रांची के अखाड़े में महुआ माजी! पलटेगी बाजी या जारी रहेगा सीपी सिंह का कारवां

क्या पूरा होने जा रहा है महुआ माजी का सपना

रांची के अखाड़े में महुआ माजी! पलटेगी बाजी या जारी रहेगा सीपी सिंह का कारवां
महुआ माजी (फाइल फोटो)

इसके पहले भी महुआ माजी वर्ष 2014 और 2019 में सीपी सिंह को चुनौती दे चुकी है, 2014 में सीपी सिंह को 95,760 के साथ जीत मिली थी, तो महुआ माजी महज 36,897 वोट पर अटक गयी थी, लेकिन वर्ष 2019 में परिस्थितियों में बड़ा बदलाव देखने को मिला. भले ही सीपी सिंह 79,646 के साथ अपना छका लगाने में सफल रहें, लेकिन यह छक्का बाउंड्री लाइन पर कैच होते-होते बचा था. 36,897 से अपने कारवां को आगे बढ़ाते हुए महुआ माजी 73,742 तक पहुंचाने में सफल रही थी

रांची: झारखंड की सियासत में हर गुजरते दिन के साथ सियासी खुमारी तेज होती जा रही है. आरोप-प्रत्यारोपों की बौछार के साथ ही बड़े-बड़े दिग्गजों की आस्था डोलती नजर आ रही है. पालाबादल का खेल अपने चरम पर है. हालांकि अभी पालाबदल की शुरुआत झामुमो की ओर से हुई है, लेकिन टिकट वितरण होते-होते भाजपा की स्थिति क्या होगी, इस पर सियासी जानकारों की नजर लगी हुई है. सियासी गलियारे में यह चर्चा आम है कि चंपाई सोरेन और लोबिन हेम्ब्रम के जिस पालाबदल को अपना मास्टर स्ट्रोक मान भाजपा फील गुड का एहसास कर रही है. बहुत ही जल्द उसे भी झटका लगने वाला है. भाजपा को उसी के सियासी पिच पर चोट करने की तैयारी है. लेकिन आज हम बात कर रहे हैं रांची विधानसभा के चुनावी दंगल की. हालांकि इस सीट पर कांग्रेस की नजर भी लगी हुई है. युवा चेहरा आदित्य विक्रम जायसवाल ताल ठोकते दिखलायी पड़ रहे हैं. साथ ही कई दूसरे चेहरे भी मैदान में उतरने को बेकरार हैं.

रांची के अखाड़े में महुआ माजी! पलटेगी बाजी या जारी रहेगा सीपी सिंह का कारवां
आदित्य विक्रम जायसवाल (फाइल फोटो)

 

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लेकिन सूत्रों का दावा है कि राज्य सभा सांसद महुआ माजी का एक बार फिर अखाड़े में उतरना तय है. इस हालत में यदि महुआ माजी अखाड़े में उतरती है और जीत की वरमाला हाथ लगती है, साथ ही हेमंत सरकार की वापसी होती है, तो मंत्रीपद पद की प्रबल दावेदार होगी. रांची विधानसभा के लिए यह एक बड़ी सौगात हो सकती है, भाजपा सरकार में इसी सीट से सीपी सिंह मंत्री सहित विधानसभा अध्यक्ष की कुर्सी तक पहुंच चुके हैं. लेकिन हेमंत सरकार में रांची का प्रतिनिधित्व शुन्य रहा. महागठबंधन के पास एक भी ऐसा चेहरा ही नहीं था. जिसे मंत्रिमंडल का हिस्सा बनाया जा सके और इसका खामियाजा रांची विधानसभा की जनता को उठाना पड़ा.

क्या पूरा होने जा रहा है महुआ माजी का सपना

लेकिन बड़ा सवाल यह है कि क्या महुआ माजी का यह सपना पूरा होने वाला है, इसके पहले भी महुआ माजी वर्ष 2014 और 2019 में सीपी सिंह को चुनौती दे चुकी है, 2014 में सीपी सिंह को 95,760 के साथ जीत मिली थी, तो महुआ माजी को महज 36,897 वोट पर अटक गयी थी, लेकिन वर्ष 2019 में परिस्थितियों में बड़ा बदलाव देखने को मिला. भले ही सीपी सिंह 79,646 के साथ अपना छका लगाने में सफल रहें, लेकिन यह छक्का बाउंड्री लाइन पर कैच होते-होते बचा था, 36,897 से अपने कारवां को आगे बढ़ाते हुए महुआ माजी 73,742 तक पहुंचने में सफल रही थी. इधर इन पांच वर्षों में सियासी कद में भी विस्तार हुआ है, अब वह राज्य सभा सांसद है, जनता के साथ रिश्ते में भी गर्माहट आयी है, मतदाताओं से लगातार संपर्क बना हुआ है, इस बार इसका लाभ मिल सकता है और एक बार फिर से एक रोमांचक मुकाबला होने के आसार हैं.

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सीपी सिंह के चेहरे पर संशय बरकरार

रांची के अखाड़े में महुआ माजी! पलटेगी बाजी या जारी रहेगा सीपी सिंह का कारवां
सीपी सिंह (फाइल फोटो)

 

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हालांकि इस बार भी भाजपा सीपी सिंह पर ही अपना दांव लगायेगी. इसको लेकर भी संशय की स्थिति बरकरार है. दावा किया जाता है कि सीपी सिंह की बढ़ती उम्र और घटती लोकप्रियता का आभास भाजपा के रणनीतिकारों को भी है. इस हालत में भाजपा के अंदर भी दावेदारों की फौज भी सामने आ रही है, एक से बढ़कर एक दिग्गज टिकट की आस लगाये बैठे हैं. इस हालत में महुआ माजी के सामने भाजपा का चेहरा कौन होगा, अभी इसको लेकर भी संशय की स्थिति बनी हुई है. 

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रांची विधानसभा में पिछले 34 वर्षों से भाजपा का कब्जा

जहां तक रांची विधानसभा पर भाजपा की मजबूत पकड़ का सवाल है तो इसे इस बात से समझा जा सकता है कि 1996 जब से सीपी सिंह को इसकी कमान सौंपी गयी है, वह लगातार कमल का फूल खिलाते रहे हैं. इसके पहले 1995 में यशवंत सिन्हा और 1990 में गुलशन लाल आजमानी भी भाजपा के टिकट पर  जीत दर्ज कर चुके हैं. कहा जा सकता है कि 1990 के बाद से लगातार इस सीट पर कमल खिलता रहा है. इस बीच तीन दशक का लम्बा सफर गुजर गया लेकिन विपक्ष के हिस्से कामयाबी नहीं आयी. आकड़े इस बात के गवाह है कि रांची भाजपा का एक मजबूत किला है, लेकिन मुश्किल यह है कि अब इस किले में दरार दिखने लगी है, सीपी सिंह उम्र के उस पड़ाव पर पहुंच चुके हैं, जहां से सामाजिक जीवन में उस सक्रियता को बनाये रखना एक चुनौती है, इधर महुआ माजी के रुप में झाममो के पास एक युवा चेहरा है. हेमंत सरकार की वापसी में मंत्री बनना भी तय माना जा रहा है, इस हालत में इस बार के सियासी दंगल में मतदाताओं का रुख क्या होगा, यह देखने वाली बात होगी.    

Edited By: Devendra Kumar

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