ऑपरेशन कोल्हान! चंपाई नहीं, मधु कोड़ा होंगे भाजपा चेहरा! 54 फीसदी ‘हो’ मतदाताओं के सहारे कमल खिलाने की तैयारी
विधानसभा की वह पांच सीटें, जहां देखने को मिल सकता है मधु कोड़ा का साइड इफेक्ट
ऑपरेशन चंपाई और मधु कोड़ा की घर वापसी का साइड इफेक्ट कितनी सीटों पर देखने को मिल सकता है? मुश्किल से दो सीट ही नजर आती है, जहां कमल खिलने की भविष्यवाणी पूर जोर तरीके से की जा सकती है, एक तो खुद चंपाई सोरेन की सराइकेला की सीट है और दूसरा जगन्नाथपुर का मधु कोड़ा का किला. इसमें मधु कोड़ा किला में कमल खिलने में कोई संदेह नजर नहीं आता, लेकिन यही दावा सराइकेला के बारे में पूरे दम खम के साथ नहीं किया जा सकता. यह ठीक है चंपाई के पालाबदल का असर यहां देखने को मिलेगा, लेकिन यह असर कितना असरदार होगा, इसके लिए अभी झामुमो के पैतरे का भी इंतजार करना होगा, जब तक झामुमो की ओर से चेहरे की घोषणा नहीं हो जाती, आंकड़ों पर आधारित कोई भी तर्क संगत भविष्यवाणी नहीं की जा सकती
रांची: राजनीति भी अजीब उलटबासियों का खेल है. इस खेल में हर वह पैतरा जायज है, जिससे सत्ता की चाभी निकलती हो, दावे कुछ भी हों, लेकिन असली मकसद सिर्फ सत्ता है, यदि सत्ता की चाभी दागदार चेहरों की संगत से भी मिलती है, तो भी कोई गुरेज नहीं होगी. अपने पुराने नारों और बयानों को भी कूड़ेदान में डालने में रत्ती भर की देरी नहीं होगी. कुछ-कुछ यही तस्वीर इन दिनों कोल्हान की सियासत में देखने को मिल रही है. जिस मधु कोड़ा को चार हजार करोड़ का भ्रष्टाचारी बता पिछले एक दशक से बवाल काटा जा रहा था. कांग्रेस, झामुमो और राजद को भ्रष्टाचारियों की पार्टी बताया जा रहा था. जब कोल्हान की 14 की 14 सीटों से एकबारगी सफाया हुआ, तो संकट की इस घड़ी में मधु कोड़ा की याद आयी. मधु कोड़ा के चेहरे में उम्मीद की किरण नजर आयी. भले ही पूरा कोहराम चंपाई सोरेन का बगावत के इर्द गिर्द खड़ा करने की कोशिश हो, इस बगावत को झामुमो का सबसे बड़ा फूट बताने की कोशिश की जा रही हो, विधानसभा चुनाव के पहले झामुमो के लिए अब तक का सबसे बड़ा झटका बताने की कोशिश हो रही हो, राष्ट्रीय और स्थानीय मीडिया में चंपाई का भगवा चेहरा दिखलाने की होड़ मची हो, और बड़े ही तरीके से मधु कोड़ा का भगवा रंग को आंखों से ओछल करने की कोशिश हो रही हो, लेकिन हकीकत में भाजपा के लिए चंपाई से ज्यादा जरुरत मधु कोड़ा का साथ की है. भले ही संताल चेहरा चंपाई के पास कोल्हान टाइगर की उपाधि हो, लेकिन वास्तविक जमीन पर मधु कोड़ा की पकड़ कहीं ज्यादा मजबूत है और उसका कारण है कोल्हान का सामाजिक समीकरण, कोल्हान की सामाजिक संरचना में ‘हो’ जनजाति की आबादी करीबन 57 फीसदी की है और मधु कोड़ा उस जनजाति का एक चमकता चेहरा. पिछले एक दशक में मधु कोड़ा को लेकर भाजपा की आक्रमता जितनी तेज हुई, उसी रफ्तार से कोल्हान से उसकी जमीन भी खिसकती गयी और जब पिछले विधानसभा चुनाव में 14 की 14 सीटों से सफाया हुआ, तब कहीं जाकर भाजपा को मधु कोड़ा की ताकत का अंदाजा लगा और यही से शुरु हुआ मधु कोड़ा की घर वापसी का रास्ता.
दो दशक बाद मधु कोड़ा की घर वापसी की पूरी कहानी
आपको याद दिला दें कि मधु कोड़ा का सियासी सफर की शुरुआत भाजपा के साथ ही हुई थी, वर्ष 2000 में भाजपा के टिकट पर ही जगन्नाथपुर विधानसभा से चुनाव जीता था. लेकिन 2005 में भाजपा की कोशिश किसी दूसरे चेहरे पर दांव लगाने की थी और इस हालत में मधु कोड़ा ने निर्दलीय मैदान में उतरने का फैसला किया. तब भाजपा ने मधु कोड़ा के खिलाफ जवाहरलाल बरना को मैदान में उतारा था. लेकिन मधु कोड़ा सामने जवाहरलाल बरना दूर दूर तक नजर नहीं आयें, महज 5895 वोट के साथ पांचवें स्थान पर संतोष करना पड़ा. 2009 में जब गीता कोड़ा ने मोर्ची संभला तब भी भाजपा ने सोनाराम बिरुआ को मैदान में उतारा, लेकिन सोनाराम बिरुआ की भी बूरी गत हुई. 37,145 के साथ गीता कोड़ा को जीत मिली तो सोनाराम बिरुआ 11,405 के साथ काफी दूर खड़े दिखलायी दियें. 2014 में एक बार फिर से मंगल सिंह सुरिन को आगे कर गीता कोड़ा का रोकने की कोशिश हुई, लेकिन 48546 वोट के साथ एक बार फिर से गीता कोड़ा के हिस्से जीत की वरमाला मिली और मंगल सिंह सुरीन 23,935 पर सिमटे नजर आयें. यानि जगन्नाथपुर में भाजपा को हर दांव फेल होता गया. जीत और हार की बात तो दूर, कोई भी चेहरा आसपास भी खड़ा नजर नहीं आया. और यह कहानी सिर्फ जगन्नाथपुर विधानसभा की नहीं है, कोल्हान ऐसी करीबन पांच सीटें है, जिस पर मधु कोड़ा की मजबूत पकड़ है.
चाईबासा में जीत का हैट्रिक लगा चुके दीपक बिरुआ की चुनौती
इसमें जगन्नाथपुर के साथ ही चाईबासा विधानसभा, मझीगाँव विधानसभा, मनोहरपुर विधानसभा, चक्रधरपुर विधानसभा की सीट है. हालांकि मधु कोड़ा की घर वापसी के बावजूद भी जगन्नाथपुर को छोड़, कितनी सीटों पर कमल खिलाने में कामयाबी मिलेगी, अभी भी इसमें कई पेच है, और ऐसा भी नहीं है कि मधु कोड़ा का साथ मिलते ही भाजपा का संकट खत्म हो गया है. यदि हम पिछले विधानसभा के मुकाबले से ही इसको समझने की कोशिश करें तो 69750 वोट लाकर दीपक बिरुआ ने जीत का हैट्रिक लगाया था. ज्योति भ्रमर तुबिद 43326 के साथ एक बार फिर से दूसरे स्थान पर संतोष करना पड़ा था. दीपक बिरुआ खुद भी हो जनजाति का एक बड़ा उभरता चेहरा है, और हेमंत कैबिनेट में परिवहन मंत्रालय की जिम्मेवारी है. इस हालत में मधु कोड़ा का चेहरा कितना कामयाब होगा, यह देखने वाली बात होगी.
मझगांव में निरल पूर्ति के आगे मधु कोड़ा को भी चखना पड़ा था हार का स्वाद
इसी में एक विधानसभा की सीट मझीगांव है, दावा किया जाता है कि मझीगांव में भाजपा की डूबती किस्ती को मधु कोड़ा अपने चेहरे के सहारे पार निकाल सकते हैं, लेकिन इसी मझीगांव विधानसभा में वर्ष 2014 में निरल पूर्ति के हाथों मधु कोड़ा को करीबन 11 हजार वोटों से हार का सामना करना पड़ा था, निरल पूर्ति ने 45,272 के साथ जीत की वरमाला पहनी थी तो मधु कोड़ा के हिस्से महज 34,090 वोट आया था, और भाजपा के बरकुंवर गंगराई को तो 28969 के साथ तीसरे स्थान पर सिमटना पड़ा था. वर्ष 2019 में भी 67,750 के साथ निरल पूर्ति ने अपना कारवां जारी रखा था, जबकि भाजपा की ओर बैटिंग करने उतरने भुपेनद्र पिंगुआ को महज 20,558 के साथ दूसरे स्थान पर संतोष करना पड़ा था. इस हालत में मधु कोड़ा कितना बड़ा बदलाव कर पायेंगे, यह भी देखने वाली बात होगी.
मनोहरपुर में जोबा के जलवे को पार पाने की चुनौती
मनोहरपुर में भाजपा के सामने जोबा मांझी से टकराने की चुनौती होगी. वर्ष 2000 से सिर्फ 2009 को छोड़कर जब गुरुचरण नायक ने कमल खिलाया था, जोबा मांझी लगातार जीत दर्ज करती आ रही है, जोबा मांझी की जमीनी ताकत का अंदाजा इससे भी लगाया जा सकता है, वर्ष 2000 और 2005 में वह झामुमो से अलग होकर भी अपना झंडा गाड़ने में कामयाब रही है. वर्ष 2019 में जोबा मांझी को जहां 50,945 वोट मिला था, वहीं भाजपा के गुरुचरण नायक को महज 34,926 सिमटना पड़ा था, साफ है कि दावे कुछ भी हो, लेकिन जमीनी हालात भाजपा के पक्ष में कहीं नहीं है.
चक्रधरपुर साबित हो सकता है झामुमो की कमजोर कड़ी
यह सीट भी भाजपा के लिए कितना मुफिद होगा, इसको समझने के लिए वर्ष 2019 के आंकड़े को समझने की जरुरत है, भाजपा की ओर बैटिंग करते हुए इसके पूर्व प्रदेश अध्यक्ष लक्ष्मण गिलुआ को महज 31,598 वोट आया था, जबकि झामुमो की ओर बैटिंग करते हुए सुखराम उरांव ने 43,832 वोट हासिल किया था, यानि यहां भी जीत हार का अंतर करीबन 12 हजार का था, वर्ष 2014 में शशिभूषण संवाद ने तो भाजपा के नवामी उरांव को करीबन 26 हजार के विशाल अंतर से हराया था. कुछ सियासी जानकार आजसू और झाविमो के वोट को चक्रधरपुर में इस बार भाजपा की जीत का दावा करते हैं, लेकिन यदि हम 2014 के आंकडों को समझने को कोशिश करें तो यह भी एक सपना नजर आता है.
फिर क्या होगा ऑपरेशन चंपाई और मधु कोड़ा का अंजाम
तो फिर इस ऑपरेशन चंपाई और मधु कोड़ा की घर वापसी का अंजाम कितनी सीटों पर सिमटने वाला है, मुश्किल से दो सीट ही नजर आती है, जहां कमल खिलने की भविष्यवाणी पूर जोर तरीके से की जा सकती है, एक है खुद चंपाई सोरेन की सराइकेला की सीट और दूसरा जगन्नाथपुर का मधु कोड़ा का किला. इसमें मधु कोड़ा का किला ही सबसे सुरक्षित सीट है, जहां इस पालाबदल के बाद आसानी से भाजपा कमल खिलता नजर आ रहा है. लेकिन यही दावा सराइकेला के बारे में पूरे दम खम के साथ नहीं किया जा सकता.. यह ठीक है चंपाई के पालाबदल का असर यहां देखने को मिलेगा, लेकिन यह असर कितना असरदार होगा, इसके लिए अभी झामुमो के पैतरे का भी इंतजार करना होगा, जब तक झामुमो की ओर से चेहरे की घोषणा हो जाती, कोई भी आंकड़ों पर आधारित तर्क संगत भविष्यवाणी नहीं की जा सकती.