हेमंत का पीएम मोदी को पत्र, “नया वन कानून ग्रामसभा की शक्तियों को ढिठाई से कमजोर करता है”

हेमंत का पीएम मोदी को पत्र, “नया वन कानून ग्रामसभा की शक्तियों को ढिठाई से कमजोर करता है”


हेमंत सोरेन ने पत्र में लिखा है कि नया कानून आदिवासियों को विकास के नाम पर उनकी जमीन से उखाड़ देगा। उन्होंने लिखा है कि वन भूमि के रूप में चिह्नित जगहों पर 10 करोड़ लोग रहते हैं, लेकिन उनके अधिकार रिकार्ड में दर्ज नहीं हैं।

रांची : झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने शुक्रवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को एक पत्र लिख कर कहा कि केंद्र सरकार का वन संरक्षण अधिनियम 2022 स्थानीय ग्रामसभा की शक्तियों को ढिठाई से कमजोर करता है और आदिवासियों और वन आश्रित समुदायों को उनके अधिकारों से विमुक्त करता है। मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने अपने पत्र में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से वन संरक्षण अधिनियम 2022 को बदलने का आग्रह किया है, जो देश के आदिवासी और वन समुदायों के अधिकारों की रक्षा के लिए सिस्टम और प्रक्रियाएं स्थापित करेगा। मुख्यमंत्री सोरेन ने प्रधानमंत्री मोदी को एक दिसंबर को यह पत्र लिखा है, जिसे उन्होंने दो दिसंबर को अपने ट्विटर पर पोस्ट कर सार्वजनिक किया।

हेमंत सोरेन ने पत्र में लिखा है कि नए कानून ने वन भूमि का उपयोग करने की ग्रामसभ की पूर्व सहमति प्राप्त करने की अनिवार्य आवश्यकता को समाप्त कर दिया है। पत्र में कहा गया है कि इन पेड़ों को अपने पूर्वजों के रूप में देखने वाले लोगों की सहमति के बिना काटना उनकी स्वामित्व की भावना पर एक पीड़ादायक हमला है।

हेमंत सोरेन ने अपने पत्र में कहा है कि 32 मूल निवासी (इंडिजिनियश) समुदाय वाले एक राज्य के मुख्यमंत्री के रूप में उन्होंने महसूस किया कि वन अधिकार अधिनियम 2006 के उल्लंघन के बारे में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को सूचित करना उनकी जिम्मेवारी है, जो वन संरक्षण अधिनियम 2022 द्वारा लाया गया परिवर्तन है।

हेमंत सोरेन ने पत्र में लिखा है कि एक आकलन के मुताबिक 20 करोड़ भारतीयों की आय का प्राथमिक स्रोत जंगल है। जबकि करीब 10 करोड़ लोग जंगल के रूप में चिह्नित या वर्गीकृत भूमि पर रहते हैं।

मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने लिखा है कि ये नए वन संरक्षण कानून उन लोगों के अधिकारों को समाप्त कर देगा, जिन्होंने पीढियों से जंगल को अपना घर कहा है, लेकिन उनके अधिकार रिकार्ड में दर्ज नहीं हैं। विकास के नाम पर उनकी पारंपरिक जमीन छीनी जा सकती है और हमारे देश के इन भोले लोगों की उनके आवास को नष्ट करने में कोई भूमिका नहीं होगी।

हेमंत सोरेन ने अपने पत्र में लिखा है कि पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने 2009 में स्पष्ट रूप से कहा था कि वन संरक्षण अधिनियम 1980 वन भूमि के विचलन के लिए किसी भी मंजूरी पर प्रथम चरण (सैद्धांतिक रूप से) अनुमोदन से पहले तब तक विचार नहीं किया जाएगा, जब तक कि वन अधिकार पहले से न निबटाए गए हों।

पत्र में कहा गया है कि वर्ष 2019 में इस प्रावधान को इस हद तक कमजोर कर दिया गया कि दूसरे चरण की मंजूरी से पहले ग्रामसभा की अनुमति की आवश्यकता होगी। 2022 की नई अधिसूचना में ग्रामसभा की सहमति की इस शर्त को आश्चर्यजनक रूप से पूरी तरह खत्म कर दिया गया है।

हेमंत सोरेन ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से आग्रह किया है कि वे ऐसे कदम उठाएं जिससे यह सुनिश्चित हो कि प्रगति की आड़ में आदिवासी पुरुष, महिला और बच्चों की आवाज को चुप नहीं कराया जाए और आवश्यक रूप से हमारे कानून समावेशी होने चाहिए।

Edited By: Samridh Jharkhand

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