागढ़ को आजसू के खाते में डाला गया है, लेकिन यदि ऐसा होता है तो फिर भाजपा के पूर्व विधायक अरविन्द सिंह उर्फ मलखान सिंह का अगला कदम क्या होगा? यह भी देखने वाली बात होगी. लेकिन सबसे अधिक मुश्किल का सामना पूर्वी जमशेदपुर में करना पड़ सकता है.
ताश के पतों के समान बिखर सकता है सरयू राय का सपना
जिस आशा और सियासी रणनीति के साथ सरयू राय ने जदयू का दामन थामा है, और एनडीए कोटे में पूर्वी जमेशदपुर की सीट पर अपना दावा ठोका है. रघुवर दास के एक पैंतरे के साथ ही सरयू राय की पूरी सियासत ताश के पतों के समान बिखर सकता है. दरअसल सियासी गलियारों में इस बात की चर्चा तेज है कि पूर्व सीएम रघुवर दास पूर्वी जमशेदपुर के अपने गढ़ को किसी भी कीमत पर हाथ से निकलने देने को तैयार नहीं है. याद रहे कि इस चुनाव के बाद झारखंड में अगले पांच साल तक ना तो विधानसभा और ना ही लोकसभा का चुनाव होना है. इस हालत जीवन का 69 बसंत देख चुके रघुवर दास यदि इस बार सियासी अखाड़े से बाहर होते हैं, तो अगले पांच साल तक कोई सियासी विकल्प नहीं होगा, रही राज्यपाल की कुर्सी, तो विधानसभा चुनाव के बाद भाजपा आलाकमान की क्या रणनीति होगी, उसको लेकर कुछ साफ तौर पर नहीं कहा जा सकता. विधानसभा चुनाव के बाद राज्यपाल की कुर्सी भी हाथ से निकल जाती है, तो फिर रघुवर दास के सामने सियासी सन्नाटा होगा और यही वह परिस्थितियां हैं जो रघुवर दास को सियासी तौर पर परेशान किये हुए है. हालांकि अभी तक रघुवर दास की ओर से कोई बयान नहीं सामने आया है, लेकिन सियासी गलियारों में यह चर्चा तेज है कि दुर्गा पूजा की समाप्ति के बाद रघुवर दास राज्यपाल के रुप में भूमिका का त्याग कर निर्दलीय प्रत्याक्षी के बतौर चुनावी अखाड़े में उतरने का एलान कर सकते हैं. इसके साथ ही 2019 के समान एक बार फिर से पूर्वी जमशेदपुर की सीट हॉट सीट के रुप में सामने आयेगी. इतिहास एक बार फिर से अपने आप को दुहराता नजर आयेगा.
इस बार चुके तो इतिहास के पन्नों में दर्ज होंगे रघुवर दास
आपको बता दें कि सरयू राय ने वर्ष 2019 में जिस पूर्वी जमेशदपुर की सीट से रघुवर दास को पटकनी दी थी, उसी पूर्वी जमशेदपुर से रघुवर दास 1995 के बाद लगातार पांच बार विधायक रह चुके थें. लेकिन 2019 में उन्हे अपने ही काबिना मंत्री सरयू राय के हाथों हार का सामना करना पड़ा. रघुवर सरकार में मंत्री रहे सरयू राय ने अपनी ही सरकार के भ्रष्टाचार के खिलाफ मोर्चा खोल रखा था. तब सरयू राय को बेटिकट करने में रघुवर दास की अहम भूमिका थी, जब पार्टी का टिकट नहीं मिला तो सरयू राय ने अपनी परंपरागत सीट पश्चिमी जमशेदपुर की सीट के बजाय पूर्वी जमशेदपुर से रघुवर दास के खिलाफ ताल ठोकने का एलान कर दिया और यदि इस बार रघुवर दास निर्दलीय मैदान में उतरने का एलान करते हैं, तो इतिहास अपने आप को दुहराता नजर आयेगा. लेकिन बड़ा सवाल यह है कि क्या इस बार भी सरयू राय सरयू राय को सियासी अखाड़े में परास्त करने में कामयाब होंगे.
झारखंड की सियासत में रघुवर दास वैश्य जाति का एक बड़ा चेहरा
इस सवाल का जवाब तलाशने के पहले हमें दोनों के सियासी और सामाजिक पकड़ को समझना होगा, सीएम की कुर्सी तक पहुंचने के पहले तक भले ही रघुवर दास की पहचान जमशेदपुर तक सिमटी हो, लेकिन सीएम की कुर्सी तक पहुंचने के साथ ही सामाजिक दायरे में विस्तार हुआ है. आज रघुवर दास झारखंड की सियासत में पिछड़ी जातियों के साथ ही वैश्य जाति का एक बड़ा चेहरा हैं, हर विधानसभा में समर्थकों की लम्बी जमात है. रही बात वर्ष 2019 में सीएम की कुर्सी पर रहते हुए सरयू राय के हाथों मिली हार की, तो यहां यह भी याद रखना चाहिए कि उस वक्त सरयू राय निर्दलीय मैदान में थें, तब सरयू राय को हेमंत सोरेन का साथ भी मिला था, यह ठीक है कि कांग्रेस की ओर से उम्मीदवार खड़ा किया गया था, लेकिन झामुमो की पूरी शक्ति अप्रत्यक्ष रुप से सरयू राय के साथ ही खड़ी थी. जिसके कारण भी सरयू राय को अल्पसंख्यक समाज का भी साथ मिला था, लेकिन इस बार परिस्थितियां बदली होगी. यदि रघुवर दास निर्दलीय ताल ठोंकने का एलान करते हैं, तो वैश्य जाति जिसकी जमशेदपुर में एक बड़ी आबादी में हैं, रघुवर दास के साथ खड़ा हो सकता है, यानि भाजपा का वैश्य और अगड़ी जातियों का जो सामाजिक समीकरण है, एक बारगी विखर सकता है.
सरयू राय पर पिछड़ा विरोधी होने का आरोप
रही बात सरयू राय की तो, हाल के दिनों में उनकी छवि एक पिछड़ा विरोधी नेता की बनाने की कोशिश की जा रही है. विरोधी यह सवाल बार-बार उछाल रहे हैं कि सरयू राय को सिर्फ पिछड़े-दलित नेताओं का भ्रष्टाचार ही नजर क्यों आता है? सरयू राय को लालू यादव, रघुवर दास और ढुल्लू महतो का भ्रष्टाचार तो नजर आता है, लेकिन अगड़ी जाति से आने वाले नेताओं का भ्रष्टाचार नजर नहीं आता, जबकि भ्रष्टाचार तो हर सामाजिक वर्ग से आने वाले नेताओं में हैं, फिर सरयू राय का दुहरा रवैया क्यों? जिस तरीके से सरयू राय ने धनबाद में ढुल्लू महतो के खिलाफ अगड़ी जातियों की गोलबंदी करने की कोशिश की, सरयू राय को इस बार पूर्वी जमशेदपुर में इसकी कीमत चुकानी पड़ सकती है और यदि वाकई में यह स्थिति निर्मित होती है तो सरयू राय के साथ सिर्फ अगड़ी जातियों की गोलबंदी ही होगी और सिर्फ अगड़ी जातियों की इस गोलबंदी से सरयू राय की नैया पार नहीं हो सकती.
पूर्वी जमशेदपुर में त्रिकोणीय मुकाबला
यहां यह भी ध्यान रहे कि इस बार पूर्वी जमशेदपुर से कांग्रेस पूर्व सांसद अजय कुमार को मैदान में उतराने पर विचार कर रही है. यानि रघुवर दास के इंट्री के बाद मुकाबला त्रिकोणीय शक्ल इख्तियार कर सकता है. उस हालत में कांग्रेस को अल्पसंख्यक वोटरों के साथ ही पिछड़ी जातियों और साधने की चुनौती होगी, वैश्य जाति जिसे पहले भाजपा का कोर वोटर माना जाता है, जो बदले हालात में रघुवर दास के खड़ा हो सकती है, लेकिन हार-जीत का दामोदार दूसरी पिछड़ी जातियों के चुनावी रुख पर निर्भर होगा. पूर्वी जमशेदपुर में कुर्मी जाति के साथ ही दलित और आदिवासी मतदाताओं की भी एक ठीक-ठाक आबादी है, और यदि यह आबादी कांग्रेस के साथ खड़ी हो गयी, तो एनडीए के लिए यह सीट भी मुश्किल में पड़ सकती है.