आदिवासी सेंगल अभियान ने हेमंत का पुतला फूंका, मांरग बुरू को लेकर राष्ट्रपति के नाम का ज्ञापन सौंपा

आदिवासी सेंगल अभियान ने हेमंत का पुतला फूंका, मांरग बुरू को लेकर राष्ट्रपति के नाम का ज्ञापन सौंपा

दुमका : आदिवासी सेंगल अभियान के संताल परगना जोनल हेड अमर मरांडी की अगुवाई में सिदो मुर्मू-कान्हू मुर्मू चौक पर मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन का पुतला दहन कार्यक्रम किया गया। इसके बाद राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के नाम दुमका के उपायुक्त को ज्ञापन सौंपा गया। इस ज्ञापन में पारसनाथ पहाड़ जो आदिवासियों के लिए मारंग बुरू है, के संबंध में अपना पक्ष रखा गया है।

पत्र में कहा गया है कि मारंग बुरु अर्थात झारखंड के गिरिडीह जिला के पीरटांड़ प्रखंड में अवस्थित पारसनाथ पहाड़ संताल आदिवासियों का ईश्वर है। संताल आदिवासी अपनी सभी पूजा-अर्चनाओं में सबसे पहले हिरला मारंग बुरू हिरला का उच्चारण करते हैं। पारसनाथ पहाड़ में आदिवासियों का जाहेरथान अर्थात पूजा स्थल भी है। जहां युग-युग से आदिवासी पूजा अर्चना और धार्मिक. सांस्कृतिक सेंदरा या शिकार भी करते आ रहे हैं। यह मारंग बुरू मुसलमानों के मक्का मदीना, हिंदुओं के अयोध्या राम मंदिर, ईसाइयों के रोम वैटिकन सिटी गिरजाघर और सिखों के स्वर्ण मंदिर से कम महत्वपूर्ण नहीं है। अतः सरकारों द्वारा आदिवासियों की धार्मिक मान्यता और भावनाओं पर हमला करते हुए आदिवासियों को पूर्णता दरकिनार कर मारंग बुरू को आदिवासियों से छीनकर जैनियों को सुपुर्द करना मतलब आदिवासियों के भगवान का कत्ल करने जैसा है। आदिवासियों का धार्मिक अन्याय, अत्याचार और शोषण करना है।

आदिवासी सेंगेल अभियान भारत और विश्व के आदिवासी समुदायों की तरफ से इसका विरोध करते हुए इसकी पुनर्वापसी की मांग करता है। मारंग बुरु पर आदिवासियों का प्रथम अधिकार है। इसकी पुष्टि इंग्लैंड में अवस्थित प्रिवी काउंसिल ने भी 1911 में जैन बनाम संताल आदिवासी के विवाद पर संताल आदिवासियों के पक्ष में फैसला देकर किया था।

अतएव हम आदिवासियों की मांग है मारंग बुरू अर्थात हमारे ईश्वर को हमें अविलंब वापस कर दिया जाए। पारसनाथ पहाड़ हमारे लिए ईश्वर से थोड़ा भी कम नहीं है। मारंग बुरू पर हमला आदिवासियों के अस्तित्व, पहचान, हिस्सेदारी पर हमला है। अतः इसे जैन धर्मावलंबियों को सुपुर्द करना हमारे ईश्वर को सुपुर्द करना है। हमारे ईश्वर की हत्या करना है।

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पत्र में कहा गया है, मारंग बुरू हमारे लिए सर्वोच्च पूजा स्थल और तीर्थ स्थल है। उसी प्रकार लुगू बुरू जो झारखंड के बोकारो जिले में अवस्थित है, अयोध्या बुरु, जो पुरुलिया जिला, पश्चिम बंगाल में है, भी हमारे महान तीर्थ स्थल हैं। इसी प्रकार अनेक पहाड़. पर्वत हमारे पूजा स्थल हैं, तीर्थ स्थल हैं। जिन पर लगातार हमला जारी है। उनकी रक्षा सुनिश्चित करना सभी संबंधित सरकारों की जिम्मेवारी है। परन्तु सरकारों की आदिवासी विरोधी मानसिकता बाधक साबित हो रही है।

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हमारी मांग है अब केवल मारंग बुरू अर्थात पारसनाथ पहाड़ ही नहीं बल्कि देश की सभी पहाड़. पर्वतों को आदिवासी समाज को सौंप दिया जाए। चूँकि सभी पहाड़ पर्वतों में आदिवासियों के देवी-देवता वास करते हैं और आदिवासी भी वास करते हैं। आदिवासी प्रकृति और पर्यावरण को अपना पालनहार और ईश्वर मानते हैं। इसलिए आदिवासियों के देवी देवता और प्रकृति पर्यावरण की रक्षा, जो आदिवासी कर सकते हैं, के द्वारा विश्व व मानव समुदाय की भी रक्षा संभव है। जबकि बाकी अधिकांश लोगों के लिए पहाड़-पर्वत टिंबर और खनिज पदार्थों का भंडार है और व्यवसायिक कारणों से दोहन और मुनाफे का केंद्र मात्र है।
आदिवासियों के हासा, भाषा, जाति, धर्म, रोजगार आदि और संवैधानिक अधिकारों को बचाना अब प्रकृति, पर्यावरण और मानवता को बचाने जैसा है।

झारखंड में जेएमएम-कांग्रेस की सोरेन सरकार ने जहां मारंग बुरू, यानी पारसनाथ पहाड़ को जैनियों को सौंपकर इसका जैनीकरण करने की कोशिश की है तो लुगू बुरू को पर्यटन स्थल घोषित कर इसके हिंदूकरण का प्रयास किया है। यह गलत है और इन्हें अविलंब मुक्त कर आदिवासियों को सौंप दिया जाए। दिशोम गुरु शिबू सोरेन के नेतृत्व में जेएमएम पार्टी ने अब तक केवल वोट और नोट के राजनीतिक लाभ के लिए संताल परगना का ईसाईकरण और इस्लामीकरण कर असली सरना आदिवासियों के साथ लगातार अन्याय, अत्याचार, शोषण किया है। संताल परगना हमारे लिए 22 दिसंबर 1855 को अंग्रेजों द्वारा संघर्ष के उपरांत स्थापित महान भूभाग. मातृभूमि है, जिसकी रक्षा अविलंब अनिवार्य है।

इनकी मांग है कि पारसनाथ पहाड़ का नाम सरकार द्वारा अधिकृत रूप से अविलंब मारंग बुरू कर दिया जाए। आदिवासी अभी तक अधिकांश प्रकृति पूजक हैं। प्रकृति को ही अपना ईश्वर मानते हैं, क्योंकि प्रकृति ही उनके लिए जीवनदाता है, पालनहार है। आदिवासी हिंदू, मुसलमान, ईसाई आदि नहीं हैं। मूर्तिपूजक नहीं हैं। व्यक्ति केंद्रित ईश्वर को नहीं मानते हैं। ऊंच-नीच की वर्ण व्यवस्था उनके बीच नहीं है। स्वर्ग और नरक की परिकल्पना तथा पुनर्जन्म आदि को नहीं मानते हैं। अतः प्रकृति पूजक आदिवासियों के लिए हिंदू, मुसलमान, ईसाई आदि धार्मिक मान्यताओं की तरह आदिवासियों को भी संवैधानिक प्रावधानों के तहत अलग धार्मिक मान्यता देते हुए सम्मान के साथ जनगणना आदि में शामिल किया जाए। 2011 की जनगणना में सर्वाधिक लगभग 50 लाख आदिवासियों ने अपनी प्रकृति पूजा धर्म को सरना धर्म के नाम से अंकित किया था। अतः आदिवासी सेंगेल अभियान की मांग है कि हर हाल में 2023 में सरना धर्म कोड को मान्यता देकर प्रकृति पूजक आदिवासी और प्रकृति पर्यावरण को सम्मान दिया जाए। और विश्व मानवता की रक्षा की जाए।

भगवान बिरसा मुंडा की जन्म तिथि 15 नवंबर 2000 को स्थापित झारखंड प्रदेश आज लूट, झूठ और भ्रष्टाचार की दलदल में खड़ा है। आदिवासी अस्तित्व, पहचान हिस्सेदारी पर चौतरफा हमला जारी है। संविधान, कानून और मानव अधिकारों का घोर उल्लंघन जारी है। राष्ट्रपति से मांग की गयी है कि आदिवासी बहुल झारखंड प्रदेश को बचाने में वे अपनी अधिकारों का उपयोग करें। एक उच्चस्तरीय कमीशन का गठन कर वस्तुस्थिति की जांच करें और जरूरत पड़े तो राष्ट्रपति शासन लागू कर बिरसा मुंडा, सिदो मुर्मू जैसे महान शहीदों के सपनों . के अबुआ दिसुम, अबुआ राज को बर्बाद होने से बचाने की पहल करें।

मौके पर मौजूद कमिश्नर मुर्मू संताल परगना अध्यक्ष, सुनील मुर्मू जिला अध्यक्ष दुमका, बरनार्ड हांसदा रानेश्वर प्रखण्ड अध्यक्ष, शिवराम मुर्मू जामा प्रखंड अध्यक्ष, परमेश्वर हेमब्रोम, मनोज कुमार मुर्मू, गुणाधन सोरेन, सुनील मुर्मू, रमेश टुडू, उज्ज्वल मुर्मू, सिमोल बास्की, अमर मरांडी संताल परगना जोनल हेड आदि थे।

Edited By: Samridh Jharkhand

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