ओपिनियन: परमात्मा ने याद करने का ही आदेश क्यों दिया?
मनुष्य मात्र की पुरी जिन्दगी में एक ही खेल पुरी ताकत के साथ चलता है
याद को पूजा- आराधना से जोड़ा तो किसी ने उन्हें नाम व मंत्रों के जाप से जोड़ा। लेकिन याद शब्द के वास्तविक अर्थ को समझने में हम चूक गये। दुसरी तरफ परमात्मा की सही पहचान न होने के कारण और हर किसी को परमात्मा या उनका रुप समझ लिए जाने का यह नतीजा निकला कि हर कोई अपनी समझ से उन नामों को, मंत्रों को ही परमात्मा समझ उन्हे जपने के कर्म को सर्वश्रेष्ठ मान बैठे।
याद की यात्रा पर एक कड़ी बनाने का प्रयास कर रहा हूँ कि परमात्मा ने किस वजह से हर धर्म शास्त्रों के माध्यम से सिर्फ उन्हें ही याद करने का आदेश दिया।त्रिकालदर्शी और ज्ञान के सागर परमात्मा के छोटे से छोटे आदेश में क्या गहराई होती है, इसे ही पुरी तरह से समझने में हम सब पुरी तरह से नाकामयाब रहे।
किसी ने याद को पूजा- आराधना से जोड़ा तो किसी ने उन्हें नाम व मंत्रों के जाप से जोड़ा। लेकिन याद शब्द के वास्तविक अर्थ को समझने में हम चूक गये। दुसरी तरफ परमात्मा की सही पहचान न होने के कारण और हर किसी को परमात्मा या उनका रुप समझ लिए जाने का यह नतीजा निकला कि हर कोई अपनी समझ से उन नामों को, मंत्रों को ही परमात्मा समझ उन्हे जपने के कर्म को सर्वश्रेष्ठ मान बैठे।
श्रेष्ठ भक्ति मार्ग की यही तो खुबी होती है कि वह विश्वास और श्रृद्धा की ऐसी अमृत घुंटी पिलाती है कि हमे बस फिर वहीं ही सही समझ आने लगता है। आध्यात्म से जुडें मनुष्यों द्वारा बनाये गये भक्ति मार्ग मे बस विश्वास और श्रृद्धा पर इसलिए ज्यादा बल दिया गया ताकि अज्ञानता के कारण लोग भ्रमित ना हो।
कारण साफ है, मानने का प्रयास तो सभी एक को ही कर रहे है, पूजा- आराधना भी एक को ही मानकर कर रहे है लेकिन वो एक वहीं अनेक बन गये और न सिर्फ नाम में बल्कि रुप और स्वरुप में भी। इससे भी कोई बहुत बड़ा अपराध ना होता, दुनिया में दुःख की स्थिऊ इतनी भयंकर न बन जाती। श्रृद्धा और विश्वास के साथ जब अंध शब्द जुड़ गया और दुसरी तरफ पाप कर्म बढे और साथ ही आकांक्षाएं भी बढ़ती चली गई, ऐसे में एक तरफ तो जीवन में असन्तुष्टता हावि होनी आरम्भ हो गई और दुसरी तरफ वह अंध श्रृद्धा और विश्वास यही अहसास जगाता रहा कि हमारी हमारे आराधक के प्रति जो दायित्व था उसमें कोई कमी रह गई और नतीजा कट्टरता ने हमारे जीवन में प्रवेश करना आरम्भ कर दिया।
फलस्वरुप सब भक्ति की श्रृद्धा और विश्वास में इस कदर डुबें की बस अपने आराधक को ही सर्वश्रेष्ठ साबित करने पर अड़ गये और नतीजा सामने है। "प्यार से हमारी भावनाओं को समझो तो ठीक है वरना हम उसके लिए फिर कुछ भी कर गुजर सकते है" और कर गुजरने के दृश्य आम होते जा रहे हैं।
प्रकृति के इस रंगमंच पर चलने वाले बेहद के नाटक में, जब दुःख और अनाचार की सब सीमाएं टूट जाती है, तब बने हुए नियम के अनुसार परमात्मा का आगमन होता है। और परमात्मा अपने वायदे के अनुसार भक्ति का फल ज्ञान देने के लिए धरती पर एक साधारण तन का सहारा लेकर अवतरित होते हैं। भक्ति मार्ग के विश्वास और श्रृद्धा के साथ परमात्मा बस एक लक्ष्य को और जोड़ देते हैं और कहते है अब मानने के साथ जानने की भी मेहनत करनी है कि हम उसे जानें जिसे हम मानते आ रहे हैं।
दुसरी जो सबसे बड़ा रहस्य है कि मनुष्य मात्र की पुरी जिन्दगी में एक ही खेल पुरी ताकत के साथ चलता है, जिसे हम याद कह सकते हैं। प्रकृति के अन्य जीवों में भी याददाश्त तो होती है लेकिन उसकी एक बंधी बंधाई सीमा होती है। और मजे की बात है शरीर की हालत कैसी भी हो याद की यात्रा मे कोई रुकावट नहीं आती।
इसीलिए परमात्मा ने अपनी सारी रचनाओं के सामने वह सहज मार्ग रखा जिसके सभी अभ्यासी है। इसीलिए परमात्मा ने दुनिया के हर धर्म शास्त्रो से यहीं संदेश दिलवाया कि सब उन्हें याद करे। अब इसका सहज अर्थ निकाला गया कि उनके नाम को याद करना है, मतलब नाम को जपना है।
काश हम यह जान पाते कि नाम शरीरों को मिलता है, आत्माओं को नहीं। अब अजन्मा, अशरीरी परमात्मा के पास जब अपना शरीर ही ना हो तो फिर उनके नाम का आधार क्या होगा? फिर इसी जगह श्रृद्धा और विश्वास ने अपना खेल दिखाया और कथाओं की भरमार कर दी और हम अपनी सुविधानुसार ब्रांडों में उलझते गये और अपनी पीठ थपथपाने लग गये।
लेकिन सच्चाई है कि परमात्मा ऊन्हे याद करने की जो हिदायत दी थी उसके पीछे एक ही भाव थि कि आप परमात्मा के कर्तव्यो और गुणों को इस लिए याद करे ताकि आप जान सके जीवन के दुखों का आप कैसे इलाज कर सकते हैं क्योकि हम सभी रचना है और रचना मे रचयिता के गुण तो झलकने ही चाहिए।
इसीलिए फिलहाल मैं याद की शक्ति के गुणों को क्रमवार रुप से रखने का प्रयास कर रहा हूं, इस विश्वास के साथ कि आप सभी स्वयम् इस पर चिन्तन करेंगे।
(नोट: याद की कड़ी प्रत्येक दिन आप आज के सुविचार में देख पायेंगे।)
लेखक के यह निजी विचार हैं।