कैसे बचेगा पहाड़! 570 दिन से जारी है सोहेया पहाड़ बचाओ संघर्ष समिति का धरना-प्रर्दशन, प्रशासन मौन
फर्जी ग्राम सभा से अवैध लीज पर मुहर
स्थानीय विधायक कमलेश सिंह का कहना है कि “उनकी ओर से भी खनन विभाग और उच्च पदस्थ अधिकारियों को इस भयावहता की जानकारी दी गयी. लेकिन लीज पट्टाधारकों के सामने खनन विभाग अपना हाथ खड़ा कर लिया, हर बार उपर के निर्देश का हवाला दिया जाता है. ब्लास्ट पत्थर के टूकड़ों पर नहीं, हंसते-बोलते लोगों की जिंदगी पर हो रहा है, लेकिन शासन-प्रशासन मौन है.
रांची: 16 फरवरी 2023 से सोहेया पहाड़ बचाओ संघर्ष समिति का धरना अनवरत जारी है. इस 570 दिन के बीच कई बार ग्रामीणों का पट्टाधारकों के साथ भिड़त हुई, संघर्ष की नौबत आयी, लेकिन अधिकारियों की ओर से मामले का निष्पादन का कोई गंभीर प्रयास नहीं हुआ. कई बार खनन बंद तो जरुर करवाया गया, लेकिन उसे फिर से शुरु होने में देर भी नहीं हुई. एक तरफ ग्रामीणों का संघर्ष चलता रहा तो दूसरी ओर पहाड़ के सीने पर हथोड़ा. 570 दिनों का यह लम्बा धरना इस बात का प्रतीक है कि ना तो ग्रामीणों ने हौसला छोड़ा और ना ही पट्टाधारकों ने पहाड़ खत्म करने का अपना अभिय़ान.
फर्जी ग्राम सभा से अवैध लीज पर मुहर
पहाड़ बचाओ संघर्ष समिति से जुड़े कार्यकर्ताओं का दावा कि आवंटित सभी 6 खनन पट्टा पूरी तरह से अवैध है, स्थापित नियमों को ताक पर रख कर पट्टा का आवंटन किया गया है. इसकी जानकारी स्थानीय मंत्री, सांसद और विभाग के दी जाती रही है, लेकिन आश्वासन के सिवा कुछ नहीं मिला. आज से करीबन साल भर पहले भी उपायुक्त पलामू से पहाड़ बचाने की गुहार लगायी गयी थी, यह बताया गया था कि अवैध तरीके से लीज का आंवटन के लिए फर्जी ग्राम सभा का आयोजन कर इस पर मुहर लगायी गयी. 1908 के सर्वे में इस भूमि को जंगल बताया गया है, जबकि अब इसे सिर्फ पहाड़ बताया जा रहा है. नियमावली में यह बिल्कुल साफ है कि वन सीमा, गांव, घनी आबादी, शैक्षणिक संस्थान, नदी, शमसान, खेती योग्य जमीन, धार्मिक स्थल से एक निश्चित दूरी के बाद ही लीज का आवंटन होता है, लेकिन इस मामले में हर मानक की धज्जियां उड़ाई गयी और तो और इस ब्लास्टिंग के जद में सोहेपाट बाबा का देव मंदिर है. मकानों की छत और आंगन में ब्लासटिंग के पत्थर गिरते रहते हैं. हर गुजरते दिन के साथ भूजल पाताल में जा रहा है.
बंजर होती धरती, हर पल भूकंप का एहसास
भूजल प्रदूषित और धरती बंजर हो रही है, आलम यह है कि अब तो मवेशियों की हालत भी खराब हो रही है, उनका स्वास्थ्य भी इस प्रदूषण का बर्दास्त नहीं कर पा रहा है. एक बार ब्लास्ट होते ही तीन किलो मीटर के दायरे में पूरी धरती हिलती नजर आती है, हर घंटे भूंकप की अनुभूति होती है. समिति के सदस्यों का आरोप है कि पत्थर माफिया और खनन विभाग के बीच गठजोड़ के कारण कोई भी अधिकारी इस मामले में कार्रवाई नहीं करने की स्थिति में है. पहाड़ बचाओ समिति से जुड़े कार्यकर्ताओं को खनन माफियाओं धमकियां मिल रही, मुकदमे भी दर्ज कराए जा रहे हैं, बावजूद इसके ग्रामीण पीछे हटने को तैयार नहीं है. उनका दावा है कि अंतिम दम तक संघर्ष करते रहेंगे, ग्रामीणों का दावा कि1908 के सर्वे खतियान में सोहेया पहाड़ के जंगल और झाड़ियों को दर्ज किया गया था, लेकिन इसे अवैध रूप से खनन के लिए आवंटित कर दिया गया. मापदंडों के अनुसार, खनन क्षेत्र की दूरी 500 मीटर होनी चाहिए, लेकिन माइंस की दूरी केवल 250 मीटर के अंदर है. जब भी ब्लास्टिंग होती है, पत्थर घरों और खेतों पर गिरते हैं, जिससे बड़ी समस्याएं उत्पन्न हो रही हैं। बिना पूर्व सूचना के ब्लास्टिंग होने से ग्रामीणों को भारी असुविधा का सामना करना पड़ता है.अवैध खनन से पर्यावरणीय और सामाजिक नुकसान हो रहा है.
स्थानीय विधायक कमलेश सिंह का दावा
इस मामले में जब स्थानीय विधायक कमलेश सिंह का कहना है कि “उनकी ओर से भी खनन विभाग और उच्च पदस्थ अधिकारियों को इस भयावहता की जानकारी दी गयी. लेकिन लीज पट्टाधारकों के सामने खनन विभाग अपना हाथ खड़ा करता नजर आता है, उपर के निर्देश का हवाला दिया जाता है. यहां ब्लास्ट पत्थर के टूकड़े पर नहीं, हंसते-बोलते लोगों की जिंदगी पर हो रहा है, लेकिन शासन से लेकर प्रशासन तक मौन है” हालांकि जब विधायक कमलेश सिंह से यह पूछा गया कि क्या कभी आपने इस धरना-प्रर्दशन में अपनी सहभागिता निभाई है. प्रदर्शनकारियों के साथ खड़ा होकर जनभावनाओं को आवाज देने की कोशिश की है, ताकि इस संकट की घड़ी में उनके अंदर कोई उम्मीद जग सके, उन्होनें इस सवाल को यह कहते हुए टाल दिया कि यह कोई एकलौता मामला नहीं है, पूरे पलामू जिले में इस तरह के सैंकड़ों लीज पट्टा का आवंटन हुआ है. हर जगह एक ही शिकायत है, लेकिन इस शासन में कोई सुनने वाला नहीं है.