कल्पना की आंधी में डोलता भाजपा का पलामू का किला, चार सीटों पर बज रही खतरे की घंटी

वह चार सीटें जहां हो सकता है भाजपा को नुकसान

कल्पना की आंधी में डोलता भाजपा का पलामू का किला, चार सीटों पर बज रही खतरे की घंटी
कल्पना सोरेन (फाइल फोटो)

जब मंईया सम्मान योजना यात्रा के साथ कल्पना सोरेन एक बार फिर से पलामू की सरजमीन पर पहुंची. और उस दौरान   जिस तरीक से मोहम्दगंज, हैदरनगर, हुसैनाबाद, छतरपुर, नावा बाजार, पंडवा मोड़ पर रास्ते के दोनों तरफ फूल माले के साथ महिलाओं और युवाओं की लम्बी कतार दिखी, वह इस बात का संकेत था कि संताल और कोल्हान के बाद अब पलामू भी झामुमो के लिए अछूता नहीं रहने वाला है.  

रांची: चुनावी मोड़ पर खड़ी झारखंड में कई जानकारों के द्वारा कल्पना सोरेन की आंधी की दावा किया जा रहा है. उनके इस दावे में कितनी सच्चाई और कितना फसाना है उसके समझने के पहले बेहतर होगा कि हम वर्ष 1964 के इंदिरा गांधी को समझ लें. क्योंकि तब इंदिरा गांधी भी इसी तरह की परिस्तिथियों से दो चार थी. देश के पहले और लोकप्रिय प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरु की मौत के बाद जब लाल बहादूर शास्त्री के मंत्रिमंडल में इन्दिरा गांधी का सूचना और प्रशासन मंत्री के रुप में ताजपोश हुई थी, तब प्रखर समाजवादी नेता लोहिया ने उपहास उड़ाते हुए गूंगी गुड़िया करार दिया था. लेकिन महज सात वर्ष बाद जब उसी गूंगी गुड़िया ने पाकिस्तान के दो टूकड़े करते हुए बांग्लादेश का निर्माण किया तो भरी संसद में तात्कालीन नेता विपक्ष अटल बिहारी ने दुर्गा की उपाधि प्रदान किया था. साफ है कि 1964 में जो इंदिरा लोहिया की नजर में एक गूंगी गुड़िया थी, सात वर्ष के अंदर-अंदर अटल दुर्गा का अवतार बन चुकी थी.

असफल हो गई भाजपा रणनीतिकारों की रणनीति

यह कहानी आज इसलिए जरुरी है कि हेमंत सोरेन की जेल यात्रा से पहले कल्पना सोरेन की स्थिति बहुत कुछ इसी प्रकार की थी. सार्वजनिक जीवन से कल्पना सोरेन का दूर-दूर तक कोई वास्ता नहीं था, कई जानकारों का दावा है कि हेमंत सोरेन की जेल यात्रा एक बड़ी वजह झामुमो के अंदर दूसरी पीढ़ी के नेताओं का अभाव था. भाजपा के रणनीतिकारों को इस बात का विश्वास था कि यदि हेमंत सोरेन को जेल की कोठरी में बंद कर दिया जाता है तो फिर झामुमो के अंदर कोई  सेकेंड लाइन नेतृत्वकर्ता नहीं बचेगा. नेतृत्वकर्ता के अभाव में झामुमो के कार्यकर्ता सड़क पर उतर कर इस गिरफ्तारी का प्रतिकार करने की हैसियत में भी नहीं होंगे. झामुमो में भागदौड़ की स्थिति कायम हो जायेगी, पूरी पार्टी कई टूकड़ों में विभाजित हो जायेगी या फिर उसका एक बड़ा हिस्सा भाजपा में समाहित हो जायेगा. 

झारखंड की सियासत में कल्पना सोरेन की एंट्री

कल्पना की आंधी में पलामू में डोलता भाजपा का किला, चार सीटों पर बज रही खतरे की घंटी
पलामू में कल्पना सोरेन को सुनने के लिए उमड़ी भीड़

लेकिन जैसे ही हेमंत सोरेन को काल कोठरी में कैद किया गया, अचानक से कल्पना सोरेन का पर्दे पर एंट्री होती है. संताल से लेकर कोल्हान तक पूरी पार्टी एकजूट होकर भाजपा के खिलाफ लड़ता नजर आता है. और यहीं से पहली बार कल्पना सोरेन का वह चेहरा सामने आया, जो अब तक चारहदीवारी में कैद था. जब कल्पना सोरेन की ओर अपनी रैलियों में हिन्दी, अंग्रेजी, उड़िया, बांग्ला में धाराप्रवाह भाषण की शुरुआत हुई तो झामुमो कार्यकर्ताओं को भी कल्पना सोरेन के इस रुप पर विश्वास नहीं था. कार्यकर्ताओं के अंदर पसरी सारी उदासी एक बारगी छू मंतर होता नजर आया, झारखंड हो या इंडिया गठबंधन की मुम्बई और दूसरी रैलियां, हर मंच पर कल्पना सोरेन का जलबा कायम होने लगा. जिस हेमंत सोरेन की गिरफ्तारी को भाजपा वरदान मान रही थी, वह उसके गले की फांस बन चुका था. कई जानकारों का दावा है कि बिहार- झारखंड में कल्पना सोरेन की टक्कर का भाजपा के पास एक भी वक्ता नहीं है. कल्पना सोरेन का यह जादूई रुप सिर्फ आदिवासी-मूलवासी समाज को ही अपने साथ नहीं जोड़ता, बल्कि कल्पना सोरेन के रुप में झामुमो को एक बड़ा अर्बन चेहरा भी मिल चुका है. 

कल्पना का यही रुप पलामू प्रमंडल में झामुमो के वरदान

 

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कल्पना सोरेन ( फाइल फोटो)

 

कल्पना सोरेन यही रुप अब पलामू प्रमंडल में भी झामुमो और महागठबंधन के लिए वरदान साबित होता दिख रहा है, जिस पलामू प्रमंडल को कभी झामुमो के लिए बंजर जमीन माना जाता है, उसी पलामू प्रमंडल में युवाओं और महिलाओं के बीच कल्पना सोरेन की गुंज हो रही है. आपको बता दें कि पलामू प्रमंडल हमेशा से झामुमो के लिए चुनौती रहा, हालांकि फिलहाल उसके पास कांग्रेस की तुलना में पलामू प्रमंडल में कहीं अधिक सीटे हैं. पलामू प्रमंडल की नौ विधानसभाओं डाल्टनगंज, मनीका, पांकी, छतरपुर, विश्रामपुर, हुसैनाबाद, भवनाथपुर, गढ़वा और लातेहार में आज के दिन झामुमो के पास गढ़वा और मनीका की सीट है, लेकिन गढ़वा में मंत्री मिथिलेश ठाकर की जीत के पीछे मंत्री मिथिलेश ठाकुर का खुद का सियासी जमीन कितना है और झामुमो का प्रभाव कितना, यह एक बड़ा सवाल है, ठीक यही हालात लातेहार की है, मंत्री बैधनाथ राम इसके पहले भी जदयू, भाजपा की सवारी करते हुए विधानसभा पहुंच चुके हैं, इस बार वह झामुमो के साथ है, लेकिन उनकी जीत में भी झामुमो का प्रभाव कम और उनकी खुद की सियासी जमीन की ताकत कुछ ज्यादा है. कांग्रेस के पास एक मनीका की सीट है, जहां से रामचन्द्र सिंह विधायक हैं, बाकि की सभी छह सीटें भाजपा के पास है, एक हुसैनाबाद की सीट जो कभी कमलेश सिंह की हुआ करती थी, कमलेश सिंह अब भाजपा की सदस्यता ग्रहण कर चुके हैं. 

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पलामू में मजबूत होता झामुमो की सियासी जमीन 

तो क्या आज भी झामुमो पलामू में उसी हालात में खड़ा हैं, जहां उसे अपनी जीत के लिए खुद की सियासी जमीन वाले मजबूत नेताओं का आसरा है. यह ठीक है कि हर सियासी दल को मजबूत सामाजिक आधार वाले नेताओं की खोज होती है, लेकिन नेताओं की चाहत भी यही होती है कि वह उस दल के साथ जायें, जिसके पास मजबूत सियासी और सामाजिक जमीन हो. और आज कल्पना सोरेन पलामू की धरती पर उसी सियासी जमीन को तैयार करती हुई दिखलायी पड़ रही है. जिस तरीके से पलामू प्रमंडल में बड़ी संख्या में दूसरे दलों के कार्यकर्ताओं के द्वारा झामुमो का दामन थामा जा रहा है. उसकी पीछे झामुमो की यही बढ़ता हुआ सामाजिक आधार है. जिसकी भान सियासी कार्यकर्ताओं को भी हो रहा है.

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हुसैनाबाद के लिए कल्पना सोरेन का  मास्टर प्लान 

याद रहे कि जब हेमंत सोरेन जेल में थें, ठीक उसी वक्त कल्पना सोरेन ने हुसैनाबाद फतह का प्लान तैयार किया था, 18 जून को हुसैनाबाद में जिस तरीके से जिला उपाध्यक्ष आलोक कुमार उर्फ टुटू सिंह और राजद नेता और पूर्व विधायक संजय यादव का बेहद खासमखास जाकिर अली उर्फ राज अली को झामुमो में शामिल करवाया गया था, उसके पीछे कल्पना सोरेन की दूरगामी रणनीति थी. लेकिन यह सवाल उठना लाजिमी है कि जो पलामू हमेशा से झामुमो के लिए बंजर जमीन रही है, उस झामुमो का दामन थामने की इतनी होड़ क्यों मची है? कई जानकार इसे कल्पना सोरेन के साथ जोड़ कर देख रहे हैं, उनका दावा है कि कल्पना सोरेन के नेतृत्व में झामुमो को एक बड़ा अर्बन चेहरा मिल चुका है, जिसकी अदा और अंदाजे बयां आदिवासी-मूलवासी समाज के साथ ही गैर आदिवासी समाज को भी तेजी से अपनी ओर आकर्षित कर है और यही कारण है कि पलामू की बंजर जमीन पर भी झामुमो  का तेजी से विस्तार हो रहा है. इसकी झलक उस वक्त भी देखी गयी जब मंईया सम्मान योजना यात्रा के साथ कल्पना सोरेन एक बार फिर से पलामू की सरजमीन पर पहुंची. और उस दौरान   जिस तरीक से मोहम्दगंज, हैदरनगर, हुसैनाबाद, छतरपुर, नावा बाजार, पंडवा मोड़ पर रास्ते के दोनों तरफ फूल माले के साथ महिलाओं और युवाओं की लम्बी कतार दिखी, वह इस बात का संकेत था कि संताल और कोल्हान के बाद अब पलामू भी झामुमो के लिए अछूता नहीं रहने वाला है.  

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वह चार सीटें जहां हो सकता है भाजपा को नुकसान

इस हालत में सवाल खड़ा होता है कि वह कौन-कौन की चार सीटे हैं जहां भाजपा के मुश्किल चुनौती खड़ी होने वाली है. तो इसमें पहली डाल्टनगंज की सीट है, फिलहाल यहां से आलोक कुमार चौरसिया विधायक है, आलोक चौरसिया वर्ष 2014 और 2019 में लगातार जीत दर्ज कर चुके हैं, लेकिन इस बार उनके सामने जबरदस्त एंटी इनकंबेंसी का सामना करना पड़ा रहा है, जबकि वर्ष 2009 में इसी सीट पर पंजा की ताकत दिखलाने वाले केएन त्रिपाठी इन दिनों पूरे फार्म में है. हालांकि इस बार कांग्रेस यहां से किस चेहरे पर दांव लगायेगी, अभी भी यह सवाल बना हुआ है, खबर है कि पूर्व विधानसभा अध्यक्ष और झारखंड की सियासत में एक बड़ा चेहरा इंदर सिंह नामधारी के बेटे भी इस सीट से टिकट की चाहत मे हैं, लेकिन किसी भी सूरत में इस बार आलोक चौरसिया को चुनौतिपूर्ण स्थिति का सामना करना पड़ सकता है. 
दूसरी सीट विश्रामपुर की है, इस सीट पर भी वर्ष 2014 और 2019 में कमल खिलाने वाले रामचन्द्रवंशी 75 पार कर चुके हैं. जबरदस्त एंटी इनकंबेंसी का सामना भी करना पड़ रहा है. वर्ष 2019 में बसपा के राजेश मेहता की ओर से मजबूत चुनौती मिली थी, जबकि कांग्रेस उम्मीदवार चन्द्रशेखर दूबे को चौथा स्थान पर सिमटना पड़ा था, इस हालत में यदि इस बार कांग्रेस अपने चेहरा बदलती है तो इसका यह सीट भी भाजपा के हाथ से निकल सकती है. तीसरी सीट छतरपुर की है, फिलहाल यहां से पुष्पा देवी विधायक भाजपा की विधायक है, लेकिन इनके प्रति भी गहरी नाराजगी है, यदि इस बार राजद यहां से राधा कृष्ण किशोर को मैदान में उतराती है, इस सीट पर भी भाजपा को चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है. चौथी सीट पांकी की है,  फिलहाल कुशवाहा शशिभूषण मेहता यहां से विधायक है, लेकिन इसकी स्थिति भी डांवाडोल बतायी जा रही है, विदेश सिंह के बेटे देवेन्द्रनाथ सिंह मजबूत चुनौती देते हुए दिखलायी पड़ रहे हैं, लेकिन हैरत अंगेज रुप से बड़ा बड़ा दांवा करने वाले भवनाथपुर विधायक भानु प्रताप शाही भी इस बार फंसे हुए दिखलायी पड़ रहे हैं. पूर्व विधायक अनंत देव प्रताप सीएम हेमंत के सम्पर्क में हैं, हालांकि वर्ष 2019 में बसपा की ओर से सोबरा बीबी ने मजबूत चूनौती देते हुए दूसरा स्थान प्राप्त किया था, इस बार सोबरा बीबी झामुमो के सम्पर्क में बतायी जा रही है, यदि झामुमो की ओर से यहां मजबूत उम्मीदवार दिया जाता है तो यहां भी पासा पलट सकता है. 


पलामू में भाजपा की खिसकती जमीन का एहसान भाजपा को भी है. दावा किया जा रहा है कि पार्टी के आंतरिक सर्वे में इसकी पुष्टि हुई है, खबर है कि भाजपा इस बार  करीबन करीबन सभी चेहरों को बदले का फैसला ले चुकी है, देखना होगा कि उस हालत में समीकरण क्या बनता है, और जीत और हार किसके हाथ आती है.

Edited By: Samridh Jharkhand

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