बाल श्रम उन्मूलन दिवस पर विशेष : राज्य सरकारें बाल श्रम उन्मूलन की दिशा में रहीं विफल

अंतरराष्ट्रीय रूप से यह स्वीकार किया गया है कि बाल श्रम बच्चों के खिलाफ हिंसा के सबसे बुरे रूपों में से एक है और यह बाल अधिकारों के साथ-साथ मानव अधिकारों का भी गंभीर उल्लंघन है. इस संबंध में भारत सरकार ने 2016 में बाल श्रम निषेध और विनियमन अधिनियम में संशोधन किया. संशोधन, सभी व्यवसायों में 14 वर्ष तक के बच्चों को काम पर रखे जाने पर प्रतिबंध लगाता है. हालाँकि, भले ही विधायी और प्रशासनिक उपाय किए गए हों, किन्तु निरक्षरता के व्यापक प्रसार, गरीबी में वृद्धि के स्तर, सामाजिक सुरक्षा और संरक्षण की कमी तथा अज्ञानता बाल श्रम के निषेध के सपने को आँखों से दूर कर देते हैं. अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन आइएलओ के अनुमान के अनुसार 2016 में वैश्विक स्तर पर 5.17 वर्ष की आयु के कुल बाल श्रम की संख्या 152 मिलियन थी, जिसमें 114 मिलियन 5 से 14 वर्ष के आयु समूह के थे, जिसमें बाल मजदूरों का कुल हिस्सा 75 प्रतिशत था. भारत की जनगणना के अनुसार 5 से 14 वर्ष के आयु वर्ग के 1.01 करोड़ बच्चों के बारे में सूचना दी गयी थी कि 2011 में वे भारत में बाल श्रमिक के रूप में काम कर रहे थे, जिसमें से झारखंड की कुल बाल श्रम आबादी चार लाख है.

झारखंड में बाल श्रम की अधिकता

नेशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो, एनसीआरबी द्वारा प्रकाशित भारत में अपराध से संबंधित रिपोर्ट के आंकड़ों के अनुसार 2016 से 2018 तक भारत में बाल श्रम निषेध और विनियमन अधिनियम यानी सीएलपीआरए के तहत दर्ज की गयी एफआइआर की संख्या 2016 में 204 थी, जो 2018 में सीएलपीआरए के तहत बढ़कर 464 हो गयी. इन तीन वर्षों के दौरान सीएलपीआरए के तहत बचाए गए पीड़ितों की संख्या भी बढ़ी. 2016 में बचाए गए पीड़ितों की संख्या 384 थी तथा 2018 में 810 पीड़ितों को बचाया गया. यदि हम सीएलपीआरए के तहत मामलों के
पंजीकरण और भारत में कुल बाल श्रमिकों की संख्या के साथ बचाये बच्चों की संख्या देखते हैं, तो यह स्पष्ट है कि भारत के राज्य बाल श्रम के उन्मूलन के अपने कर्तव्य को निभाने में पूरी तरह से विफल रहे हैं.

2011 की जनगणना के अनुसार, झारखंड देश में बाल श्रम की संख्या चार लाख मामलों के साथ नौवें स्थान पर है. हालांकि, नेशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो द्वारा प्रकाशित आंकड़ों से पता चलता है कि 2016 से 2018 के दौरान सीएलपीआरए के तहत केवल 33 एफआईआर दर्ज की गईं और 33 बच्चों को श्रम या गुलामी से बचाया गया. मामलों की कम रिपोर्टिंग एक गंभीर चिंता है क्योंकि राज्य में कई बच्चे
असंगठित या अनौपचारिक खनन उद्योग में लगे हुए हैं जो कि खतरनाक हैं. इस प्रकार राज्य में बाल श्रम के मामलों की रिपोर्टिंग अत्यंत खराब है. यह स्पष्ट है कि झारखंड राज्य प्रशासन ने बाल श्रम के उन्मूलन की अपनी बहुत महत्वपूर्ण जिम्मेदारी पर ध्यान नहीं दिया है.
12 जून को विश्व भर में बाल श्रम के खिलाफ विश्व दिवस के रूप में मनाया जाता है. बाल श्रम के खिलाफ विश्व दिवस का जश्न झारखंड सरकार द्वारा बाल श्रम उन्मूलन के मानवीय कार्य पर ध्यान देने के लिए एक सचेत आह्वान है. जब तक बाल श्रम पूरी तरह से समाप्त नहीं हो जाता और हर बच्चा स्कूल नहीं जाता, शिक्षा प्राप्त नहीं करता, तो जनसांख्यिकीय लाभांश हमारे देश में सभी के लिए विकास और समृद्धि के रूप में परिवर्तित नहीं होगा.

(बचपन बचाओ आंदोलन के आंकड़ों पर आधारित रिपोर्ट.)

Edited By: Samridh Jharkhand

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