विधानसभा चुनाव 2024: हटिया में नवीन जायसवाल का चौका या पूरा होगा अजयनाथ शाहदेव का सपना
पांच से सात फीसदी वोटरों के मिजाज में बदलाव से बदला सकता पूरी तस्वीर
क्या अजयनाथ शाहदेव ने 2019 की हार के बाद मतदाताओं के साथ अपने को जोड़े रखा है या फिर चुनावी समर के दौरान ही मतदाताओं की याद आई है? क्या खुद अपने चेहरे के सहारे भी अजयनाथ शाहदेव कांग्रेस और महागठबंधन के आधार वोट बैंक में वृद्धि करने की स्थिति में हैं? क्या इन पांच वर्षों के दौरान अजय नाथ शाहदेव ने मतदाताओं का साथ अपना रिश्ता बनाये रखा है? क्या हटिया विधानसभा के मूलभूत सवाल पर अपने मतदाताओं के साथ खड़ा रहे हैं? वास्तव में इस बार हटिया में इसकी ही परीक्षा होने वाली है? यदि अजयनाथ शाहदेव इन पांच वर्षों में अपने मतदाताओं के साथ अपना रिश्ता बनाये रखा होगें तो हटिया की सियासी तस्वीर में बदलाव से इंकार नहीं किया जा सकता
रांची: लोकसभा सीट के तहत आने वाली विधान सभा की छह सीटों में आज के दिन इचागढ़ (जेएमएम- सविता महतो, खिजरी (कांग्रेस राजेश कच्छप), सिल्ली ( आजसू -सुदेश महतो), रांची (भाजपा-सीपी सिंह), कांके( भाजपा -समरी लाल) और हटिया में भाजपा के नवीन जायसवाल का कब्जा है. यानि छह में एक पर कांग्रेस, तीन पर भाजपा और एक-एक पर आजसू और झामुमो का झंडा है. भाजपा की कब्जे वाली तीन सीट रांची और कांके को पंरपरागत रुप से भाजपा का मजबूत किला माना जाता है. लेकिन हटिया का सामाजिक समीकरण कुछ ऐसा कि एक हल्की सेंधमारी के साथ ही जीत और हार की तस्वीर बदलती नजर आती है. मौजूदा भाजपा विधायक नवीन जायसवाल कई पार्टियों के सफर के बाद इस बार कमल की सवारी करते हुए चौका मारने की तैयारी में हैं.
नवीन जायसवाल का सियासी सफर
आपको बता दें कि हटिया विधान सभा में नवीन जायसवाल की एंट्री आजसू के बनैर तले 2012 में हुई थी. लेकिन, आजसू के टिकट पर विधानसभा में पहुंचने के महज दो साल के अंदर-अंदर बाबूलाल मरांडी की पार्टी झाविमो का दामन थाम लिया. लेकिन बाबूलाल की पार्टी झाविमो भी नवीन जायसवाल का स्थायी ठिकाना साबित नहीं हुआ. महज साल भर बाद वह भाजपा के साथ खड़े हो गयें. रघुवर दास के शासन काल में बाबूलाल के खिलाफ जिस ऑपेरशन कमल को अंजाम दिया गया था और जिन छह विधायकों ने बाबूलाल मरांडी के गच्चा देते हुए भाजपा का दामन थामा था, उसमें एक चेहरा नवीन जायसवाल का भी था. इस पालाबदल के बाद नवील जायसवाल एक बार फिर से वर्ष 2019 में एक बार फिर से भाजपा के टिकट पर विधानसभा पहुंचने में कामयाब रहें. लेकिन जैसा कि आपको बताया, हटिया का सामाजिक समीकरण ही कुछ ऐसा है कि यहां कुछ भी दावे के साथ नहीं कहा जा सकता, और यह कहने में भी कोई गुरेज नहीं होगा कि इस बार नवीन जायसवाल की वापसी होगी या फिर कोई नया खेल होगा? पूरी तस्वीर ही बदली नजर आयेगी? इसकी भविष्यवाणी अभी से नहीं की जा सकती है. हम ऐसा क्यों कह रहे हैं और इस बात की आशंका क्यों जता रहे हैं, इसको जानने के पहले हटिया विधानसभा का सामाजिक समीकरण पर एक नजर डालना बेहद जरुरी होगा. उसके बाद ही तस्वीर कुछ साफ होती नजर आयेगी.
क्या है हटिया का सामाजिक समीकरण
एक आकलन के अनुसार हटिया विधान सभा में अनुसूचित जनजाति के मतदाताओ की संख्या करीबन 28 फीसदी की है, जबकि मुस्लिम मतदाता 15 फीसदी. इसके साथ ही ग्रामीण और शहरी मतदाताओं का मिश्रण भी है. ग्रामीण मतदाता 23 फीसदी है, जबकि शहरी मतदाता 76 फीसदी के आसपास, यही 76 फीसदी शहरी मतदाता भाजपा की ताकत है. लेकिन इस शहरी मतदाताओं में मुस्लिम और आदिवासी के साथ ही पिछड़ी जातियों के मतदाताओं का भी एक बड़ी संख्या है. कुड़मी महतो की भी एक सीमित आबादी है. शहरी मतदाताओं में जो मुस्लिम और आदिवासी आबादी है, हार जीत में इनकी एक अहम भूमिका होती है. यदि हम मुस्लिम और आदिवासी मतदाताओं को आपस में जोड़ दें तो यह करीबन 43 फीसदी के आस -पास पहुंच जाता है. याद रहे कि वर्ष 2019 के मुकाबले में भी कांग्रेस के उम्मीदवार अजय नाथ शाहदेव को 39.38 फीसदी के साथ 99,167 वोट मिला था. फुलवामा अटैक के कारण उपजे राष्ट्रवाद में लहर में नवीन जायसवाल को 115,431 के साथ जीत मिली थी. यानि 45 फीसदी मतदाताओं का साथ मिला था. साफ है कि मुकाबला तब भी दिलचस्प था. यदि इस बार पांच से सात फीसदी वोट भी इधर-उधर होता है, तो एक दूसरी तस्वीर सामने आने की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता
मोदी लहर का खात्मा! भाजपा की नयी मुसीबत
2014 के बाद देश की सियासत में जो मोदी लहर आया, हटिया विधानसभा का चुनावी समीकरण भी उससे अछूता नहीं रख सका. आदिवासी और दूसरी कई पिछड़ी जातियों का वह हिस्सा जो सामान्य तौर पर भाजपा के साथ नहीं जाता, उस मोदी लहर में भाजपा के साथ खड़ा नजर आया. लेकिन लोकसभा का चुनाव परिणाम इस बात का सबूत है कि अब मोदी लहर ढलान पर है, उसकी तीव्रता गुजर चुकी है. मतदाता अपने-अपने पुराने खांचों की ओर वापस लौट रहे है. हिन्दुत्व से बाहर निकल सामाजिक पहचान का सवाल एक बार फिर से गहराने लगा है. वर्ष 2014 और 2019 में 28 फीसदी आदिवासी मतदाताओं एक बड़ा हिस्सा , जो भाजपा के साथ जाता दिखा था और वर्ष 2019 में नवीन जायसवाल की जीत की वजह बनी थी, एक बार फिर से इंडिया गठबंधन की ओर लौटता दिखने लगा है. आदिवासी मतदाताओं के मिजाज में यह बदलाव भाजपा के लिए चिंता का विषय है. 15 फीसदी मुस्लिम मतदाताओं का इंडिया गठबंधन का साथ छोड़ने का पहले भी कोई प्रश्न नहीं था और आज भी वह पूरी ताकत के साथ इंडिया गठबंधन के साथ ही खड़ा है.
एक बार फिर अजयनाथ शाहदेव हो सकते हैं कांग्रेस का चेहरा
हालांकि कांग्रेस के अंदर कई दूसरे चेहरे भी मैदान में है. कई चेहरे अभी अपने आप को रेस में सबसे आगे भी बता रहे हैं. लेकिन अजय नाथ शाहदेव अभी भी मैदान में डटे हुए हैं और इसका कारण है अजयनाथ शाहदेव का पिछला प्रर्दशन, वर्ष 2019 के मुकाबले में जहां नवीन जायसवाल को 115,451 मतों से जीत मिली थी, वहीं अजयनाथ शाहदेव ने भी 99,167 वोट लाकर कांग्रेस की मजबूत सियासी ताकत का प्रदर्शन किया था, इसके साथ ही सीपीआई (एम) के सुभाष मुंडा 14,215 वोट लाकर तीसरा स्थान प्राप्त किया था, इस बार सीपीआई भी इंडिया गठबंधन का हिस्सा है, अब यदि सुभाष मुंडा के हिस्से का 14, 215 और अजयनाथ शाहदेव के हिस्से का 99,167 का आपस में जोड़ दें तो यह आंकड़ा 113,382 का हो जाता है, यानि 15 हजार का जो फासला था वह सिमटता नजर आता है, इसके साथ ही हेमंत सोरेन की गिरफ्तारी के आदिवासी समाज में जो आक्रोश की झलक दिखलायी पड़ रही है, यदि उसके कारण आदिवासी समाज का जो हिस्सा भाजपा के साथ खड़ा था, यदि उसका एक हिस्सा भी झामुमो की ओर अपना कदम वापस बढ़ाता तो नवीन जायसवाल का सियासी चौका खतरे में पड़ सकता है.
मतदाताओं के साथ अजयनाथ शाहदेव का जुड़ाव से तय होगा हटिया का परिणाम
लेकिन क्या अजयनाथ शाहदेव ने 2019 की हार के बाद मतदाताओं के साथ अपने को जोड़े रखा है या फिर चुनावी समर के दौरान ही मतदाताओं की याद आई है? क्या खुद अपने चेहरे के सहारे भी अजयनाथ शाहदेव कांग्रेस और महागठबंधन के आधार वोट बैंक में वृद्धि करने की स्थिति में हैं? क्या इन पांच वर्षों के दौरान अजय नाथ शाहदेव ने मतदाताओं का साथ अपना रिश्ता बनाये रखा है? क्या हटिया विधानसभा के मूलभूत सवाल पर अपने मतदाताओं के साथ खड़ा रहे हैं? वास्तव में इस बार हटिया में इसकी ही परीक्षा होने वाली है? यदि अजयनाथ शाहदेव इन पांच वर्षों में अपने मतदाताओं के साथ अपना रिश्ता बनाये रखा होगें तो हटिया की सियासी तस्वीर में बदलाव से इंकार नहीं किया जा सकता