विधानसभा चुनाव 2024: पलामू की वह चार सीटें जहां लग सकता है भाजपा को झटका
इन सीटों पर मंडरा रहा है खतरा
आलोक चौरसिया को एंटी इन्कमबैंसी का सामना करना पड़ना रहा है, ठीक यही हालत विश्रामपुर से लगातार वर्ष 2014 और 2019 में कमल खिलाने वाले राम चन्द्रवंशी की बतायी जा रही है. हालांकि यहां कांग्रेस के पास कोई मजबूत चेहरा नहीं है, वर्ष 2019 में राजेश मेहता ने बसपा के टिकट पर अखाड़े में उतर कर मजबूत चुनौती पेश की थी. यदि इस बार कांग्रेस अपने प्रत्याशी में बदलाव करती है, तो चन्द्रवंशी के सामने भी मुश्किल खड़ी हो सकती है,
रांची: एक तरफ परिवर्तन रैली और महासभा के सहारे भाजपा हेमंत सरकार की विदाई का दावा कर रही है. दूसरी तरफ सियासी विश्लेषकों के द्वारा सूबे झारखंड में कल्पना सोरेन की आंधी का दावा किया जा रहा है. कल्पना सोरेन की सभाओं में उमड़ी भीड़ उन्हे हैरत में डाल रही है. उनका दावा है कि कल्पना सोरेन की सभाओं में उमड़ी भीड़ से झारखंड के सियासी मिजाज, जमीनी धड़कन को समझा जा सकता है. जिस तरीके से कल्पना सोरेन पूरे प्रदेश का दौरा कर रही है, मंइयां सम्मान योजना के सहारे झामुमो की सियासी जमीन को मजबूती प्रदान कर रही है. यह भाजपा के लिए खतरे की घंटी है. मुश्किल यह है कि कल्पना सोरेन का यह जादू सिर्फ संताल और कोल्हान में ही नहीं दिखलायी पड़ रहा है, बल्कि इसकी पदचाप गैर आदिवासी इलाके में भी महसूस की जा रही है. जिस पलामू को कभी झामुमो के लिए सबसे कमजोर कड़ी माना जाता था, इस बार पलामू भी कल्पना सोरेन के साथ बहता दिखलायी पड़ रहा है. यही वह कारण है कि इस बार सियासी जानकारों के द्वारा पलामू में भाजपा के लिए खतरे की घंटी का अंदेशा जताया जा रहा है. दावा है कि भाजपा के हाथ से इस बार एक साथ चार सीटें निकल सकती है. स्थानीय पत्रकारों का आकलन है कि हुसैनाबाद, डाल्टगंज, विश्रामपुर और भवनाथपुर का मुकाबला इस बार काफी मुश्किल होने जा रहा है.
इन सीटों पर मंडरा रहा है भाजपा के लिए खतरा
आपको बता दें कि हुसैनाबाद सीट से एनसीपी के घड़ी छाप पर दो-दो बार विधानसभा पहुंचने में सफल रहे कमलेश सिंह इस बार भाजपा की सवारी का एलान कर चुके हैं. तीन अक्टूबर को औपचारिक रुप से भाजपा की सदस्यता ग्रहण करेंगे, लेकिन कमलेश सिंह की एंट्री से मजबूती मिलने के बजाय भाजपा के सामने मुसीबत ज्यादा खड़ी होती दिखलायी पड़ रही है. पार्टी समर्पित कार्यकर्ता भी बगावत की मूड में हैं, जिसका सीधा लाभ राजद प्रत्याशी संजय यादव को मिल सकता है. डाल्टनगंज विधानसभा से वर्ष 2014 और 2019 में लगातार जीत दर्ज करने वाले आलोक कुमार चौरसिया के सामने भी मुश्किल चुनौती बतायी जा रही है, वर्ष 2009 में इस सीट से कांग्रेस को जीत दिलाने वाले के.एन त्रिपाठी के बारे में दावा किया जा रहा है कि इस बार वह बाजी पलटने की तैयारी में हैं.
के.एन त्रिपाठी की सभाओं में उमड़ती भीड़
उनकी सभाओं में भी अच्छी खासी भीड़ जुट रही है. दूसरी तरफ आलोक चौरसिया को एंटी इन्कमबैंसी का सामना करना पड़ना रहा है, ठीक यही हालत विश्रामपुर से लगातार वर्ष 2014 और 2019 में कमल खिलाने वाले राम चन्द्रवंशी की बतायी जा रही है. हालांकि यहां कांग्रेस के पास कोई मजबूत चेहरा नहीं है, वर्ष 2019 में राजेश मेहता ने बसपा के टिकट पर अखाड़े में उतर कर मजबूत चुनौती पेश की थी. यदि इस बार कांग्रेस अपने प्रत्याशी में बदलाव करती है, तो चन्द्रवंशी के सामने भी मुश्किल खड़ी हो सकती है, इसके साथ ही भवनाथपुर से भी भाजपा को मुश्किल स्थिति का सामना करना पड़ सकता है. लेकिन यहां भी कांग्रेस को अपने प्रत्याशी में बदलाव करना पड़ सकता है, वर्ष 2019 में सोगरा बीबी ने 56,914 कांग्रेस प्रत्याशी केदार प्रसाद यादव को तीसरे स्थान पर पहुंचा दिया था. यदि इस बार महागठबंधन सोगरा बीबी या अंनत प्रताप देव पर दांव लगाती है, तो बाजी पलट भी सकती है.