दुमका में हार के बाद घर वापसी की तैयारी में सीता सोरेन!
नलिन सोरेन का दावा स्वागत, लेकिन फैसला नेतृत्व का होगा

रांची: लोकसभा चुनाव के बाद झारखंड भाजपा की सेहत कुछ ठीक नहीं चल रही. एक तरफ देवघर (अनुसूचित आरक्षित सीट) से भाजपा विधायक नारायण दास ने यह दावा कर सियासी गलियारों में भूचाल ला दिया है कि गोड्डा सांसद निशिकांत दुबे के गुंडों ने समीक्षा बैठक के दौरान उनका कॉलर पकड़, मां-बहन की गालियों की बौछार की, दूसरी तरफ दुमका से हार के बाद सीता सोरेन ने यह दावा कर सनसनी फैला दी है कि उनकी हार में सबसे अहम किरदार उन भाजपा नेताओं का है, जिनके कंधों पर जीत की जिम्मेवारी सौंपी गयी थी.

नलिन सोरेन के बयान को सियासी चश्मे से देखने की कोशिश
जैसे ही नलिन सोरेन का यह बयान सामने आया, सियासी गलियारों में इसके मायने समझने की कोशिश शुरु हो गयी. यह सवाल गहराने लगा कि जिस तरीके से सीता सोरेन भाजपा नेताओं के उपर अपनी हार का ठीकरा फोड़ रही है, क्या इसके पीछे भी कोई सियासत है? क्या सीता सोरेन विधानसभा चुनाव के पहले घर वापसी की तैयारी में है? और इसी रणनीति के तहत जानबूझ कर भाजपा के सामने असहज परिस्थतियां पैदा कर रही है? दरअसल यह सवाल इसलिए भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि जिस तरीके लोकसभा चुनाव में आदिवासी बहुल सभी पांच सीटों से भाजपा का सफाया हुआ, उसके बाद सीता सोरेन को भाजपा का पट्टा पहनाने वाले बाबूलाल मरांडी की सियासत भी फंसती नजर आ रही है.
यह सवाल सुलगता दिख रहा है कि क्या विधानसभा चुनाव के पहले पार्टी किसी नये नेतृत्व को सामने लायेगी? क्या खूंटी में हार के बाद अर्जुन मुंडा को एक बार फिर से झारखंड की सियासत में सक्रिय किए जाने की तैयारी है? या एक बार फिर से रघुवर राज की वापसी होने वाली है? इस सियासी उहापोह के बीच निश्चित रुप से सीता सोरेन के सामने भी अपने भविष्य का सवाल खड़ा हो रहा होगा. खास कर उस स्थिति में जब चंद महीनों के अंदर-अंदर विधान सभा का चुनाव होना है. जामा विधान सभा, जहां से सीता सोरेन लगातार तीन बार से विधायक है, लेकिन 2005 के बाद से आज तक भाजपा अपना कमल खिलाने में नाकामयाब रही, क्या उस जामा में सीता सोरेन कमल खिला पायेगी? और यदि दुमका के बाद जामा में भी सियासी शिकस्त का सामना करना पड़ता है, तो फिर सियासी भविष्य क्या होगा?
सीता सोरेन की घर वापसी के अटकलों को लगा पंख
और यहीं सीता सोरेन की घर वापसी के अटकलों को पंख लगता दिखता है. क्योंकि परिस्थितियां कुछ इस हिसाब से बन रही है कि जिसके बाद सीता सोरेन का भाजपा में कोई सियायी भविष्य नजर नहीं आ रहा. हालांकि सीता सोरेन का वास्तविक इरादा क्या है, अभी कुछ भी कह पाना मुश्किल है. हालांकि नलिन सोरेन ने इसके साथ ही लोकसभा चुनाव के दौरान किसी भी भाजपा नेता से सम्पर्क से साफ इंकार किया, उन्होंने कहा कि राजनीति में हार-जीत बेहद सामान्य-सी प्रक्रिया है, अब हमारी जीत को भाजपा किस रुप में देखती है, इसके उनका कोई लेना-देना नहीं है. लेकिन यदि कोई भाजपा छोड़ पार्टी में आना चाहता है, तो उसका स्वागत है.