भारत में एनर्जी ट्रांजिशन में पवन ऊर्जा की हो सकती है महत्वपूर्ण भूमिका

भारत में एनर्जी ट्रांजिशन में पवन ऊर्जा की हो सकती है महत्वपूर्ण भूमिका

केंद्र और राज्य सरकारें सही दिशा में काम करें तो वर्ष 2026 तक वायु ऊर्जा देश की कुल स्वच्छ ऊर्जा क्षमता में कर सकती है 23.7 गीगावॉट वृद्धि में मदद

 

भारत में एनर्जी ट्रांजिशन को बल देने में पवन ऊर्जा महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है। इसका अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि भारत अगले पांच वर्षों में 23.7 GW कि उत्पादन क्षमता जोड़ सकता है। मगर इसे संभव बनाने के लिए सक्षम नीतियां, सुविधाजनक साधन, और सही संस्थागत हस्तक्षेप ज़रूरी होंगे।

इन बातों का खुलासा होता है ग्लोबल विंड एनर्जी काउंसिल (GWEC) और MEC इंटेलिजेंस (MEC+) द्वारा जारी विंड एनर्जी मार्केट आउटलुक 2026 से। यह इस आउटलूक का तीसरा वार्षिक संस्करण है और इसमें भारत में वायु ऊर्जा की स्थिति का जायजा लेते हुए भारत के स्वच्छ ऊर्जा रूपांतरण में वायु ऊर्जा की महत्वपूर्ण भूमिका को रेखांकित किया गया है। इस जायजे से यह पता चलता है कि अगर जरूरी सक्षमकारी नीतियां अपनाई जाए और सही संस्थागत उपायों को अपनाया जाए तो भारत की ऊर्जा क्षमता में अगले 5 साल के दौरान 23.7 गीगावाट की अतिरिक्त वृद्धि की जा सकती है।

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इसके अनुसार, महामारी के कारण, कई परियोजनाएं शुरू नहीं हो सकीं या समय से पीछे चल रही हैं। इसलिए, अब मुख्य उद्देश्य प्रक्रिया को शुरू करना है जिससे भारत संभावित रूप से रिन्यूबल एनेर्जी में वैश्विक बदलाव का नेतृत्व करने के लिए एक बड़े अवसर का लाभ उठा सके।

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मार्च 2022 तक, पवन ऊर्जा ने स्थापित क्षमता के 37.7 प्रतिशत के साथ भारत में रिन्यूबल एनेर्जी के सभी घटकों के मिश्रण में बहुमत हासिल की।

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लेकिन देश में मौजूद समग्र क्षमता की तुलना में वर्तमान स्थापित क्षमता नगण्य है। ध्यान देने वाली बात है कि 120 मीटर की ऊंचाई पर 600 गीगावॉट से अधिक की ऑनशोर विंड क्षमता है। जिसमें 174 गीगावॉट फिक्स्ड-बॉटम और फ्लोटिंग अपतटीय पवन क्षमता है। इन आंकड़ों से संकेत मिलता है कि एक विशाल अप्रयुक्त पवन ऊर्जा क्षमता मौजूद है जो भारत के स्वच्छ एनेर्जी ट्रांज़िशन को आगे बढ़ा सकती है।

विशेषज्ञों ने इस जरूरत को पूरा करने के लिए अपतटीय सहित भारत की पवन क्षमता की पूरी क्षमता का उपयोग करने की आवश्यकता पर ज़ोर दिया है।

अपनी प्रतिक्रिया देते हुए जीडब्ल्यूईसी के सीईओ बेन बैकवेल ने कहा “यह दस्तावेज एक ऐसे समय प्रकाशित हुआ है जब दुनिया एक निर्णायक मोड़ पर खड़ी है। इस वक्त जलवायु परिवर्तन से धरती को होने वाले अपूरणीय नुकसान से बचाने के लिए ऊर्जा रूपांतरण को तात्कालिक रूप से करने की शक्ल में एक बहुत संकरा रास्ता ही बचा है। भारत इस अवसर को भुना सकता है, मगर इसके लिए उसे कोविड-19 महामारी के कारण हुए विलंब के बाद अपने ऊर्जा रूपांतरण अभियान को फौरन शुरू करना होगा।“

“इस बहुत बड़े अवसर को हाथ में लेने के लिए भारत को तीन क्षेत्रों पर ध्यान देना होगा। पहला, आम राय बनाने के लिए केंद्र और राज्य सरकारों के बीच संवाद। दूसरा, लक्ष्य और निर्धारित समय सीमा के मिलान में मदद के लिए निष्पादन और भारत को वायु ऊर्जा के वैश्विक आपूर्तिकर्ताओं और निर्माणकर्ताओं के लिए एक प्रमुख गंतव्य बनाना।“

भारत के अक्षय ऊर्जा भंडार में वायु ऊर्जा की बड़ी हिस्सेदारी है। मार्च 2022 तक स्थापित कुल संचयी अक्षय ऊर्जा में इसका योगदान 37.7% रहा है। हालांकि संपूर्ण अनुमानित संभावित ऊर्जा क्षमता वर्तमान स्थापित क्षमता के मुकाबले बहुत ज्यादा है। भारत में 120 मीटर हब हाइट पर 600 किलोवाट ऑनशोर ऊर्जा क्षमता मौजूद है। वहीं, 174 गीगावाट की फिक्स्ड बॉटम एंड फ्लोटिंग ऑफशोर वायु ऊर्जा क्षमता भी मौजूद है। यह आंकड़े बताते हैं कि भारत में बहुत भारी मात्रा में ऐसी ऊर्जा क्षमता मौजूद है जिसका अभी दोहन नहीं हुआ है और यह देश के अक्षय ऊर्जा रूपांतरण को आगे बढ़ाने में बहुत महत्वपूर्ण साबित होगी।

आगे, जीडब्ल्यूईसी इंडिया के अध्यक्ष और रिन्यू पावर प्राइवेट लिमिटेड के चेयरमैन तथा सीईओ सुमंत सिन्हा ने कहा “अगर भारत को सीओपी26 में निर्धारित अपने लक्ष्यों को प्राप्त करना है तो उसे आफशोर समेत अपनी विशाल वायु ऊर्जा क्षमता का संपूर्ण इस्तेमाल तेजी से करना होगा। हम ऐसा कर सकते हैं लेकिन इसके लिए सभी को एक साथ आगे आना होगा और नीति निर्धारकों से लेकर अक्षय ऊर्जा से जुड़ी कंपनियों और निवेशकों से लेकर नवोन्मेषकर्ताओं और प्रबुद्ध वर्ग से लेकर बहुपक्षीय ऋणदाताओं तक को आज से लेकर अगले कुछ दशकों तक बिना रुके-थके साथ मिलकर काम करना होगा। अगर हमें स्वच्छ ऊर्जा में रूपांतरण को सफल बनाना सुनिश्चित करना है तो इससे कम समर्पण से काम नहीं चलेगा ताकि हमारी आने वाली पीढ़ियां आसानी से सांस ले सकें और एक रहने लायक धरती पर गुजारा कर सकें।”

रिपोर्ट में पाया गया है कि भारत का बाजार कोविड-19 महामारी की वजह से प्रभावित हुआ है। महामारी की दूसरी लहर और वैश्विक स्तर पर आपूर्ति श्रंखला से जुड़ी चुनौतियों के चलते स्थितियां बहुत खराब हुई हैं। हालांकि नवीन एवं अक्षय ऊर्जा मंत्रालय (एमएनआरई) ने इस बारे में अनेक कदम उठाए हैं। उदाहरण के तौर पर मंत्रालय ने समय सीमा में वृद्धि की है जिसके चलते 0.7 गीगा वाट की विलंबित परियोजनाएं वर्ष 2022 में पूरी की जा रही हैं।

वर्ष 2021 और इस साल के संस्करण के जारी होने के बीच 2.65 गीगा वाट की एसईसीआई द्वारा प्रदत वायु/सौर हाइब्रिड (डब्ल्यूएसएच) टेंडर और 3.5 गीगावॉट की स्टैंडअलोन वायु परियोजनाएं भी प्रदान की गई। पिछले कई सालों के विपरीत स्टैंडअलोन और हाइब्रिड परियोजनाओं को ओवरसब्सक्राइब किया गया। इससे ग्रिड सिस्टम में लचीलापन लाने और डीकार्बनाइजेशन के काम में वायु ऊर्जा की लगातार मजबूत होती प्रमुख भूमिका को फिर से उसका स्थान वापस मिला है।

एमईसी+ के प्रबंध निदेशक सिद्धार्थ जैन कहते हैं, “ भारत का ट्रैक रिकॉर्ड दिखाता है कि वायु ऊर्जा स्थापना का बाजार हिचकोलों से भरा है। देश में वर्ष 2017-2018 से पाइप लाइन में उल्लेखनीय हलचल है लेकिन परियोजनाओं को अमलीजामा पहनाने में हो रही देर से विकासकर्ताओं के अनुमान चुनौतियों से घिर गए हैं। हालांकि इस सबके बावजूद सौर ऊर्जा के पूरक के रूप में वायु ऊर्जा की भूमिका वर्ष 2021 में और मजबूत हुई है। बिजली की पीक मांग को पूरा करने के लिए कारपोरेट और बिजली वितरण कंपनियों द्वारा बिजली खरीद के लिए वायु सौर हाइब्रिड परियोजनाओं के प्रबंधन से किए गए समझौतों (पीपीए) की संख्या में वृद्धि हुई है। बड़ी टर्बाइंस के निर्यात और स्थानीय आपूर्ति बाजार में नये आपूर्तिकर्ताओं की आमद से वायु ऊर्जा उपकरणों की आपूर्ति के मामले में भारत एक वैश्विक केंद्र की स्थिति में पहुंच रहा है। मौजूदा रुझानों को देखते हुए हमें उम्मीद है कि भारत में वर्ष 2026 तक वायु ऊर्जा की मांग का पुनरुद्धार होगा।“

भारतीय बाजार में एक बहुत बड़ा अवसर है जिसका अभी इस्तेमाल नहीं किया गया है। यह दस्तावेज इस बात की अंतर्दृष्टि प्रदान करता है कि किस तरह हमारा देश अपने वायु ऊर्जा संसाधनों की संभावनाओं को पूरी तरह इस्तेमाल कर सकता है।

इसके लिए पांच सुझाव निम्नांकित हैं :

 

केंद्र और राज्य सरकारों के बीच समन्वय और आम राय निर्माण प्रक्रिया को मजबूत किया जाए।

प्रौद्योगिकी के आदान-प्रदान और वैश्विक वायु ऊर्जा आपूर्ति श्रंखला का संरेखण किया जाए।

वायु ऊर्जा उत्पादन के लिए पहले से ही निर्धारित स्थलों से उत्पादकता और सामाजिक आर्थिक लाभों को अधिकतम करने के लिए दक्षतापूर्ण रास्ता सुझाने वाले पुनर्शक्तिकरण अवसरों का दोहन किया जाए।

उन पुरानी चुनौतियों का समाधान किया जाए जिनकी वजह से देश में वायु ऊर्जा का विकास बुरी तरह प्रभावित हुआ है।

ऑफशोर वायु ऊर्जा विकास संबंधी कार्ययोजनाओं को अंतिम रूप देकर उन्हें लागू किया जाए। जीडब्ल्यूईसी इंडिया के पॉलिसी डायरेक्टर मार्तंड शार्दुल ने ऊर्जा क्षेत्र के डीकार्बोनाइजेशन और भरोसेमंद स्वच्छ ऊर्जा आपूर्ति की उपलब्धता और पर्याप्तता संबंधी आवश्यकताओं को पूरा करने में मदद के लिए स्टैंडअलोन और हाइब्रिड वायु ऊर्जा परियोजनाओं की बढ़ती भूमिका पर जोर दिया। उन्होंने कहा “सुधार के लिए किसी भी गुंजाइश की पहचान करने और एक संपन्न कारोबारी माहौल सुनिश्चित करने के साथ-साथ प्रगति को तेज करने के लिए नीतिगत संशोधनों का मूल्यांकन समय-समय पर किया जाना चाहिए।”

केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा हाल के नीतिगत हस्तक्षेपों से बाजार के लिए एक उम्मीद हासिल होती है, लेकिन यह स्पष्ट है कि बाजार को पुनर्जीवित करने और महत्वाकांक्षी लक्ष्यों को पूरा करने के लिए ठोस कदम उठाने की आवश्यकता है। इस रिपोर्ट का मानना है कि भारत ऐसा कर सकता है।

 

Edited By: Samridh Jharkhand

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