बंगाल के चाय मजदूरों का मामला: हाइकोर्ट ने राज्य सरकार को तीन सप्ताह में हलफनामा दायर करने का दिया निर्देश
पीबीसीएमएस की याचिका पर जलपाईगुड़ी सर्किट कोर्ट में हुई सुनवाई


पिछली रिट याचिका में जलपाईगुड़ी सर्किट बेंच ने 10 अप्रैल 2024 को पीबीसीएमएस एवं अन्य हितधारकों द्वारा दायर वक्तव्य पर विचार करने और चाय मजदूरों की न्यूनतम मजदूरी पर छह सप्ताह के अंदर एक तर्कसंगत आदेश पारित करने के लिए कहा था। कोर्ट ने ऐसा आदेश पारित होने के दो सप्ताह के अंदर उसे लागू करने का निर्देश दिया था।
हालांकि ऐसा आदेश पारित होने के बावजूद राज्य सरकार ने आदेश का यांत्रिक पालन किया और पीबीसीएमएस के साथ मामले की सुनवाई की और न्यूनतम मजदूरी तय करने के लिए कोई प्रभावी कदम नहीं उठाया और 31 मई 2024 को एक लाइन का आदेश पारित किया। पीबीसीएमएस ने इस आदेश को चुनौती देते हुए वर्तमान रिट याचिका पारित की।
मालूम हो कि 27 अप्रैल 2023 को राज्य सरकार ने चाय श्रमिकों की न्यूनतम मजदूरी 232 रुपये प्रतिदिन से 250 रुपये कर दी थी। गुडरिक ग्रुप लिमिटेड एवं अन्य ने इस फैसले को कलकत्ता हाइकोर्ट में चुनौती दी। एक अगस्त 2023 को अदालत ने इस याचिका को खारिज कर दिया। हालांकि राज्य सरकार ने आज तक चाय मजदूरों की मजदूरी को अंतिम रूप नहीं दिया है।
उल्लेखनीय है कि नई रिट याचिका को लेकर मेरिको एग्रो इंडस्ट्रीज प्राइवेट लिमिटेड ने रिट याचिका में केवल इस कंपनी को शामिल करने पर आपत्ति जताई, भले ही याचिकाकर्ता उनके बगीचे से थे। इस कंपनी की ओर से पेश हुए वकील ने कहा कि अन्य चाय कंपनियों को इस मुकदमे में शामिल किया जाना चाहिए। अदालत ने ऐसी सभी शिकायतों व दलीलों को रिकार्ड पर लाने के लिए एक हलफनामा दायर करने का निर्देश दिया।
याचिकाकर्ता यूनियन पीबीसीएमएस रेप्टोकेस ब्रेट मामले में सुप्रीम कोर्ट के आदेश का पालन करने का आग्रह किया है, जिसके अनुसार वर्तमान कीमतों पर न्यूनतम मजदूरी कम से कम 800 रुपये प्रतिदिन होगी। इसमें अनूप सतपथि कमेटी की रिपोर्ट भी सामने रखी गई जिसने 2018 में सिफारिश की थी कि देश में कोई भी मजदूरी 375 रुपये से कम नहीं होनी चाहिए।
पीबीसीएमएस का तर्क है कि इन पद्धतियों को ध्यान में रखते हुए न्यूनतम मजदूरी घोषित करना राज्य सरकार का दायित्व है। प्रतिदिन मात्र 250 रुपये की मजदूरी श्रमिकों को लगातार गरीबी की स्थिति में बनाए हुए है। नियोक्ता कम वेतन देने के लिए मौसम की स्थिति के कारण कम पैदावार व इनपुट लागत में वृद्धि का बहाना बना रहे हैं। उनकी दलील है कि न्यूनतम मजदूरी की घोषणा पश्चिम बंगाल में उद्योग के लिए मौत की घंटी होगी, जबकि केरल व तमिलनाडु में नियोक्ता जो सामान्य परिस्थितियों में कार्य कर रहे हैं काफी अधिक मजदूरी दे रहे हैं। पश्चिम बंगाल व असम श्रमिकों को कम भुगतान किया जा रहा है। इस साल चाय की आपूर्ति कम होने से कीमत मे 20 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। भारतीय चाय की मांग स्थिर बनी हुई है व घरेलू व निर्यात दोनों स्तरों पर बढी है। पीबीसीएमएस की दलील है कि ऐसे मजबूत बाजार के साथ बढती इनपुट लागत और उत्पादन में मौसम संबंधी नुकसान की भरपाई नियोक्ताओं या उपभोक्ताओं द्वारा की जानी चाहिए न कि भूखे मजदूरों के द्वारा। याचिकाकर्ता का प्रतिनिधित्व सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील डॉ एस मुरलीधर द्वारा किया गया था, जबकि उनके सहयोगी अधिवक्ता पुर्बयान चक्रवर्ती एवं दीप्तांगशु कर हैं।