उपमुख्यमंत्री का ताज पहन चुके सुदेश, बचा पायेंगे अपनी प्रतिष्ठा…?
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- गिरिडीह की जनता करेगी सुदेश और आजसू का फैसला
– चंदन चौधरी
रांची: सियासी आसमान में कभी ध्रुव की तरह चमकने वाले आजसू सुप्रीमो सुदेश महतो की प्रतिष्ठा लोकसभा चुनाव 2019 में दांव पर लगी है। कभी उपमुख्यमंत्री का ताज पहनने वाले सुदेश महतो को आज अपनी ही राजनीतिक जमीन बचाने के लिए जद्दोजहद करनी पड़ रही है। झारखंड के 14 लोकसभा सीट में एनडीए के साथ गठबंधन के बाद काफी मशक्क्त से आजसू को गिरिडीह संसदीय क्षेत्र से चुनाव लड़ने का मौका तो मिल गया है, लेकिन आजसू इस मौके को भंजा पाएगी या नहीं यह तोे 23 मई को ही साफ होगा।
गिरिडीह से चंद्रप्रकाश चौधरी आजसू के प्रत्याशी हैं। वहीं उन्हें टक्कर देने के लिए जेएमएम ने जगरन्नाथ महतो को तीर कमान सौंपा है। गिरिडीह के जनता लोगों की माने तो जगरन्नाथ महतो की दावेदारी चंद्रप्रकाश चौघरी से मजबूत मानी जा रही है। चंद्रप्रकाश को अपनी जमीन मजबूत करने के लिए काफी संर्घष करने की जरूरत है। आजसू के लिए सबसे बड़ी चुनौती है गिरिडीह क्षेत्र से भाजपा कार्यकर्ताओं के साथ कदम से कदम ओर ताल से ताल मिलकर चलना। गिरिडीह से वर्तमान सांसद रविंद्र पांडेय बीजेपी के खास नेता माने जाते हैं। ऐसे में सुदेश के लिए भाजपा कार्यकर्ताओं को विश्वास में लेना सबसे अहम होगा। यदि सुदेश के हाथ से यह सीट निकल जाती है तो यह उनके राजनीतिक जीवन को शून्य पर लाकर रख देगा। इसका सबसे ज्यादा असर आने वाले विधानसभा चुनाव में सुदेश महतो और उनकी पार्टी को भुगतना पड़ सकता है।
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विधानसभा चुनाव में तीन बार चख चुके हैं हार का स्वाद:
आजसू सुप्रीमो सुदेश महतो बीते विधानसभा चुनाव में लगातार तीन बार हार का स्वाद चख चुके हैं। 2014 के आम चुनाव में सिल्ली विधानसभा में झामुमो से अमित महतो ने सुदेश महतो को 29,740 वोटों से शिकस्त दी थी। सजा सुनाये जाने के कारण अपनी सदस्यता गंवाने वाले झामुमो के अमित महतो स्वयं तो चुनावी राजनीति से दूर रहे लेकिन उनकी पत्नी ने सुदेश को चुनौती दी और फिर से सुदेश को हार का सामना करना पड़ा। विधानसभा के तीन उपचुनाव में पार्टी को करारी हार का समाना भी करना पड़ा। जिसमे लोहरदगा, गोमिया और सिल्ली सीट हाथ से निकल गयी। तमाड़ से आजसू विधायक विकास मुंडा ने भी पार्टी को बाय- बाय कह ही दिया। ऐसी स्थिति में लोकसभा चुनाव आजसू के लिए कितना मायने रखता है यह पार्टी सुप्रीमो भली- भाती समझ सकते हैं। सुदेश महतो के साथ- साथ अब तो पार्टी की साख भी लोकसभा चुनाव पर ही टिकी हुई है।
सुदेश ने आज़माया था रांची लोस में भाग्य, जनता ने नहीं स्वीकारा:
अपने गूंज महोत्सव से राज्य में गूंजने वाले सुदेश और उनकी पार्टी आजसू। दिल्ली में गूंजने की एक सफल कोशिश 2014 में की थी। लेकिन ये अलग बात है कि असफल साबित हुए। 2014 में रांची से भाजपा के प्रत्याशी रामटहल चौधरी 448729 वोट लेकर सांसद बने रहे। चौधरी को टक्कर देने वाले सुबोधकांत सहाय 249420 वोट पर सिमट गए। वही आजसू के सुप्रीमो सुदेश महतो को रांची की जनता ने मात्र 142560 वोट दिया। ऐसे में 2019 की लोकसभा से सुदेश का चुनाव नहीं लड़ना डर है या रणनीति का हिस्सा यह सुदेश महतो को ही पता है। लेकिन यह तय है कि गिरिडीह सीट पर जीत हासिल नहीं हुआ तो विधानसभा मेँ समस्यों का सामना करना पड़ेगा।
Edited By: Samridh Jharkhand
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