झारखंड भाजपा : व्यक्ति विशेष की जय-जय करना, पार्टी धर्म या फिर पार्टी के प्रति अधर्म

झारखंड भाजपा : व्यक्ति विशेष की जय-जय करना, पार्टी धर्म या फिर पार्टी के प्रति अधर्म

अविनाश मिश्रा

किसी भी पार्टी के कार्यकर्ता का धर्म क्या होता है? यह एक बड़ा प्रश्न है आज. विशेष रूप से झारखंड में यह एक बड़ा गंभीर विषय है और अगर साफ और सीधे तरीके से बात की जाय तो विश्व की सबसे बड़ी पार्टी भाजपा के लिए. भाजपा के झारखंड मे 34 लाख से ज्यादा सदस्य हैं तो इन्हें कार्यकर्ता ही मानना चाहिए और जब ये कार्यकर्ता हैं तो निश्चित रूप से इनका सम्मान उसी प्रकार होना चाहिए जिस प्रकार बड़े-बड़े पद पर आसीन पार्टी के कार्यकर्ताओं की होती है और पार्टी धर्म भी यही कहता है कि सबों को समान सम्मान मिलना चाहिए. सभी एक-दूसरे का सम्मान करें, क्योंकि भाजपा को उसके कार्यकर्ता पार्टी नहीं परिवार के रूप में जानते हैं और मानते भी हैं.

लेकिन पढ़ने, बोलने और लिखने के लिए ये बातें बहुत ही संस्कारी लगती हैं. संस्कार झलकता है इन सब बातों से जो की भाजपा रूपी परिवार का विशेष पहचान भी है लेकिन हाल के वर्षों में ये संस्कार एक व्यक्ति विशेष के कारण, लोगों की चुप्पी के कारण, गलत को नजरंदाज करते हुए गलत का समर्थन करने के कारण भाजपा से अलग हो गयी और परिणाम कितना विध्वंसक हुआ वो सबों ने देखा एक राज्यसभा सदस्य बनाने तक के लिए दूसरे पार्टी के तरफ मुँह ताकना पड़ा और वो भी उसके तरफ जिसने अलग होकर चुनाव लड़ा साथ ही अपनी शर्तों पर ही राज्यसभा सदस्य बनने के प्रक्रिया में अपना मत देने की बात की और उम्मीदवार बदलवा दिया. हाँ, उस पार्टी का नाम आजसू है।

एक व्यक्ति सरयू राय ने चुनौती देते हुए भाजपा के मुख्यमंत्री को जहां से वो 24 वर्षों से जीतते आ रहे थे वहीं पटखनी दे दी. सही मायने में देखा जाए तो यह हार मामूली नहीं बल्कि एक व्यक्ति के घमंड का चूर होना था. बल्कि सिर्फ यही नहीं पूरे राज्य में भाजपा की हार का एक मात्र कारण मात्र एक व्यक्ति था जिसका नाम रघुवर दास है।

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बिलकुल, मैं यहाँ उसी विशेष व्यक्ति की बात करना चाह रहा हूँ, जिन्होंने कभी भी पार्टी कार्यकर्ताओं को महत्व नहीं दिया. हमेशा अपने से नीचा समझा और चुनाव में कूद पड़े अपने नाम के नारे के साथ. उनके समझ में यह नहीं आया की चुनाव कोई व्यक्ति नहीं, कोई नेता नहीं बल्कि कार्यकर्ता लड़ता है और झारखंड के 75 प्रतिशत से ज्यादा कार्यकर्ता रघुवर दास से गुस्से में थे लेकिन रघुवर दास ने अपनी रिपोर्ट अपने से ही बनाई और केंद्र को सौंपते गए लेकिन किसी बड़े नेता ने इनके खिलाफ एक आवाज नहीं उठाई। क्या उन नेताओं का यही पार्टी धर्म था कि पार्टी के कार्यकर्ता खुश नहीं हैं लेकिन ये अपनी आवाज को बुलंद नहीं कर पाए. यह पार्टी धर्म था या व्यक्ति धर्म था और इनकी मासूमियत तो देखिए जिन्होंने राज्य मे पार्टी को हार का मुंह दिखाया उनकी वाहवाही आज भी करते हैं और पहले भी करते थे. बस एक-दो शब्द वर्तमान मे नहीं देखने को मिलती है वो है – देवतुल्य और यशश्वी. संभवतः समय को देखते हुए कुछ लोगों ने अपने शब्दों की शब्दावली मे उलटफेर कर दिया है.

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पार्टी धर्म पार्टी में चल रही गलत नीतियों का विरोध है. पार्टी को कमजोर होते देखकर भी चुप रहना नहीं है और अगर आप ऐसा कर रहे हैं तो यह पार्टी के प्रति अधर्म है, अत्याचार है और इसका विध्वंसक परिणाम लाखों कार्यकर्तों भुगतना पड़ता है.

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मेरे यह सब लिखने का तात्पर्य यह भी है की कुछ दिन पूर्व रघुवर दास की तारीफ हो रही थी, जब जमशेदपुर में एक फल विक्रेता ने हिन्दू का बोर्ड लगाया तो उस पर कार्रवाई हुई. तब जाकर उसका वीडियो भी बनवाया था और बात की थी ताकि लोग जान सकें वे हिंदुत्व के कितने बड़े नेता हैं. सब कहने लगे अभी वो होते तो ऐसा होता, वैसा होता, लेकिन दुःख इस बात का है कि इतना जल्दी हम सब सब कुछ भूल कैसे जाते हैं. ये अपने समय में किसी भी कार्यकर्ता को महत्व नहीं देते थे, कुछ नवरत्नों को छोड़ कर. वैसे तो उन नवरत्नों की भी पूरी सूचना है दीवान से लेकर दरबारियों तक की और उनके बारे भी बात होनी चाहिए लेकिन जब सब इनके ही कारण थे फिर उन्हें क्यों दोष दिया जाए। आज जो ये गजब का काम कर रहे हैं और हम वाहवाही कर रहे हैं, उसे भी लोग सही मान ले रहे हैं कि कम से कम इस बात की तस्सली तो है की भले राजनीति के लिए ही सही लेकिन अवाज तो बुलंद हुई लेकिन अफसोस है की ये पहले क्यों नहीं हुआ, क्योंकि ये पहले हुआ रहता तो आज जिन कार्यकर्ताओं को भाजपा सरकार के नहीं होने की कमी खल रही है ना वो कमी नहीं खलती। लेकिन तब पार्टी धर्म गौण हो गया था, व्यक्ति विशेष के प्रति ईमानदारी ज्यादा हावी थी और अगर कार्यकर्ता आवाज उठाते हैं तो फिर पार्टी के प्रति उनकी निष्ठा और ईमानदारी पर हज़ार सवाल किए जाते हैं लेकिन जिसने पूरी पार्टी के कार्यकर्ताओं को अपने आगे झुका दिया उसकी वाहवाही के कसीदे आज भी पढे जा रहे हैं.

Edited By: Samridh Jharkhand

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