रांची से निकलता है पत्रकारिता में सफलता का रास्ता, राष्ट्रीय संस्थानों तक पहुंचती झारखंड की कलम
अरविंद शर्मा

दरअसल रांची महज़ एक भौगोलिक इकाई नहीं, बल्कि हिंदी पत्रकारिता की एक सशक्त प्रयोगशाला बन चुका है। लंबे समय तक इसे पत्रकारिता के नक्शे पर एक छोटे केंद्र के रूप में देखा जाता रहा, लेकिन पिछले तीन दशकों में रांची ने बार-बार साबित किया है कि प्रतिभा किसी महानगर की मोहताज नहीं होती। सीमित संसाधनों, अपेक्षाकृत छोटे मीडिया बाजार और जटिल सामाजिक-भौगोलिक परिस्थितियों के बीच रांची ने ऐसी पत्रकारिता को जन्म दिया है, जिसकी गूंज राष्ट्रीय सत्ता और नीति-निर्माण के गलियारों तक सुनाई देती है।
रांची की पत्रकारिता की सबसे बड़ी पहचान उसका ज़मीनी चरित्र है। यहां पत्रकारिता सत्ता के बेहद करीब बैठकर नहीं, बल्कि समाज के भीतर उतरकर सवाल उठाने की परंपरा से विकसित हुई है। आदिवासी अधिकार, खनन और पर्यावरण, विस्थापन, गरीबी, भ्रष्टाचार और शासन की जवाबदेही जैसे मुद्दों पर रांची के पत्रकारों ने निरंतर, निर्भीक और तथ्यपरक काम किया है। यही निरंतरता और साहस उन्हें राष्ट्रीय पहचान और विश्वसनीयता प्रदान करता है।
इस परंपरा की एक सशक्त कड़ी हैं आशुतोष चतुर्वेदी। उनका पत्रकारिता जीवन तीन दशकों से अधिक का रहा है। दिल्ली सहित देश के कई बड़े मीडिया केंद्रों में काम करते हुए उन्होंने प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक दोनों माध्यमों में अपनी पहचान बनाई। इंडिया टुडे, संडे ऑब्ज़र्वर, बीबीसी हिंदी और अमर उजाला जैसे प्रतिष्ठित संस्थानों में कार्य करते हुए उन्होंने राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय पत्रकारिता की गहरी समझ विकसित की। इसके बावजूद उनके करियर का निर्णायक पड़ाव तब आया, जब उन्होंने रांची की पत्रकारिता को पूरी प्रतिबद्धता के साथ अपनाया।
केंद्रीय सूचना आयुक्त के रूप में सूचना का अधिकार, पारदर्शिता और प्रशासनिक जवाबदेही को मजबूत करने में उनका रांची का अनुभव विशेष रूप से उपयोगी सिद्ध होगा। क्योंकि रांची की पत्रकारिता ने उन्हें सत्ता से प्रश्न पूछने का साहस, व्यवस्था को समझने की दृष्टि और आम नागरिक के पक्ष में खड़े होने की संवेदना दी है।
रांची इससे पहले भी ऐसे उदाहरण पेश कर चुका है, जिन्होंने उसकी पत्रकारिता की विश्वसनीयता को और मजबूत किया है। प्रभात खबर के पूर्व प्रधान संपादक हरिवंश का राज्यसभा में उपसभापति बनना, बैजनाथ मिश्र का झारखंड सूचना आयुक्त नियुक्त होना और रांची एक्सप्रेस के पूर्व संपादक बलवीर दत्त को पद्म सम्मान मिलना इस बात का प्रमाण है कि रांची की पत्रकारिता सिर्फ खबरें नहीं रचती, बल्कि नेतृत्व भी गढ़ती है।
असल में रांची की हिंदी पत्रकारिता की सबसे बड़ी ताकत उसकी वैचारिक स्पष्टता और नैतिक दृढ़ता रही है। यही वजह है कि यहां से निकले पत्रकार न केवल मीडिया जगत में, बल्कि लोकतांत्रिक संस्थाओं में भी भरोसेमंद भूमिकाएं निभाते रहे हैं। आशुतोष चतुर्वेदी की केंद्रीय सूचना आयुक्त के रूप में नियुक्ति इसी परंपरा की अगली कड़ी है और इस बात की पुष्टि भी कि रांची से निकलने वाला पत्रकारिता का रास्ता सफलता तक ही नहीं, राष्ट्रीय दायित्वों तक पहुंचता है।
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