165 साल का धरोहर आड्रे हाउस

-आशका पटेल

आड्रे हाउस के जर्जर भवन की दीवारों, बेशकीमती लकड़ियों से बनी फ्लोरिंग और अन्य को भी पुराने शेप में लाया जा चुका है। छप्पर को बदलकर प्राकृतिक रूप दिया गया है। भवन के अंदरूनी हिस्से में चूना, गुड़ और बालू से प्लास्टरिंग की गई है। इसी विधि से दीवार को चिकना कर पॉलिश किया गया है। खस्ताहाल हो चुकी लकड़ियों को बदल कर उन्हें पुराना आकार दिया गया है। परिसर में अंदर की सड़क को पेवर सड़क के रूप में परिवर्तित कर इसमें वेबल स्टोन का प्रयोग किया गया है।
1854 में कैप्टन हेनिंगटन ने बनवाया:
अंग्रेजी शासन में छोटानागपुर के डिप्टी कमिश्नर कैप्टन हेनिंगटन ने अपनी पंसद का एक आशियाना बनाने का प्लान बनाया। इसके लिए उन्होंने इंडियन और ब्रिटिश वास्तुकारों की मीटिंग बुलाई। मीटिंग में गोथिल कला शैली में आड्रे हाउस बनाने का निर्णय हुआ। इसके लिए पूरे देश से कलाकारों की टीम और बेशकीमती इमारती लकड़ियों को मंगवाया गया। इस इमारत के सेंट्रल हॉल का फ्लोर टीक की लकड़ी से बना है। इस बिल्डिंग में में दो सिलिंग हैं।
जीर्णोद्धार के क्रम भवन की पुरानी वास्तुशिल्प को बरकरार रखा गया है। 1854 में निर्मित इस शानदार भवन की कला आज भी लोगों के बीच प्रासंगिक व जीवंत है। कैप्टन हेनिंगटन 1850 से 1856 तक छोटानागपुर के डिप्टी कमिश्नर थे। दो तल्ला आड्रे हाउस का निर्माण लकडी, बांस के फ्रेम, घूप में सूखे ईटे, मिटृी व चूना गारे से किया गया था। हेनिंगटन की बेटी क्रिस्टीन को चलने में दिक्कत होती थी, लिहाजा उन्होंने टीक वुड के र्फश बनवाए। 30 हजार वर्गफुट के परिसर में कई तरह के पेड़- पौधे लगे हैं। यहां चंहुओर हरियाली फैली हुई है। आड्रे हाउस के निर्माण के आज 165 साल बीत चुके हैं। यह लगभग 2.40 एकड. में फैला हुआ है।
आर्ट गैलरी में तब्दील:
आड्रे हाउस को आर्ट गैलरी के रुप में तब्दील कर दिया गया है। इसके लिए चार कमरों का इस्तेमाल हुआ है। आर्ट गैलरी के लिए दो कमरे हैं, इन दो कमरो में खास पत्थरों और लकड़ियों से मूर्ति बनाई हुई है। जिसे खास तरह के रुप देकर बनाया गया है। पेंटिग गैलरी में दो कमरे हैं, यहाँ झारखंड की सांस्कृति को और अपने देश के सभी धर्माे को चित्र के माध्यम से दिखाया गया है। इस कमरें में झारखंडी चित्रकारो द्वारा निर्मित चित्र लगाये गये हैं। आड्रे हाउस में सेमिनार हाॅल इसका उपयोग र्सिफ सांस्कृतिक कार्यक्रमों के लिए किया जाता है। इसका प्रतिदिन का शुल्क 12000 लगता है, जो कार्यक्रम हेतु होता है। प्रत्येक शनिवार को 6 बजे सांय को कार्यक्रम आहूत किया जाता है। नाटक, गीत, कथक व झारखंडी संस्कृति से संबंधित कार्यक्रम होते हैं। लोगों का आना कार्यक्रम प्रचार पर आधारित है।
आड्रे हाउस में बदलाव हुआ: एसडी सिंह
ये इमारत टिंबर फ्रेम स्ट्रक्चर पे बनी हुई थी, इसके बचे हिस्से में सनबेट ब्रिक्स लगाया गया था। और इसके बीच बांस लगाया हुआ था। 2015 में मरम्म्त के समय पुरानी चिजो को हटाकर माॅडन मैटेरियल से रेनोवेट कर दिया गया।
मैटेरियल की गारंटी नही: पीके सिंह
आड्रे हाउस को इंडियन नेशनल ट्रस्ट फाॅर ऑट एंड कल्चर हेरिटेज द्वारा बनाया गया था व इसमे आड्रे हाउस से कोई छेडछाड नही की गई थी। यहां के मैटेरियल की कोई गारंटी नही होती है।
हरियाली से घिरी आड्रे हाउस: नितिश
पर्यावरण के दृष्टि से हरे भरे पेड़- पौधों की हरियाली की बीच आड्रे हाउस बिल्कुल सुरक्षित है। हमारे आड्रे हाउस की हरियाली में लोगों को काफी सुकुन मिलता है। शहर की तुलना में यहां का तापमान हमेशा 2 से 3 डीग्री कम ही रहता है। 13वें फिनांस कमीशन में झारखंड सरकार ने कंजरवेसन एंड रिस्टोरेसन प्रोजेक्ट के तहत। इसके अलावा 23 और विरासत मरम्मत के लिए काम शुरु किया । 2011 के बाद से इसका आगाज हुआ है।