भाजपा बनाम महागठबंधन: किसकी शह किसकी मात !
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-वोटिंग 2019
आलोक कुमार
लोकसभा चुनाव में झारखंड के दूसरे चरण में चुनावी बाजी कौन मारेगा ? ये तो 23 मई को मतपेटी से निकलने वाला जिन्न ही तय करेगा, लेकिन महज चंद घंटों बाद प्रदेश की सर्वाधिक अहम माने जानेवाले रांची, हजारीबाग, खूंटी व कोडरमा संसदीय सीट पर राजनीतिक दल,उसके प्रत्याशी व पार्टी के रणनीतिकारों की पूरी प्रतिष्ठा ईवीएम में कैद हो जाएगी। हालांकि जीत के दावे पहले से किये जा रहे हैं, लेकिन परिणाम हवाईयां उड़ा सकती हैं। भाजपा के शतरंज की बिसात पर केवल मोदी राजा-मंत्री हैं व बाकि सभी प्यादे इन्हीं की कंधे पर वैतरणी जाना चाहते हैं, तो महागठबंधन नाम का महागठबंधन है और कई जगहों पर इनकी एकता पूर्णत: खंडित है। खास बात यह भी है कि मौजूदा चुनावी जंग में भाजपा के सिर्फ चेहरे जुदा हैं, लेकिन महागठबंधन ने तो मोहरा ही बदल लिया है।
बात भाजपा की करें तो इसने चार संसदीय सीटों में केवल हजारीबाग के जयंत सिन्हा पर भरोसा किया, बाकि रांची, खूंटी और कोडरमा में चेहरे बदले हैं। वहीं, महागठबंधन ने भी मोहरों के साथ तोड़-मरोड़ किया। रांची और कोडरमा में पूर्व मंत्री सुबोधकांत सहाय और पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी जैसे पुराने चावल पर दांव खेला है। खूंटी में कालीचरण मुंडा व हजारीबाग में गोपाल साहू जैसे नए क्षत्रपों पर दांव लगाया है। दिलचस्प बात ये है कि पिछले चुनाव में अलग-अलग लड़नेवाले सुबोधकांत सहाय व बाबूलाल मंराडी के साथ पूरा महागठबंधन सुर में सुर मिला रहा है। इस दौरान स्टार वार से लेकर पीएम मोदी तक के दौरों ने भाजपा व महागठबंधन के प्रत्याशियों को एंटीबायोटिक देने का काम किया है, लेकिन उससे भी कड़ा फैक्ट ये है, कि जनता का मिजाज किधर है। वो इवीएम में किसे कैद करेगी।
पुराने भाजपाई बाबूलाल क्या पलटेंगे बाजी?
कोडरमा में मुकाबला दिलचस्प होने के साथ-साथ प्रतिष्ठा से भी जुड़ा है। भाजपा से अलग होकर झाविमों के मुखिया बने बाबूलाल मरांडी महागठबंधन के प्रत्याशी है। जिले का प्रख्यात क्षेत्र झमुरी तिलैया राष्ट्रीय धुन पर चलता दिख रहा है। लोग कहते हैं, कि हमने बात कह दी है, आप अर्थ निकाल लें। हालांकि, शहर से बाहर निकलते ही लोकधुन भी बज रही है और कहीं-कहीं शोर भी शानदार है। रणक्षेत्र में तीन किरदार हैं, लेकिन कौन किसकी नैया बेड़ागर्क कर देगा ? ये देखना दिलचस्प होगा। राजद से भाजपा में आयीं अन्नपूर्णा देवी को पूर्व सीएम व सांसद बाबूलाल कठिन चुनौती दे रहे हैं।
इन दोनों से अलग सीपीआइएमएल के राजकुमार यादव का अपना वजूद है व ये मुकाबले को रोमांचक कर चुके हैं। पिछली बार राजकुमार 2 लाख 66 हजार वोटों के साथ दूसरे पायदान पर थे। हालांकि इस बार ये देखना दिलचस्प होगा, कि कोडरमा में हीरो नंबर एक की उपाधि किसे प्राप्त होगी। वैसे सीधे संघर्ष पर बात करें तो ये भाजपा बनाम झाविमों ही दिखता है, लेकिन इसमें राजकुमार यादव खलनायक की भूमिका निभा सकते हैं, ऐसे में जाहिर है कि नुकसान बाबूलाल मंराडी को होगा। कई ग्रामीणों से बातचीत में रुझान मोदी की ओर दिखता रहा है, इसके तर्क में राष्ट्र के लिये इन्हें ज्यादा अहम बताते हैं। मरांडी को भी ये अच्छा नेता मानते हैं, लेकिन राज्य के लिये।
कहीं सेठ को टहला न दें टहल, मुकाबला त्रिकोणीय
रांची लोकसभा सीट बीजेपी के साथ कांग्रेस की प्रतिष्ठा का विषय भी बना हुआ है। यहां से भाजपा के बागी रामटहल चौधरी भाजपा के मौजूदा प्रत्याशी संजय सेठ के गले की हड्डी बन सकते हैं, हालांकि वोटरों का मिजाज पढ़ पाना आज के दिन संभव नही है। इसके बावजूद यहां मुकाबला त्रिकोणीय दिख रहा है। संजय सेठ पहली बार कोई चुनाव लड़ रहे हैं। वे झारखंड खादी बोर्ड के अध्यक्ष थे। वहीं सुबोधकांत सहाय यूपीए-2 की सरकार में केंद्रीय मंत्री रह चुके हैं व यहां से 1989, 2004 और 2009 में सांसद भी बने हैं। रामटहल चौधरी रांची से पांच बार सांसद रहे हैं। 2014 में उन्होंने बीजेपी की टिकट पर कांग्रेसी प्रत्याशी सुबोधकांत सहाय को हराया था। सबसे खास बात ये कि संजय सेठ की तुलना में रामटहल चौधरी को मतदाता कहीं अधिक जानते हैं।
महागठबंधन के प्रत्याशी के रूप में प्रदेश कांग्रेस के कद्दावर नेताओं में शुमार पूर्व केंद्रीय मंत्री सुबोधकांत सहाय मैदान में हैं। सुबोधकांत ने भी तीन बार इस क्षेत्र का प्रतिनिधित्व किया है। ऐसे में प्रथम दृष्ट्या रांची में त्रिकोणीय संघर्ष की स्थिति बन रही है। अब जबकि इस सीट के लिए छह मई को मतदान होना है, मतदाताओं को अपना बनाने में प्रत्याशियों ने एड़ी, चोटी एक कर दी है। अलबत्ता ऊंट किस करवट बदलेगा, यह मतदाताओं का मूड व वक्त तय करेगा। बहरहाल चुनावी जंग में कूदे तीनों प्रत्याशी अपनी जीत का दावा कर रहे हैं। चौधरी की पहचान आज भी भाजपाई के तौर पर ही हैं, लेकिन वे कमल से हटकर फुटबाॅल छाप पर चुनाव लड़ रहे हैं। इसमें भी कोई दो राय नही, कि इनके समर्थकों का बड़ा धड़ भाजपा के पक्ष में वोटिंग करें, लेकिन इसके बावजूद ये संजय सेठ के लिये हार का मोहरा बन सकते हैं। संभावना जतायी जाती है कि निर्वाचन क्षेत्र में तकरीबन चार लाख कुर्मी वोटर है, जिसके सहारे चौधरी की चुनावी नैया पार लगती रहती है। इससे अलग अगर 2014 के चुनाव परिणाम को देखें तो आजसू प्रमुख सुदेश कुमार महतो ने एक लाख 42 हजार वोटों की सेंधमारी की थी, जिनमें कुर्मी वोटर बहुतायत थे। इस बार सुदेश एनडीए के घटक के तौर पर भाजपा के पक्ष में चुनाव प्रचार में लगे हैं। यह कहीं न कहीं चौधरी को ही डैमेज करेगा। संजय सेठ के लिये कैडर वोट खास कड़ी है। रांची लोस में पड़नेवाले 6 विधानसभा में से 5 पर भाजपा का कब्जा है। वहीं सुबोधकांत सहाय की तातक मुस्लिम और ईसाई वोटर रहे हैं।
अर्जुन का लक्ष्य पर निशाना आसान नहीं
पूर्व सीएम व भाजपा के कद्दावर नेता अर्जुन मुंडा के लिये खूंटी लोस की सीट पर बाजी मारना आसान नहीं है, लेकिन सियासत के माहिर खिलाड़ी रहे अर्जुन अपनी चाल को सटिक तौर पर चल रहे हैं, लेकिन रघुवर सरकार में कैबिनेट मंत्री नीलकंठ सिंह मुंडा के सगे भाई कालीचरण मुंडा कांग्रेस की टिकट पर इनके विरोध में चुनाव लड़ रहे हैं। भाजपा के दिग्गज अर्जुन मुंडा के लिए यह क्षेत्र नया नहीं है। वे इसी संसदीय क्षेत्र के तहत आने वाले खरसावां विधानसभा क्षेत्र से ताल्लुक रखने के साथ-साथ विधानसभा पहुंचते रहे हैं। बदली राजनीतिक परिस्थिति ने इस बार उन्हें मुख्य मुकाबले में ला खड़ा किया है।
खास बात ये है कि यहां के लोगों का कहना है कि आपलोग यहां का मिजाज नहीं भांप पाइएगा। शहर व गांव के माहौल बिल्कुल अलग हैं। कमल और पंजा में कांटे की टक्कर है। जो जितना मैनेज कर पाएगा, वही जीत हासिल करेगा। एक बात साफ दिख रही है कि यहां ग्रामसभा के रुख पर ही प्रत्याशी की जीत पर मुहर लगेगी। खूंटी के चुनाव में भाजपा और कांग्रेस के बीच मुख्य मुकाबले में बैकग्राउंड से चर्च भी है। यह लोगों का मन-मस्तिष्क अपने हिसाब से निर्धारित करती है। खुले तौर पर चर्च की भागीदारी नहीं दिखती लेकिन भितरखाने पूरा कुनबा सक्रिय है। इस बाबत भाजपा चुनाव आयोग भी पहुँच चुका है। संयोग है कि 2014 के लोकसभा चुनाव में खूंटी से जीत हासिल करने वाले कडिया मुंडा और एनोस एक्का इस बार चुनाव नहीं लड़ रहे। कडिया मुंडा को टिकट नहीं मिल पाया लेकिन वे चुनाव में अर्जुन मुंडा की विजय सुनिश्चित कराने के लिए खूब पसीने बहा रहे हैं। वहीं पिछले चुनाव में नंबर दो पर रहे एनोस एक्का अभी जेल में बंद हैं। कहा जा रहा है कि वे जेल से ही निर्देश दे रहे। यहां पत्थलगड़ी, भीतरी-बाहरी, चर्च का रूख व नक्सली धड़ें जैसे कारक अहम भूमिका निभायेंगे।
मां के सर्पोट से जीतेंगे जयंत !
हजारीबाग सांसद यशवंत सिन्हा भाजपा से नाराज चल रहे हैं और उनके पुत्र इसी पार्टी से सांसद हैं। दोबारा संसद जाने के लिये चुनावी समर में हैं। जयंत की मां नीलिमा सिन्हा अपने पुत्र के साथ हैं, ऐसे में देखना दिलचस्प होगा कि जनता क्या फरमान सुनाती है। सोमवार को यहां इनके भाग्य का फैसला इवीएम मे कैद हो जायेगा। बताते चलें कि यशवंत सिन्हा पीएम मोदी के प्रखर विरोधी रहे हैं। बड़ा सवाल ये है कि क्या वे भाजपा प्रत्याशी और अपने पुत्र जयंत सिन्हा के खिलाफ वोट करेंगे ? या विरोध के बावजूद वे भाजपा से सांसद बनेंगे। क्या पिता के भाजपा विरोध के बावजूद जयंत सिन्हा हजारीबाग की जंग जीतने में कामयाब होंगे ? पत्नी पुनिता सिन्हा भी अपने पति के लिये वोट मांगती देखी गईं। यहां कांग्रेस से गोपाल साहू व भाकपा से भुवनेश्वर मेहता चुनावी जंग में शामिल हैं।
Edited By: Samridh Jharkhand