एक तिहाई भोजन पैदा करने वाले किसानों को क्लाइमेट फाइनेंस का मिलता है मात्र 0.3 प्रतिशत
दुनिया में उत्पादित कुल भोजन के एक तिहाई हिस्से का उत्पादन करने वाले लघु स्तरीय किसानों को अंतरराष्ट्रीय क्लाइमेट फाइनेंस या जलवायु वित्त का महज 0.3 प्रतिशत हिस्सा ही नसीब होता है।
इस बात का पता चलता है दुनिया के साढ़े तीन करोड़ पुश्तैनी, या पीढ़ी दर पीढ़ी खेती करते चले आ रहे छोटे और मंझोले किसान परिवारों का प्रतिनिधित्व करने वाले एक संगठन द्वारा कराये गये एक ताजा विश्लेषण से।
जलवायु वित्त के वितरण में इस गम्भीर खामी को उजागर करते इस अध्ययन की रिपोर्ट आज जारी की गयी। लघु स्तरीय किसान परिवार दुनिया के कुल भोजन का एक तिहाई (32 प्रतिशत) हिस्सा पैदा करते हैं मगर इसके बावजूद वर्ष 2021 में उन्हें जलवायु परिवर्तन के प्रति अनुकूलन के लिये अंतरराष्ट्रीय जलवायु वित्त का महज 0.3 प्रतिशत हिस्सा ही मिल पाता है।
अफ्रीका, एशिया, लैटिन अमेरिका और पैसिफिक के देशों में साढ़े तीन करोड़ लघु किसानों की नुमाइंदगी करने वाले एक नये संगठन ‘क्लाइमेट फोकस’ द्वारा किये गये इस अध्ययन को कॉप28 के आयोजन से कुछ दिन पहले ही जारी किया गया है। कॉप28 में ग्लोबल गोल फॉर एडेप्टेशन पर सहमति बनने की प्रबल सम्भावना है।
कॉप28 की मेजबानी कर रहा संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) भी देशों की सरकारों से आग्रह कर रहा है कि वे भोजन और कृषि को जलवायु से सम्बन्धित अपनी राष्ट्रीय योजनाओं में पहली बार शामिल करें और खाद्य प्रणाली के रूपांतरण में होने वाले वित्तपोषण को और भी बढ़ाएं।
इस साल आयोजित होने वाली संयुक्त राष्ट्र की जलवायु शिखर बैठक में खाद्य पदार्थों के मामले पर प्रमुख रूप से ध्यान दिया जाएगा। कॉप28 प्रेसीडेंसी ने सरकारों से आग्रह किया है कि वे जलवायु सम्बन्धी अपनी राष्ट्रीय योजनाओं में भोजन और कृषि को औपचारिक रूप से शामिल करें और इनके वित्तपोषण के स्तर को बढ़ाएं। कॉप28 में एक नये ग्लोबल एडेप्टेशन गोल पर सहमति भी बनायी जानी है।
क्लाइमेट फोकस ने जलवायु न्यूनीकरण और अनुकूलन के लिये अंतरराष्ट्रीय सार्वजनिक वित्त का अध्ययन किया है। वर्ष 2021 में इस वित्त के खर्च के लेखे-जोखे से निम्नांकित बातें सामने आती हैं :
एग्री-फूड क्षेत्र ने अंतरराष्ट्रीय सार्वजनिक जलवायु वित्त के रूप में 8.4 बिलियन डॉलर हासिल किये (यह ऊर्जा पर हुए कुल खर्च यानी 16 बिलियन डॉलर का लगभग आधा हिस्सा है)। मगर जाम्बिया और सियेरा लियोन जैसे जलवायु के प्रति जोखिम वाले और खाद्य सुरक्षा के लिहाज से कमजोर देशों को इसमें से महज 20-20 मिलियन डॉलर ही हासिल हुए।
अंतरराष्ट्रीय जलवायु वित्त का मात्र 2 प्रतिशत हिस्सा (2 बिलियन डॉलर) ही लघु किसान परिवार और ग्रामीण समुदायों को भेजा गया। यह निजी तथा सार्वजनिक दोनों ही क्षेत्रों के कुल अंतरराष्ट्रीय जलवायु वित्त के करीब 0.3 प्रतिशत के बराबर है। अकेले उप-सहारा अफ्रीका में छोटे धारकों की अनुमानित वित्तीय जरूरतें प्रति वर्ष 170 बिलियन अमेरिकी डॉलर हैं।
खाद्य और कृषि पर खर्च हुए अंतरराष्ट्रीय सार्वजनिक जलवायु वित्त का सिर्फ पांचवां हिस्सा (1.6 बिलियन अमेरिकी डॉलर , 19%) ही कृषि पारिस्थितिकी जैसी सतत और लचीली प्रथाओं को आगे बढ़ाने के लिए इस्तेमाल किया गया था। अनुमानित US$300-350 बिलियन प्रति वर्ष का एक अंश जरूरी है।
ईस्टर्न एंड साउदर्न अफ्रीका स्मॉल-स्केल फार्मर्स फोरम के अध्यक्ष हाकिम बलिरियाने ने कहा, ‘‘वर्ष 2019 के बाद से अब तक जलवायु परिवर्तन की वजह से 122 मिलियन लोग भुखमरी के दलदल में पहुंच गये हैं। उन्हें इससे बाहर तब तक नहीं निकला जा सकेगा जब तक सरकारें करोड़ों पुश्तैनी किसान परिवारों के लिये मुश्किलें खड़ी करना जारी रखेंगी। साथ मिलकर हम दुनिया के कुल खाद्य उत्पादन का लगभग एक तिहाई हिस्सा उत्पन्न करते हैं लेकिन इसके बावजूद हमें जलवायु परिवर्तन के लिये अनुकूलन के लिये जरूरी धन का कुछ हिस्सा मात्र ही मिल पाता है।’’
अनटैप्ड पोटेंशियल’ शीर्षक वाली यह रिपोर्ट इस बात को जाहिर करती है कि एग्री-फूड क्षेत्र पर खर्च किए गए अंतर्राष्ट्रीय सार्वजनिक जलवायु वित्त का 80% हिस्सा प्राप्तकर्ता सरकारों और दाता देशों के गैर सरकारी संगठनों के जरिये खर्च किया जाता है। जटिल पात्रता नियमों और आवेदन प्रक्रियाओं तथा कैसे और कहां आवेदन करना है, इसकी जानकारी की कमी के कारण पुश्तैनी किसानों के संगठनों के लिए इस तक पहुंचना मुश्किल हो जाता है। पारिवारिक किसानों को 2021 में कृषि-खाद्य क्षेत्र पर खर्च किए गए वित्त का केवल एक चौथाई (24%) प्राप्त हुआ।
अनेक किसान परिवारों के पास वैश्विक खाद्य सुरक्षा और ग्रामीण अर्थव्यवस्थाओं पर पड़ने वाले जलवायु परिवर्तन के गम्भीर प्रभावों के प्रति खुद को ढालने के लिये जरूरी मूलभूत ढांचे, प्रौद्योगिकी और संसाधनों की कमी है। दो हेक्टेयर से कम के खेतों में दुनिया के भोजन के एक तिहाई (32%) हिस्से का उत्पादन किया जाता है जबकि पांच हेक्टेयर या उससे कम के खेतों में नौ प्रमुख फसलों – चावल, मूंगफली, कसावा, बाजरा, गेहूं, आलू, मक्का, जौ और राई के वैश्विक उत्पादन के आधे से अधिक हिस्सा पैदा किया जाता है। साथ ही इनमें कॉफी का लगभग तीन-चौथाई और कोको का करीब 90 प्रतिशत हिस्सा उगाया जाता है।
वैश्विक स्तर पर 2.5 अरब से अधिक लोग अपनी आजीविका के लिए पारिवारिक खेतों पर निर्भर हैं।
इंटरगवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज (आईपीसीसी) का कहना है कि खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिये प्रकृति के प्रति मित्रवत और विविधतापूर्ण खाद्य प्रणालियों को ज्यादा से ज्यादा अपनाना ही सबसे प्रभावशाली तरीका है। पारिवारिक किसान इन प्रयासों का नेतृत्व कर रहे हैं। उदाहरण के लिये प्रशांत क्षेत्र में किसान अन्य फसलों के साथ ब्रेडफ्रूट के पेड़ लगा रहे हैं क्योंकि यह सूखे के प्रतिरोधक होते हैं और तूफानों तथा चक्रवातों से शायद ही कभी उखड़ते हैं। साथ ही इनके जरिये एक पौष्टिक मुख्य फसल पैदा होती है।
कंफेडरेशन ऑफ फैमिली प्रोड्यूसर ऑर्गनाइजेशंस ऑफ एक्सपैंडेड मरकोसर के अध्यक्ष एलबर्टो ब्रोच ने कहा, ‘‘सरकार के लिये हमारा स्पष्ट संदेश है : 60 करोड़ से ज्यादा पुश्तैनी किसान परिवार अधिक सतत और लचीली खाद्य प्रणालियों के निर्माण का काम पहले से ही कर रहे हैं।
उनके पास जानकारी और अनुभव का खजाना है, जिसे इस्तेमाल किया जाना चाहिये। निर्णय लेने में उनकी राय को शामिल करके और अधिक मात्रा में जलवायु वित्त तक सीधी पहुंच बनाकर हम जलवायु परिवर्तन से मुकाबले के लिये एक ताकतवर गठजोड़ बना सकते हैं।’’
एशियन फार्मर्स एसोसिएशन के महासचिव एस्टेर पेनुनिया ने कहा, ‘‘पुश्तैनी किसानों के पीढि़यों पुराने अनुभव और अत्याधुनिक वैज्ञानिक प्रमाणों से पता चलता है कि बदलती जलवायु में कुदरत के साथ काम करना और स्थानीय समुदायों को सशक्त करना ही खाद्य उत्पादन को संरक्षित करने की कुंजी है। जलवायु से सम्बन्धित इन जांचे-परखे समाधानों के समर्थन के लिये जलवायु वित्त पर एक बार फिर प्रमुखता से सोचने की जरूरत है। साथ ही पुश्तैनी किसानों और कृषि-पारिस्थितिकी जैसी सतत पद्धतियों के लिये और अधिक वित्त जुटाने पर भी ध्यान दिया जाना चाहिये।”