थर्मल पॉवर प्लांट के उत्सर्जन मानदंडों में संशोधन की आलोचना, क्या है यह बदलाव?

थर्मल पॉवर प्लांट के उत्सर्जन मानदंडों में संशोधन की आलोचना, क्या है यह बदलाव?

नयी दिल्ली : भारत सरकार के वन एवं पर्यावरण मंत्रालय ने थर्मल पॉवर प्लांट के उत्सर्जन मानदंडों में नया संशोधन किया है। इस संशोधन के बाद पर्यावरणविद सुनीता नारायण की अगुवाई वाली संस्था सेंटर फॉर साइंस एंड एनवॉयरमेंट ने इसकी कड़ी आलोचना की है।

उत्सर्जन मानदंडों में यह संशोधन 2015 में जारी अधिसूचना में किया गया है। इस संशोधन के अनुसार, सल्फर डॉइऑक्साइड के मानकों को पूरा करने के लिए बिजली संयंत्रों को और दो साल की अवधि देकर उनका समर्थन किया गया है। हालांकि पार्टिकुलेट मैटर यानी पीएम और नाइट्रोजन ऑक्साइड की समय सीमा पिछली अधिसूचना के अनुसार ही है।

सल्फर डाइऑक्साइड के मानकों को पूरा करने के लिए बिजली संयंत्रों को और दो साल का विस्तार देकर उनका समर्थन किया गया है। सीएसइ के अनुसार, सल्फर डॉइऑक्साइड एक उच्च मानदंड प्रदूषक है। आमतौर पर, स्वस्थ वातावरण की परिवेशी वायु में सल्फर डाइऑक्साइड की पृष्ठभूमि का स्तर 2 g/m3 से कम होता है। 20 g/m3 (24-घंटे माध्य) या 500 g/m3 (10-मिनट माध्य) से अधिक इसकी उपस्थिति स्वास्थ्य पर गंभीर रूप से हानिकारक प्रभाव डाल सकती है।

सीएसइ ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि हाल के शोध से पता चला है कि वातावरण में सल्फर डॉइऑक्साइड सांद्रता की मामूली वृद्धि भी संवेदनशील समूहों जैसे कि शिशुओं, गर्भवती महिलाओं और अस्थमा या पुरानी फेफड़ों की बीमारियों से पीड़ित लोगों को प्रभावित करती है। इसके अलावा, प्रदूषक हवा में जमा हो जाता है और सेकेंडरी पार्टिकुलेट मैटर में भी परिवर्तित हो जाता है।

सीएसई के औद्योगिक प्रदूषण के कार्यक्रम निदेशक निवित यादव कहते हैं, यह विडंबना है कि यह नई अधिसूचना नीले आसमान के लिए स्वच्छ हवा के अंतरराष्ट्रीय दिवस से केवल दो दिन पहले जारी की गई थी। ऐसी कार्रवाई नीले आकाश को दांव पर लगा सकती है।

यादव कहते हैं, “हमारे विश्लेषण से पता चलता है कि आज तक, भारत की कोयला बिजली क्षमता के केवल 4 प्रतिशत ने SO2 उत्सर्जन को नियंत्रित करने के लिए उपकरण स्थापित किए हैं और अन्य 41 प्रतिशत ने उपकरणों की आपूर्ति के लिए विक्रेताओं की पहचान की है। शेष 55 प्रतिशत क्षमता ने सात साल बाद भी मानदंडों को पूरा करने के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाया है क्योंकि मानदंडों को पहली बार दिसंबर 2015 में अधिसूचित किया गया था”।

उन्होंने कहा कि मई 2020 की एक रिपोर्ट में यह तथ्य सामने आया कि 70 प्रतिशत इकाइयां सल्फर डाइ ऑक्साइड के मानदंडों का पालन नहीं कर रही हैं। यहां तक कि उन्होंने इसके नियंत्रण के लिए संयंत्र या उपकरण लगाने की भी शुरुआत नहीं की थी। उन्होंने कहा कि इस क्षेत्र में पीएम और नाइट्रोजन डाइ ऑक्साइड मानदंडों का अनुपालन कभी भी एक चुनौती नहीं थी, सल्फर डाइ ऑक्साइड उत्सर्जन पर काम करना आवश्यक है। उन्होंने कहा कि हमारी 2020 की रिपोर्ट में साफ तौर पर दिखता है कि पीएम मानकों का आधे से अधिक संयंत्र पालन कर रहे हैं।

इस विस्तार से एक और बड़ा लाभ पुरानी इकाइयों के लिए है जो सेवानिवृत्ति के करीब हैं और संयंत्र संचालन की कम दक्षता के कारण सबसे अधिक प्रदूषणकारी हैं। अधिसूचना ऐसी इकाइयों को उनकी सेवानिवृत्ति की स्व.घोषित अवधि तक चलने की अनुमति देती है। सेंट्रल इलेक्ट्रिसिटी अथॉरिटी, सीइए ने 3.912 मेगावाट क्षमता की पहचान की है जिसे डिकमिशन किया जाना है, लेकिन यह खुलासा नहीं किया है कि ये प्लांट कितने समय तक मानदंडों को पूरा किए बिना काम करने वाले हैं।

नई अधिसूचना में एकमात्र सकारात्मक बात यह है कि गैर अनुपालन करने वाली इकाइयों पर प्रति यूनिट पर्यावरणीय मुआवजा 0.20 रुपये से बढाकर 0.40 रुपये कर दिया गया है।
सीएसइ में औद्योगिक प्रदूषण की कार्यक्रम अधिकारी अनुभा अग्रवाल कहती हैं, पर्यावरणीय मुआवजे में यह वृद्धि हालांकि अप्रसांगिक है, क्योंकि पर्यावरण मंत्रालय ने आसानी से एक समय सीमा बढाने के लिए एक रणनीति अपनाई है।

सीएसई के विश्लेषण से पता चलता है कि अगर इस नई अधिसूचना के तहत समय सीमा नहीं बढ़ाई गई होती, तो श्रेणी ए के तहत 13 बिजली संयंत्रों को परिचालन के छह महीने तक संचयी रूप से लगभग 1.4 करोड़ रुपये प्रति दिन का जुर्माना देना पड़ता। लेकिन अब ये प्लांट बिना जुर्माना चुकाए अगले दो साल तक प्रदूषण फैलाते रह सकते हैं।

यादव कहते हैं, बिजली मंत्रालय और सीईए की सहमति से पर्यावरण मंत्रालय का यह कदम यह दर्शाता है कि लोगों का स्वास्थ्य और पर्यावरण इसकी चिंता का सबसे कम है।

 

Edited By: Samridh Jharkhand

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