सामाजिक न्याय के पुरोधा थे कर्पूरी ठाकुर
जननायक कर्पूरी ठाकुर चौक पर उनकी प्रतिमा पर माल्यार्पण कर उनको श्रद्धासुमन अर्पित किया।

भारत रत्न जननायक कर्पूरी ठाकुर की पुण्यतिथि पर गिरिडीह में कर्पूरी ठाकुर की प्रतिमा पर माल्यार्पण कर उनको याद किया गया। झामुमो नेता कृष्ण मुरारी शर्मा, नन्दलाल शर्मा, गणेश ठाकुर, मोहनलाल शर्मा, राजेश ठाकुर, अर्जुन ठाकुर, बसंत ठाकुर, चन्दन शर्मा सहित कई लोगों ने जननायक कर्पूरी ठाकुर चौक पर उनकी प्रतिमा पर माल्यार्पण कर उनको श्रद्धासुमन अर्पित किया।
गिरिडीह: भारत रत्न जननायक कर्पूरी ठाकुर की पुण्यतिथि पर गिरिडीह में कर्पूरी ठाकुर की प्रतिमा पर माल्यार्पण कर उनको याद किया गया। झामुमो नेता कृष्ण मुरारी शर्मा, नन्दलाल शर्मा, गणेश ठाकुर, मोहनलाल शर्मा, राजेश ठाकुर, अर्जुन ठाकुर, बसंत ठाकुर, चन्दन शर्मा सहित कई लोगों ने जननायक कर्पूरी ठाकुर चौक पर उनकी प्रतिमा पर माल्यार्पण कर उनको श्रद्धासुमन अर्पित किया।
कर्पूरी ठाकुर दलित, शोषित और वंचित वर्ग के उत्थान के लिए सदैव प्रयत्नशील रहे: कृष्ण मुरारी शर्मा

दक्षिण भारत में जो महत्व पेरियार रामसामी नायकर और अन्ना दुरै का है कुछ वैसा ही महत्व उत्तर भारत में राममनोहर लोहिया और कर्पूरी ठाकुर का है: नन्दलाल शर्मा
झामुमो के युवा नेता नन्दलाल शर्मा ने कहा कि दक्षिण भारत में जो महत्व पेरियार रामसामी नायकर और अन्ना दुरै का है कुछ वैसा ही महत्व उत्तर भारत में राममनोहर लोहिया और कर्पूरी ठाकुर का है। उनकी राजनीतिक यात्रा को एक ऐसे समाज के निर्माण के महान प्रयासों द्वारा चिह्नित किया गया था जहां संसाधनों को उचित रूप से वितरित किया गया था। बिहार के समस्तीपुर जिले में एक गांव है पितौंझिया जिसे अब कर्पूरी ग्राम कहा जाता है। इसी गांव के एक नाई परिवार में 24 जनवरी 1924 को कर्पूरी ठाकुर का जन्म हुआ था। उन्होंने समाजवाद का रास्ता चुना और आचार्य नरेंद्र देव के साथ समाजवादी आंदोलन से जुड़ गये।
1952 में पहली बार बिहार विधानसभा का चुनाव जीता और महज 28 वर्ष की उम्र में विधायक बने
1942 में महात्मा गांधी के असहयोग आंदोलन में हिस्सा लिया और उन्हें जेल भी जाना पड़ा। वे 1952 में पहली बार बिहार विधानसभा का चुनाव जीता और महज 28 वर्ष की उम्र में विधायक बने। इसके बाद जब तक जीवित रहे लोकतंत्र के किसी न किसी सदन में सदस्य के रूप में मौजूद रहे। प्रजा सोशलिस्ट पार्टी के साथ अपने राजनीतिक कैरियर की शुरुआत करते हुए बिहार के मुख्यमंत्री बनने तक का सफर पूरा किया। उन्होंने मुख्यमंत्री रहते हुए बिहार में पिछड़े वर्गों के लिए आरक्षण का रास्ता साफ किया था. इतने पद और सफलता के बाद भी घर, गाड़ी, जमीन कुछ भी नहीं था। राजनीति की इसी ईमानदारी ने उन्हें जननायक बना दिया, राजनीति में इतना लंबा सफ़र बिताने के बाद जब उनका देहांत हुआ तो अपने परिवार को विरासत में देने के लिए एक मकान तक उनके नाम नहीं था। 17 फरवरी 1988 को 64 वर्ष की उम्र में उन्होंने संसार को अलविदा कह दिया।
उनका योगदान आज भी हमारे देशवासियों के दिलों में बसा हुआ है
देश के लिए उनका योगदान आज भी हमारे देशवासियों के दिलों में बसा हुआ है। बिहार में अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) की राजनीति के सूत्रधार माने जाने वाले व दो बार बिहार के मुख्यमंत्री रहे कर्पूरी ठाकुर का नाम मरणोपरांत देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘भारत रत्न’ से सम्मानित किया गया। गणेश ठाकुर ने कहा कि पिछड़ों और वंचितों के उत्थान के लिए कर्पूरी की अटूट प्रतिबद्धता और दूरदर्शी नेतृत्व ने भारत के सामाजिक-राजनीतिक परिदृश्य पर अमिट छाप छोड़ा।