कमलेश सिंह की एंट्री का साइड इफेक्ट! 'कमल' छोड़ने की तैयारी में हुसैनाबाद में भाजपा कार्यकर्ता
हुसैनबाद में टिकट दावेदारों की लम्बी फौज
भाजपा कार्यकर्ताओं के साथ ही आजसू की चाहत भी इस सीट से चुनावी अखाड़े में उतरने की थी. 2014 में बसपा के टिकट पर विधानसभा पहुंचने वाले कुशवाहा शिवपूजन मेहता भी फिलहाल आजसू के साथ है, शिवपूजन मेहता ने वर्ष 2019 में भी आजसू के टिकट पर चुनाव लड़ा था, हालांकि उस मुकाबले में शिवपूजन मेहता को कोई खास सफलता नहीं मिली थी. तब शिवपूजन मेहता क 15 हजार वोट के साथ चौथे स्थान पर संतोष करना पड़ा था, इस बार भी शिवपूजन मेहता अपनी दावेदारी छोड़ने को तैयार नहीं है.
रांची: एक तरफ भाजपा की कोशिश विधानसभा चुनाव के पहले अपना कुनबा बढ़ाने की है. पार्टी के दरवाजे हर खास आम के लिए खोले जा रहे हैं, असम सीएम और झारखंड चुनाव सह प्रभारी हिमंता विश्व सरमा साफ अल्फाज में इस बात की घोषणा कर रहे हैं कि पार्टी में एंट्री का विरोध करने वाले पार्टी के समर्पित कार्यकर्ता नहीं है. लेकिन हिमंता विस्व सरमा की इस चेतावनी का कोई असर पड़ता नहीं दिख रहा है. सबसे अधिक विरोध की स्थिति हुसैनाबाद विधायक कमलेश सिंह की एंट्री को लेकर किया जा रहा है. कमलेश सिंह वर्ष वर्ष 2019 और 2005 में एनसीपी का चुनाव चिन्ह घड़ी छाप पर चुनाव जीत चुके हैं, लेकिन शरद पवार और अजित पवार के बीच सियासी घमासान के बीच शरद पवार का साथ छोड़कर अजित पवार के साथ जाना स्वीकार किया. अजित पवार एनडीए के साथ है. कमलेश की चाहत अजित पवार कैंप के साथ जुड़ कर एनडीए खेमे से चुनावी अखाड़े में उतरने की थी. लेकिन भाजपा एनसीपी को झारखंड में एनडीए का हिस्सा मानने से इंकार कर गयी, उन्हे बताया गया कि यदि वह भाजपा के साथ आते हैं, उस हालत में ही भाजपा सिटिंग विधायक के नाते अपना उम्मीदवार बना सकती है. जिसके बाद कमलेश सिंह ने भाजपा में शामिल होने का फैसला किया, तीन अक्टूबर को इसकी औपचारिकता भी पूरी की जायेगी. लेकिन कमलेश सिंह की एंट्री के कारण भाजपा में खलबली मच चुकी है. आज हुसैनबाद में बड़ी संख्या में पार्टी कार्यकर्ता के द्वारा अपना इस्तीफा सौंपने जाने का एलान किया गया है. इसके साथ ही हिमंता विस्वा सरमा का पुतला दहन की भी चेतावनी दी गयी है.
हुसैनबाद में टिकट दावेदारों की लम्बी फौज
कमलेश सिंह का पालाबदल आजसू के लिए भी झटका
भाजपा कार्यकर्ताओं के साथ ही आजसू की चाहत भी इस सीट से चुनावी अखाड़े में उतरने की थी. 2014 में बसपा के टिकट पर विधानसभा पहुंचने वाले कुशवाहा शिवपूजन मेहता भी अब आजसू के साथ है, शिवपूजन मेहता ने वर्ष 2019 में भी आजसू के टिकट पर चुनाव लड़ा था, हालांकि उस मुकाबले में शिवपूजन मेहता को कोई खास सफलता नहीं मिली थी. तब शिवपूजन मेहता 15 हजार वोट के साथ पांचवे स्थान पर संतोष करना पड़ा था, इस बार भी शिवपूजन मेहता अपनी दावेदारी छोड़ने को तैयार नहीं है. साफ है कि यदि कमलेश सिंह की भाजपा में एंट्री होती है, यह शिवपूजन मेहता के लिए भी एक बड़ा झटका होगा, और उसके बाद शिवपूजन का अगला कदम क्या होगा, इसको लेकर आजसू के अंदर भी हलचल तेज है. दावा किया जाता है कि मन टटोलने के लिए आजसू सूप्रीमो सुदेश महतो ने शिवपूजन मेहता को अपने पास बुलाया था, उन्हे विश्वास में लेने की कोशिश की थी, लेकिन सियासत में हर रिश्ता स्वार्थ का होता है, यदि यह सीट भाजपा के खाते में जाती है, और कमलेश सिंह को सिटिंग विधायक के नाते कमल का फूल थमाया जाता है, उस हालत में क्या शिवपूजन पार्टी के प्रति वफदार बने रहेंगे, यह भी एक बड़ा सवाल है. फिलहाल हैसनाबाद की सियासत में भूचाल की स्थिति हैं, सारे समीकरण एक बारगी धवस्त होते दिख रहे हैं.