चाईबासा नरसंहार : देश के 14 राज्यों में नहीं हैं पूर्णकालिक गृहमंत्री, तीन राज्य के गृहमंत्रियों के पास खुफिया शाखा नहीं


राहुल सिंह
रांची : झारखंड के पश्चिम सिंहभूम जिले के एक गांव में सात लोगों की गला काट कर हत्या कर दिए जाने से फौरी तौर पर भले ही झारखंड की कानून व्यवस्था पर सवाल उठा हो, लेकिन इसमें एक स्थायी सवाल निहित है कि अपने देश के राज्यों में गृह विभाग कैसे काम करता है. क्या इतने विशाल देश के अधिकतर सूबों के पास पूर्णकालिक गृहमंत्री हैं. और, अगर गृहमंत्री हैं तो उनके पास वास्तविक अधिकार भी हैं या सिर्फ वे गृह मंत्रालय के नियंत्रण में आने वाली कारा व आपदा जैसे सहयोगी विभागों के कामकाज तक ही सीमित कर दिए जाते हैं. कई बार सूबों में ऐसा भी भी होता है कि गृहमंत्री तो होता है, लेकिन उसके पास एक थाना इंचार्ज को इधर से उधर करने तक का अधिकार नहीं रहता, आइपीएस अफसरों की बात तो छोड़ ही दीजिए.
केंद्र शासित प्रदेशों के अलावा देश में 28 राज्य हैं. मोदी सरकार ने पिछले साल इनमें से एक जम्मू कश्मीर के लिए भी अलग व्यवस्था कर दी और उन्हें केंद्र के नियंत्रण में ले लिया. ऐसे में फिलवक्त देश में केंद्रशासित सूबों के अलावा 27 सूबे हैं, जिनके कानून-व्यवस्था की जिम्मेवारी राज्य सरकारों के पास है. केंद्र शासित सूबों की कानून व्यवस्था के लिए तो केंद्र जिम्मेवार होता ही है.
देश में 27 सूबों में एक झारखंड में अभी नयी सरकार का कैबिनेट विस्तार नहीं हुआ है. इसलिए यहां यह स्पष्ट नहीं है कि गृह मंत्रालय मुख्यमंत्री अपने पास ही रखेंगे या फिर अपने किसी सक्षम सहयोगी मंत्री को देंगे. हालांकि यह ध्यान रखा जाना चाहिए कि पिछली रघुवर सरकार में गृह मंत्रालय मुख्यमंत्री के पास ही था.
अब बात 26 सूबों की.
देश के 26 राज्यों में 14 राज्यों में पूर्णकालिक गृहमंत्री नहीं हैं. इनमें उत्तरप्रदेश, पश्चिम बंगाल, बिहार व राजस्थान जैसे बड़े राज्य भी शामिल हैं. 14 राज्यों के अलावा जिन शेष 12 राज्यों के पास अपना पूर्णकालिक या अलग से गृहमंत्री है, उनमें तीन के पास खुफिया विभाग नहीं है या फिर उनका पुलिस कैडर पर नियंत्रण नहीं है. यानी वे गृह मंत्रालय के तहत आने वाले सहयोगी कामकाज आपदा, जेल आदि के लिए सीमित हैं. ये राज्य हैं कर्नाटक, आंध्रप्रदेश व हरियाणा.
हरियाणा में तो कल ही मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ने सीआइडी विभाग गृहमंत्री अनिल विज से वापस अपने पास ले लिया. विज की शिकायत थी कि उन्हें अफसर कोई उचित जानकारी नहीं देते हैं.
उधर, आंध्रप्रदेश में मेकोटि सुचरिता गृहमंत्री हैं, लेकिन कानून व्यवस्था उनके पास नहीं है जो गृह विभाग का कोर वर्क है. यह विभाग मुख्यमंत्री जगन मोहन रेड्डी ने खुद के पास रखा है.
कर्नाटक में बीएस येदियुरप्पा मुख्यमंत्री हैं, उनके कैबिनेट में तीन डिप्टी सीएम हैं, मंत्री के रूप पूर्व मुख्यमंत्री जगदीश शेट्टर भी कैबिनेट सदस्य हैं. वहीं, गृहमंत्री के पद पर बासवराज बोम्मई हैं, लेकिन उनके पास इंटलीजेंस विंग यानी खुफिया शाखा नहीं है.
इन राज्यों में नहीं हैं पूर्णकालिक गृहमंत्री, सीएम के पास चार्ज
उत्तरप्रदेश, पश्चिम बंगाल, बिहार, राजस्थान, हिमाचल प्रदेश, पंजाब, उत्तराखंड, असम, सिक्किम, त्रिपुरा, तमिलनाडु, केरल, ओडिशा.
गुजरात में गृह मंत्रालय मुख्यमंत्री विजय रूपानी के पास है, जबकि राज्य मंत्री के रूप प्रदीप सिंह जडेजा पर जिम्मेवारी है.
आंध्रप्रदेश में गृहमंत्री हैं, लेकिन कानून व्यवस्था मुख्यमंत्री जगन मोहन रेड्डी के पास है, हरियाणा में अभी-अभी मुख्यमंत्री ने अपने गृही मंत्री अनिल विज से खुफिया विभाग ले लिया है. विज कद्दावर नेता हैं और इसे दोनों के बीच रस्साकशी का नतीजा माना जा रहा है. कर्नाटक में गृहमंत्री बासवराज बोम्मई के पास वरिष्ठ आइएएस डाॅ रजनीश गोयल जो एडिशनल चीफ सेक्रेटरी भी हैं वे इस विभाग की प्रशासनिक कमान संभालते हैं और इस विभाग में आइपीएस उमेश कुमार सचिव के रूप में तैनात हैं.
क्यों उठना चाहिए यह सवाल?
किसी विभाग के आवंटन या उसे अपने पास रखे जाने का अधिकार चुने गए प्रधानमंत्री या मुख्यमंत्री के पास होता है. पर, व्यवस्था की सुगमता के लिए यह अपेक्षा की जाती है कि अहम विभागों में प्रभावशाली राजनीतिक शख्सियतों या अनुभवी लोगों को तैनात किया जाएगा. प्रधानमंत्री मोदी की पहली सरकार में जब काफी समय तक वित्त व रक्षा मंत्रालय अरुण जेटली के पास था, तब यह सवाल उठाया जाता था कि ऐसा क्यों है. क्यों देश में कोई पूर्ण कालिक रक्षा मंत्री नहीं है. निर्मला सीतारमण जब देश की पहली पूर्णकालिक महिला रक्षामंत्री बनी थीं तो हमने इसे इतिहास बनना माना. ऐसा नहीं है कि रक्षा मंत्रालय की जिम्मेवारी पहले कभी महिला ने नहीं संभाली थी. इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री के तौर पर इस विभाग का प्रभार संभाल चुकी थीं. लेकिन, निर्मला सीतारमण पहली पूर्णकालिक रक्षामंत्री बनीं तो इसे गौरव की बात माना गया. चार्ज में होना अलग स्थिति होती है.
हमारे देश में जब कानून व्यवस्था राज्य का विषय है और कानून व्यवस्था के मोर्चे पर गंभीर संकट उत्पन्न होते रहता है तो यह क्यों नहीं पूछा जाना चाहिए कि इसके लिए जिम्मेवार एक पूर्णकालिक मंत्री क्यों नहीं है. असली लोकतंत्र तो सत्ता, शक्ति व जिम्मेवारियों का विकेंद्रीकरण ही है.
एक सशक्त गृहमंत्री का पद भारत जैसे देश के केंद्रीय या सूबाई कैबिनेट में दूसरा सबसे ताकतवर पद माना जाता है. पटेल, आडवाणी, राजनाथ से लेकर शाह तक को गृहमंत्री के रूप में अपने-अपने कैबिनेट का दूसरा सबसे शक्तिशाली शख्स माना जाता रहा है. अगर सूबों में ऐसे सशक्त गृहमंत्री हों जो पूरी तरह से अपने मंत्रालय पर फोकस रहें और पुलिस तंत्र पर उनका नियंत्रण हो तो शायद कानून व्यवस्था की सूरत और बेहतर हो.