फिर से भतीजे तेजस्वी को चाचा नीतीश का आशीर्वाद! एक और सियासी करवट की ओर बढ़ता बिहार

पुराने वीडियो पर नयी सियासत

फिर से भतीजे तेजस्वी को चाचा नीतीश का आशीर्वाद!  एक और सियासी करवट की ओर बढ़ता बिहार
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हालांकि सोशल मीडिया पर नीतीश का राबड़ी आवास पहुंचने की पुरानी तस्वीर को एक बार फिर डाल कर भ्रम पैदा करने की कोशिश भी की जा रही है, वीडियो 7 सितम्बर 2022 का है, लेकिन वीडियो भले ही पुराना हो, बिहार की  सियासत में कुछ ना कुछ तो बदलता नजर आ रहा है.

पटना: सियासत में संभावनाओं के दरवाजे कभी बंद नहीं होते. असंभव को संभव करने की इसी कला  का नाम तो सियासत है. सियासत के बाजार में सबकी अपनी-अपनी चाल होती है और हर चाल की एक काट. कभी बिहार की सियासत में बड़े भाई की भूमिका निभाते नीतीश कुमार को छोटे भाई की भूमिका में लाने के लिए भाजपा ने बेहद सधे तरीके से “ऑपरेशन चिराग” को अंजाम दिया था. चाल सफल भी रही, लेकिन फिर उसी छोटे भाई को सीएम की कुर्सी पर बिठाकर यह संकेत दिया कि आपकी पारी पर अब विराम लगने वाला है. सीएम की कुर्सी तो मिल गयी है, लेकिन अब आगे की सियासत भाजपा की अंगुली पकड़ कर ही करनी होगी. अब आपका संख्या बल कम हो चुका है, बड़े भाई से छोटे भाई की हैसियत में आ चुके हैं. नीतीश भी इस खेल से अंजान नहीं थें औरएक ही चाल में अपने को पीएम मोदी का हनुमान बताने वाले चिराग अपनी  पार्टी का एकलौता सांसद बन कर रहे गयें. जदयू का कद छोटा हुआ, लेकिन चिराग के हाथ से तो पूरी पार्टी ही निकल गयी. इस बार के लोकसभा चुनाव में चिराग पासवान हर बार चाचा नीतीश के दरवाजे पर खड़े आयें और 100 फीसदी स्ट्राइक रेट के साथ पांच सांसद जीताने में सफल रहे. जिस नीतीश में चिराग पासवान को बिहार के युवाओं का सपना डूबता नजर आता था, बदले हालात में उसी चाचा नीतीश में मुक्ति का रास्ता दिखा.

बिहार की सियासत में नीतीश के पास भतीजों की भरमार 

फिर से भतीजे तेजस्वी को चाचा नीतीश का आशीर्वाद!  एक और सियासी करवट की ओर बढ़ता बिहार
सरयू नदी ने पगड़ी उतराते सम्राट चौधरी

 

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बिहार की सियासत में नीतीश के पास भतीजों की कमी नहीं है, एक और भतीजा सम्राट चौधरी ने चाचा नीतीश की सत्ता खत्म करने लिए तो भगवा मुरेठा ही बांध लिया था. दिन रात उसी भगवा मुरेठे में घुमा करते थें. नीतीश कुमार की सत्ता को खत्म करने की कसमें खाते रहते थें, लेकिन नीतीश कुमार ने उस भतीजे को भी सबक सिखाया, एक और पालाबदल को अंजाम दिया, पत्रकारों के सवालों का जवाब देते हुए बेहद मासूमियत के साथ सिर्फ इतना कहा कि वहां मन नहीं लग रहा था. लेकिन इधर नीतीश कुमार का मन नहीं लगा रहा था, इधर भतीजे सम्राट चौधरी की पगड़ी खतरे में पड़ गयी.जिस नीतीश को उखाड़ फेंकने की कसमें खा रहे थें, उसी नीतीश का पैर छूकर डिप्टी सीएम का शपथ लेने को मजबूर होना पड़ा. बाद में उस भगवा पगड़ी को गंगा में विसर्जन करना पड़ा. अब सम्राट चौधरी का पगड़ी गंगा की धारा में ना जाने कहां डूबकी लगा रहा होगा, लेकिन एक बार फिर से चाचा नीतीश का मन डोलने लगा.

पार्टी के अंदर पार्टी

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राबड़ी आवास के अंदर विधायकों की बैठक

 

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अभी चंद दिन पहले ही तेजस्वी यादव विधानसभा के अंदर टहलते हुए चाचा नीतीश के पास पहुंच गये थें, तब भी यह सुर्खियां बनी थी. दावा किया गया कि अब भाजपा जदयू की यह दोस्ती महज चंद दिनों की है. किसी भी वक्त बिहार में एक और पालाबदल का खेल हो सकता है. इसका संकेत राजद विधायकों और सांसदों की बैठक से भी मिला. दावा किया जाता है को सभी विधायकों को अलर्ट मोड में रहने का फरमान जारी हो चुका है. सियासी मौसम में बदलाव की जानकारी दे दी गयी है. भाजपा के अंदर भी चहलकदमी भी तेज है. हालांकि भाजपा, जदयू और राजद के द्वारा एक स्वर से पालाबदल की तमाम खबरों को खारिज किया जा रहा है. लेकिन पार्टी के अंदर पार्टी तेज है. सारे तीर-कमान निकाले जा रहे हैं.

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बदली-बदली नजर आ रही है राजद-जदयू की भाषा

राजद जदयू प्रवक्ताओं की भाषा बदली-बदली नजर आ रही है. मजे की बात यह है कि इस बार के पालाबदल से ललन सिंह पूरी तरह से गायब है, पिछली बार जब नीतीश और तेजस्वी की सरकार थी, तो दावा किया जाता था कि ललन सिंह राजद के साथ मिलकर बड़ा खेल करने की तैयारी में थें. इस तरह की खबरें सामने आने के बाद ही राष्ट्रीय अध्यक्ष की कुर्सी विदाई हुई थी. और इस बार जब नीतीश कुमार का मन एक बार फिर से डोलता नजर आ रहा है, भाजपा के बेहद करीबी माने जाने वाले संजय झा जदयू के कार्यकारी अध्यक्ष की जिम्मेवारी संभाल रहे हैं. एक तरफ जदयू वक्फ बोर्ड़, आईएएस में लैटेरल एंट्री, इजराइल को हथियार देने के सवाल पर भाजपा से अलग स्टैंड लेती दिख रही है तो ललन सिंह हर मोर्चे पर अपने उसी पुराने तेवर के साथ भाजपा के प्रति वफादारी इजहार कर रहे हैं. वक्फ बोर्ड़ के सवाल पर तो ललन सिंह का स्टैंड तो पार्टी की नीतियों से ठीक उलट था. लेकिन बड़ा सवाल यह है कि यदि नीतीश कुमार के मन में एक बार फिर भतीजे तेजस्वी के साथ जाने की चाहत जाग रही है तो फिर केसी त्यागी को बलि क्यों चढ़ाया गया?  जबकि केसी त्यागी तो जदयू के ही पुराने स्टैंड को ही रख रहे थें, इजराइल फिलिस्तीन मुद्दे पर जदयू का घोषित स्टैंड फिलिस्तिन के साथ रहा है. इस हालत में केसी त्यागी को राष्ट्रीय प्रवक्ता की जिम्मेवारी से मुक्त करने का राजनीतिक संकेत क्या है?

विरोधाभाषी राजनीति का चमकता चेहरा नीतीश कुमार

सियासी जानकारों का दावा है कि नीतीश कुमार अक्सर इस प्रकार के विरोधाभाषी राजनीति करते हैं. यही कारण है कि उनकी अगली चाल को समझना मुश्किल होता है, वह हर बार ना ना कहते-कहते ही पलटी मार जाते हैं. हालांकि बहुत संभव हो कि नीतीश कुमार इस बार दोनों ही दरवाजे खुला रखने की रणनीति पर आगे बढ़ रहे हों, दावा किया जाता है कि इस बार जदयू 140 सीटों पर अपना दावा ठोक रही है, शेष 97 सीटें भाजपा, लोजपा और हम जैसी पार्टियों के लिए छोड़ना चाहते हैं. बहुत संभव है कि यह मुलाकात भाजपा को दवाब में डालने की सियासी रणनीति का हिस्सा भर हो. यह बताने की कोशिश हो कि नीतीश का तीर कभी चूकता नहीं है और ना ही तरकश में वाणों की संख्या कम होती है, आपको यह शर्त स्वीकार है तो आगे बढ़ते है, नहीं तो फिर रास्ता मोड़ते हैं, भतीजा तेजस्वी इंतजार में बैठा है. अब भतीजे चिराग  और सम्राट को फैसला करना है कि चाचा नीतीश के साथ चलना है या फिर विधानसभा के दंगल में खाली झोली की तैयारी करनी है. हालांकि सोशल मीडिया पर नीतीश का राबड़ी आवास पहुंचने की पुरानी तस्वीर को एक बार फिर डाल कर भ्रम पैदा करने की कोशिश भी की जा रही है, वीडियो 7 सितम्बर 2022 का है, लेकिन वीडियो भले ही पुराना हो, बिहार की  सियासत में कुछ ना कुछ तो बदलता नजर आ रहा है.

Edited By: Devendra Kumar

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